Thursday, December 31, 2009

घुट-घुट कर जी रहा कानू सान्याल

ठ्ठमधुरेश, हाथीघिसा (पश्चिम बंगाल) विचारधारा जीवन को एक दायरे में बांधती है और जीने का जोश देती है, लेकिन जब वह भटक जाती है, तो जी का जंजाल बन जाती है। झंडाबरदारों को तो दुर्दिन दिखाती ही है, विकृति बन उस समाज को भी पेरती है, जो उसके केंद्रबिंदु में होता है। कुछ ऐसा ही हुआ है नक्सलवादी विचारधारा के साथ। कम से कम कानू सान्याल को देखकर तो यही लगता है। कभी देश-समाज को बदलने का सपना देखने वाले शख्स को हर उस व्यक्ति से शिकायत है, जिससे उसने उम्मीद बांधी थी। वैचारिक रिश्ते तो साथ छोड़ गए, अंतत: खून का रिश्ता ही काम आ रहा है। भाई के खर्च पर 81 साल के कानू की जिंदगी की गाड़ी जैसे-तैसे खिंच रही है, अब कोई हाल-खबर लेने भी नहीं आता है। पश्चिम बंगाल के एक गांव की झोपड़ी में नक्सलवाद का कथा पुरुष घुट-घुटकर मर रहा है। भाई पैसा न दे, तो कानू सान्याल सांस चालू रखने वाली दवा भी न खा सकें। ठीक बगल की झोपड़ी में रोज मौत की बुलाती एक औरत, साथियों की चरम दगाबाजी की निशानी है। फिर भी दोनों को कोई मलाल नहीं; मदद की अपेक्षा भी नहीं। और ऐसे ही कई और गुणों के चलते दोनों जनता के लड़ाकों के लिए नसीहत हैं। दोनों गवाह हैं कि कैसे और क्यों कोई आंदोलन बीच रास्ते से भटक जाता है; जनता बेच दी जाती है? वाकई, कानू सान्याल और लखी होना मुश्किल है। अभी के दौर में तो असंभव। कानू दा, नाम के मोहताज नहीं हैं। मगर लखी को हाथीघिसा पहुंचकर ही जाना। वे भारत में नक्सलवादी आंदोलन के प्रारंभिक कमानदारों में एक जंगल संथाल की बेवा हैं। जंगल, नक्सलबाड़ी का लड़ाका। चारु मजूमदार, खोखोन मजूमदार, सोरेन बोस, कानू सान्याल का हमकदम। खैर, कानू दा 81 साल के हो चुके हैं। बीमार हैं। दो अखबार लेते हैं। सामने के खेत, खुला आकाश, उड़ते पंछी, चरते जानवर, चिथड़ों में लिपटे नंगे पांव स्कूल जाते नौनिहाल ..,चश्मे के पीछे से सब देखते हैं। कुछ भी तो नहीं बदला! यही उनकी घुटन है। उन्होंने इसी सबको बदलने के लिए भारतीय व्यवस्था को चुनौती दी थी। कई राज्यों की पुलिस तलाशती थी। .. और अब गुटीय लाइन पर अपने भी मिलने नहीं आते। कानू की जिंदगी बड़ी मुश्किल से गुजर रही है। प्रदीप सान्याल (भाई) के पैसे से दवा खरीदी जाती है। चूंकि कार या पेट्रोल की हैसियत नहीं है, सो चाहते हुए भी कहीं निकल नहीं पाते। कानू दा को यह बात बहुत कचोटती है कि कभी साथी रहे लोग या उनकी सरकार (पश्चिम बंगाल का माकपा राज) ने मरणासन्न अवस्था में भी उनकी सुधि नहीं ली। बुद्धदेव भट्टाचार्य (मुख्यमंत्री) सार्वजनिक सभाओं में अक्सर कहते हैं-पश्चिम बंगाल में अब कोई नक्सली नहीं रहा। एक कानू बाबू है। उनको भी हम अपने साथ करना चाहते हैं। यह मुनादी है कि कैसे नक्सल आंदोलन के किरदारों को उनके ही पुराने साथियों (माकपा) ने दबाया, कुचला? ऐसे में सहयोग की अपेक्षा बेकार है। और हम ऐसा करते भी नहीं-कानू दा बोले। झोपड़ी में रह रहे कानू सान्याल बैचलर हैं।
സഭാര്‍ ദൈനിക്‌ ജഗ്രന്‍
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तार-तार हो गया उल्फा का आधार


तार-तार हो गया उल्फा का आधार
गुवाहाटी : असम को भारत से अलग करने के ख्वाब के साथ 1979 में बनाया गया यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आफ असम (उल्फा) इन दिनों उथल-पुथल भरे दौर से गुजर रहा है। अपने आधार की वजह से उल्फा ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के संरक्षण में बांग्लादेश में अपने पांव जमा लिए थे, लेकिन उसे अब वहां बने रहने में दिक्कत हो रही है। पिछले साल शेख हसीना की सरकार की स्थापना, धार्मिक कट्टरवाद और उग्रवाद के विरोध में उठाए गए कदमों और शायद इस एहसास की बदौलत कि अब भारत को और नाराज नहीं किया जा सकता, उस देश में सक्रिय उल्फा तथा दूसरे उग्रवादी संगठन हताशा में सुरक्षित पनाहगाहों की तलाश में हैं। इसलिए उल्फा प्रमुख, परेश बरुआ के चीन पहंुच जाने और बांग्लादेश में मौजूद इस संगठन के सदस्यों के म्यांमार से संरक्षण मिलने की खबरों से हैरानी नहीं होनी चाहिए। लेकिन म्यांमार में भी उन्हें हालात की प्रतिकूलता का अंदाजा होने लगा है। खबर थी कि नवंबर के पहले सप्ताह में म्यांमार आर्मी ने उल्फा के एक कैंप को घेर लिया था और वहां करीब 100 उग्रवादियों पर हमला बोल दिया था। इस पृष्ठभूमि में संगठन के दो शीर्ष नेताओं विदेश सचिव शशधर चौधरी और वित्त सचिव चित्रबन हजारिका की गिरफ्तारी महत्वूपर्ण हो जाती है। बीएसएफ के अनुसार इन दोनों ने त्रिपुरा में आत्मसमर्पण किया था। इससे महज 48 घंटे पहले उल्फा ने दावा किया था कि इन दोनों को 1 नवंबर को ढाका में उनके घरों से गिरफ्तार किया गया था। 7 नवंबर को चीफ जूडिशियल मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने के बाद जब इन दोनों को गुवाहाटी लाया गया, तो उन्होंने मीडिया को बताया कि उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया था बल्कि सादी वर्दी में कुछ लोगों ने उन्हें ढाका में उनके घरों से उठाया था और फिर उन्हें भारत को सौंप दिया था। खैर हकीकत यह है कि दोनों जेल में हैं। यही नहीं इसके कुछ दिन बाद ही उल्फा का चेयरमैन अरबिंद राजखोवा और डिप्टी कमांडर इन चीफ राजू बरुआ की गिरफ्तारी ने तो उल्फा की कमर ही तोड़ दी। उल्फा के लिए यह गठन के 30 साल में सबसे बड़ा झटका था। सवाल उठता है कि अब उल्फा क्या रुख अपनाएगा? जून 2008 से इकतरफा संघर्ष विराम करने वाले वार्ता-समर्थक धड़े के चोटी के एक उल्फा लीडर, मृणाल हजारिका के हवाले से एक अखबार ने लिखा है कि अगर राज्य को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान करने की हमारी मांग पर वे सहमत हो जाते हैं, तो शांति वार्ता शुरू करने का हम आधार तैयार कर सकते हैं। हम समझ चुके हैं कि असम के लिए पूर्ण प्रभुसत्ता की मांग करना व्यावहारिक नहीं है। इसलिए हम, लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए शांति वार्ता के पक्ष में हैं। ऐसे में या तो शशधर-चित्रबन की जोड़ी, शांति वार्ता की बजाए अपने क्रांतिकारी रुख पर कायम रहते हुए जेल जाना पसंद करेंगे, या वे मृणाल हजारिका गुट में शामिल हो जाएंगे और शांति प्रक्रिया को सार्थक बनाएंगे, या फिर वे अपने कानूनी और तथाकथित मानवाधिकार सलाहकारों की मदद से एक नई साजिश के लिए कोई चतुराई भरा कदम उठाएंगे। साथ ही, हो सकता है कि वार्ता-विरोधी धड़ा इन दो लोगों के पकड़े जाने का बदला लेने के लिए अपने परिचित तौर-तरीकों से मासूम स्त्री-पुरुषों और बच्चों को आतंकित करे। ऐसे किसी हमले को रोकने के लिए खुफिया विभाग को कुशलता और सतर्कता का परिचय देना होगा। परेश बरुआ के नेतृत्व वाला गुट यह साबित करने की पुरजोर कोशिश करेगा कि अभी उसमें दम है। अपने शुरूआती सालों में समाज सुधार के अपने स्वरूप से उल्फा ने एक लंबा रास्ता तय करके संगठन के खिलाफ भारतीय सेना के आपरेशन बजरंग और आपरेशन राइनो के बाद 1990 के सालों में असम छोड़कर बांग्लादेश चले जाने के बाद आईएसआई के समर्थन से उसने आतंकवादी नकाब ओढ़ लिया है। इसी प्रकार से असम के लोगों ने भी एक लंबा सफर तय किया है। अब वे उल्फा द्वारा दिखाए गए सपने से दूर होकर उसके आतंकवादी स्वरूप को पहचान चुके हैं, जो आज विदेशी ताकतों के इशारों पर खेल रहा है। (अडनी)
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Tuesday, December 29, 2009

नवेली साल का आना बधाई हो बधाई हो


नवेली साल

- विमलेश बंसल ‘आर्या’


नवेली साल का आना बधाई हो बधाई हो ।

खुशी के गीत मिल गाना बधाई हो बधाई हो॥
1. कमाई धर्म की करके, जगत खुशियों से भर दें हम।

गरीबों दीन दुःखियों और, सभी के पेट भर दें हम।

अतिथि विद्वान का आना बधाई हो बधाई हो॥

मान से पान करवाना बधाई हो बधाई हो॥ नवेली _ _ _ _


2. प्रेम भर-भर के बाटें हम, खुशी का पार न भगवन।

सभी हँस मिल के खेलें हम, खिले आर्यों का यह उपवन।

खुशी के गीत तब गाना बधाई हो बधाई हो॥ साजो संगीत हो जाना बधाई हो बधाई हो॥ नवेली _ _ _


_3. ईर्ष्या द्वेष को छोड़ें प्रेम कर मित्र बन जावें। कँटीले कंटकों से भी, सुलझ कर हम निकल जावें। निडरता वीरता लाना बधाई हो बधाई हो॥ गंभीरता धीरता लाना बधाई हो बधाई हो॥ नवेली _ _ _ _



4. पंचयज्ञों का पालन कर, जगत में आर्य कहलावें। ॠण से उॠण हो तभी, कर्म निष्काम बन जावें। ॠषि के गीत तब गाना बधाई हो बधाई हो ॥ यज्ञ घर-घर में करवाना बधाई हो बधाई हो॥ नवेली _ _ _ _

5. तुम्हारी ज्योति से चमकें, सभी को रोशनी दे कर। विकल्पों से हटा संकल्प, सबके उर में भर-भर कर। उरों का दीप बन जाना बधाई हो बधाई हो॥ दीप से दीप जल जाना बधाई हो बधाई हो॥ नवेली _ _ _ _


6. बजे स्वर ज्ञान की दुंदुभी, पताका ओ3म् के नीचे। वैदिक धर्म की जय हो, चलें मिलकर के सब पीछे। प्रभु के गीत तब गाना बधाई हो बधाई हो॥ विमल सब आर्य बन जाना बधाई हो बधाई हो॥ नवेली _ _ _ _


7. विदेशी संस्क्रति को तज स्वदेशी को ही अपनायें। जनवरी मंथ को त्यज दें, चैत्र शुरुआत बन जाये।
बसंत नव वर्ष का आना बधाई हो बधाई हो॥ उमंग उल्लास भर जाना बधाई हो बधाई हो॥ नवेली _ _ _ _खुशी के गीत मिल गाना बधाई हो बधाई हो॥

मुस्लिम लॉ बोर्ड के प्रस्ताव दकियानूसी विचारों का पुलिंदा


मुस्लिम लॉ बोर्ड के प्रस्ताव पर घोर आपित्त है-द्विवेदी
अखिल भारत हिन्दू महासभा दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष रविन्द्र कुमार द्विवेदी ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की लखनउ बैठक में पारित प्रस्ताव को मुस्लिम समाज के दकियानूसी विचारों का पुलिन्दा बताया है। उन्होंने कहा कि राजस्थान के एक मामले में न्यायालय द्वारा एक मुस्लिम महिला को उसके शौहर से गुजारा भत्ता दिलाना मुस्लिम महिला की बुनियादी और मानवीय आवश्यकता है।

लेकिन मुस्लिम लॉ बोर्ड का प्रस्ताव मुस्लिम महिलाओं को उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित करने का संदेश दे रहा है द्विवेदी का आगे कहना था कि मुस्लिम समाज को आरक्षण की जगह एक दकियानूसी विचारों से मुक्त कराने की आवश्यकता है ताकि उनका पूरा विकास हो सके। और यह तभी संभव है जब मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे देश में दोहरे कानून (राष्टीय कानून और शरीयत) की वकालत करने वाले संगठनों पर प्रतिबंध लगेगा और मुस्लिम समाज को आधुनिक समाज से जोड़ा जा सकेगा।

आगे द्विवेदी का कहना था कि देश पिछले 62 सालों से दोहरे कानून के नाम पर दोनों संप्रदाय नफरत की आग में झुलस रहा है। इस आग को दोनों संप्रदायों को एक राष्टीय य कानून के नीचे लाये बिना नही बुझाया जा सकता।

नव वर्ष को काला दिवस देशवासी मनाएं

अखिल भारत हिन्दू महासभा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष रविन्द्र कुमार द्विवेदी और राम आधार फाउंडेशन की कोषाध्यक्ष एडोवोकेट संजया शर्मा ने देशवासियों से अपील की है कि वे अंतराष्टीय नव वर्ष 1 जनवरी 2010 को काला दिवस मनाएं। आगे उन्होंने कहा कि आज से साठ साल पूर्व 1 जनवरी 1949 को भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध विराम के बाद से जम्मू और लद्दाख का एक बहुत बड़ा भाग आज भी पाकिस्तान के कब्जे में है, जिसे गुलाम कश्मीर के नाम से जाना जाता है। गुलाम कश्मीर के लोग आज भी पाकिस्तान के सिर्फ गुलाम बनकर जीते हैं।

दोनों नेताओं ने अपने संयुक्त बयान में देश के लोगों का आह्वान किया कि नए वर्ष में खुशियां न मनाए बल्कि इस दिवस को काला दिवस के रूप में मनाए क्योंकि यह देश के लिए शर्म की बात है कि भारत का भू-भाग देश के बड़े नेताओं ने कैसे गंवा दिया और हम अज्ञानतावश इन नेताओं को कैसे पूजते हैं। दोनों नेताओं ने अपने संयुक्त बयान में कहा कि सन् 1948 में संयुक्त राष्ट संघ के सुरक्षा परिषद ने पाकिस्तान से गुलाम कश्मीर के इलाके खाली कराने का प्रस्ताव पारित किया था, मगर दुष्ट देश पाकिस्तान ने आज तक इसे अंगीकार नही किया। पाकिस्तान के इस घिनौनी करतूत के लिए विश्व स्तर पर विरोध और सन् 1948 में सुरक्षा परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव को सम्मान न देते हुए इलाके को अपने कब्जे में रखने के कारण वैश्विक विरोध होना चाहिए।

द्विवेदी व संजया वर्मा ने कहा कि गुलाम कश्मीर का भारत में विलय होने तक देश वासियों को अंतर्राष्टीय नव वर्ष को काला दिवस के रूप में मनाना चाहिए। इस तरह से करने पर पाकिस्तान के इस काली करतूत पर पूरे विश्व का ध्यान केन्द्रित होगा और गुलाम कश्मीर को भारत में विलय करने का उस पर दबाव पड़ेगा। 1 जनवरी 2010 को हिन्दू महासभा दिल्ली प्रदेश और श्री राम आधार फाउंडेशन काला दिवस के रूप में मनाते हुए गुलाम कश्मीर को भारत में विलय करने के लिए पूरे देश में आंदोलन चलाएगी जिससे भारत को अखंड राज्य बनाया जा सके। क्योंकि गुलाम कश्मीर भारत के लिए कूटनीतिक रूप से बहुत जरूरी है।

Monday, December 28, 2009

गोहत्या भारत की हत्या है--राघवेश्वर भारती

दिल्ली, 27 दिसंबर।गोहत्या भारत की हत्या है। गाय की जितनी हत्या मुगल और अंग्रेजी राज में नहीं हुई उससे अधिक हत्या आज स्वाधीन भारत में हो रही है। यह अत्यंत दुर्भाग्य का विषय है कि आज देश के सत्ताधीशों को यह बताना पड़ रहा है कि गाय आपकी माता है और इसका संरक्षण यदि नहीं किया गया तो भारत का अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा। शंकराचार्य आज यहां उत्तमनगर में एक विशाल सभा को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने केन्द्र सरकार से मांग की कि वह गोरक्षा का केन्द्रीय कानून बनाकर देश को विनाश से बचाए। उन्होंने कहा कि इस अभियान में यदि उनका जीवन भी अर्पित हो गया तो वे इसे अपना सौभाग्य समझेंगे।
नेताजी सुभाश प्लेस पर आयोजित सभा को संबोधित करते हुए यात्रा के राष्टीय मार्गदर्शक श्री सीताराम केदिलाया ने कहा कि रामराज्य के लिए ग्राम राज्य का निर्माण जरूरी है। इसीलिए गांधीजी ने ग्राम रक्षा का आहवान किया था। उन्होंने कहा कि गाय आौर ग्राम देश की दो आंखें हैं और आज ये दोनों ही आंखें संकट में हैं। उन्होंने कहा कि आज विदेशी जीवन प़द्धति के कारण हमारी सोच भी विदेश केन्द्रित त हो गयी है। इस यात्रा में संतों ने तीन मंत्र दिये हैं और वे तीन मंत्र हैं --चलें गांव की ओर, चलें गाय की ओर और चलें प्रकृति की ओर।जिस प्रकार विश्वामित्र श्रीराम व लक्ष्मण को ग्राम में ले गये थे उसी प्रकार आज के वरिश्ठ संत इस यात्रा के प्रवर्तक हैं। गाय, ग्राम व प्रकृति के साथ भारत का संरक्षण और भारत के साथ पूरे विश्व का संरक्षण आवश्यक है। सुप्रसिद हिन्दी कवि श्री गजेन्द्र सोलंकी ने अपनी कविताओं से श्रोताओं को झकझोर दिया।
यमुना विहार की विशाल सभा को संबोधित करते हुए यात्रा समिति के राश्ट्रीय सचिव श्री शंकरलाल ने भारतीय नस्ल की देशी गायों के कृत्रिम गर्भाधान पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा कि केन्द्र में गाय के लिए एक स्वतंत्र मंत्रालय की स्थापना की जाए, जिसके माध्यम से खेतों में गोवंश के उपयोग और जैविक खाद, उर्जा संयंत्रों आदि को बढ़ावा दिया जा सके।
उन्होने बताया कि तीस सितंबर को कुरूक्षेत्र से आरम्भ होकर यह यात्रा अब तक 19,000 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर चुकी है। इस दौरान हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पिश्चम बंगाल, उडीसा, आंध्र प्रदेश, पुडुचेरी, तमिलनाडु ,केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराश्ट्र, गुजरात और राजस्थान का प्रवास कर यात्रा ने कल सायंकाल दिल्ली में प्रवेश किया। दिल्ली में आयानगर, अन्धेरिया मोड़ और लाडोसराय में यात्रा का भव्य स्वागत किया गया। युवकों ने बड़ी संख्या में वाहन रैली में भाग लिया और गोमाता के जयकारों के साथ गोरथ की अगवानी की। दिल्लीवासियों ने सड़क के दोनों ओर खड़े होकर जोरदार पुष्पवर्षा की।
आज यात्रा ग्रेटर कैलाश से आरम्भ होकर त्रिलोकपुरी, यमुना विहार और पीतमपुरा में बड़ी सभाओं को संबोधित करते हुए सायंकाल उत्तम नगर पहुंची। आज दिल्ली में दो सौ से अधिक स्थानों पर यात्रा का अभूतपूर्व स्वागत किया गया।
मुख्य यात्रा का एक हिस्सा सिलिगुड़ी से अलग होकर उत्तर पूर्वांचल के राज्यों का भ्रमण कर रहा है, जिसका समापन 13 जनवरी को अरूणाचल प्रदेश के परशुराम कुण्ड पर होगा। मुख्य यात्रा का समापन 17 जनवरी, 2010 को नागपुर में होगा और 31, जनवरी, 2010 को दिल्ली के रामलीला मैदान में विशाल जनसभा के बाद देशभर से संग्रहीत करोड़ों हस्ताक्षर महामहिम राश्ट्रपति को सौंपकर देश में संपूर्ण गोवंश की हत्या पर कठोर प्रतिबंध की मांग की जाएगी।
अभी तक देशभर में दस हजार से अधिक उपयात्राओं का आयोजन हो चुका है। दिल्ली में 18 से 26 दिसंबर तक 175 उपयात्राओं का आयोजन किया गया। दिल्ली प्रांत से 26 लाख से अधिक हस्ताक्षर संग्रहीत कर संतों को सौंपे गये।
यमुना विहार की सभा को संबोधित करते हुए वरिश्ठ संत महंत नवल किशोरदास ने देशवासियों से अपील की कि वे गोरक्षा के लिए चमड़े से बनी सभी वस्तुओं का बहिश्कार करें और पंचगव्य तथा गाय से प्राप्त अन्य पदार्थों से निर्मित वस्तुओं का अपने दैनिक जीवन में उपयोग करें। उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक घर से गाय के लिए एक रोटी एवं एक रूपया प्रतिदिन अलग निकाला जाना चाहिए। गाय के धार्मिक महत्व को बताते हुए उन्होंने कहा कि गाय की परिक्रमा से जहां समस्त तैतीस करोड़ देवी-देवताओं की परिक्रमा हो जाती है वहीं एक गाय की हत्या से समस्त देवताओं का अपमान होता है।

Thursday, December 24, 2009

गडकरी उवाच

भाजपा अध्यक्ष की पहली प्रेस कांफ्रेंस
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के रूप में अपनी पहली प्रेस कांफ्रेस में राष्ट्रीय मीडिया जगत के मित्रों से मिलने पर मुझे अपार हर्ष हो रहा है। मैं आप सबका हाÆदक स्वागत करता हूं। मैं आपको और आपके माध्यम से समस्त देशवासियों को आनंददायी क्रिसमस दिवस की और समृद्ध - 2010 की शुभकामना देना चाहता हूं। मैं हमारे प्रेरणास्रोत आदरणीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्मदिवस की पूर्व संध्या पर उनके दीघZ और स्वस्थ जीवन की कामना भी करता हूं।
पार्टी द्वारा इस नए महान उत्तरदायित्व को सौंप कर जो भरोसा और विश्वास मुझ में व्यक्त किया गया है, उससे मैं पूर्णत: अभिभूत हूं। मुझे इसका पूर्ण ज्ञान है कि मेरे कंधों पर एक भारी उत्तरदायित्व आ गया है। किंतु, मेरी पार्टी के किसी भी निष्ठावान कार्यकर्ता के लिए कोई कार्य असाध्य नहीं है, यदि वह पार्टी की मूल विचारधारा और आदर्शवाद के प्रति निष्ठावान रहने का संकल्प ले लेता है जैसाकि डॉå श्यामा प्रसाद मुखजÊ और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन में साक्षात अभिव्यक्त हुआ था( यदि वह हमारे समकालीन दो शीर्षस्थ नेताओं - श्री अटल बिहारी वाजपेयी और श्री लाल —ष्ण आडवाणी की प्रेरणादायी विरासत से निर्देशित होता रहता है, यदि वह टीम वर्क और अनुशासन के माहौल में अपने से वरिष्ठ तथा कनिष्ठ सहयोगियों से सीखने की उत्सुकता दर्शाता है जोकि भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी की सदैव से ही परंपरा रही है, और यदि वह अपने साथी कार्यकर्ताओं की विराट सेना, जिसमें पार्टी की सबसे छोटी और दूरस्थ इकाइयों के कार्यकर्ता भी शामिल हैं, से शक्ति ग्रहण करता है तथा बदले में उन्हें शक्ति प्रदान करता है।
मैं प्रथम और सर्वप्रथम एक कार्यकर्ता हूं। मैं जानता हूं और आज इसकी पुन: पुष्टि करता हूं कि मेरे सहयोगी कार्यकर्ताओं की राष्ट्र तथा पार्टी के लिए अथक त्याग-भावना और संघर्ष मेरी पार्टी की दृढ़ता के सबसे बड़े आधार हैं। जहां तक संगठन का सवाल है अनुशासन, दृढ़ संकल्प, परस्पर विश्वास एवं सम्मान यह हमारी कार्य पद्धति की आधारशिला होगी।
विचारधारा का आधार राष्ट्रवाद : भाजपा भारत प्रथम सूत्र पर काम करने वाला दल है। हम भाजपा को राष्ट्र निर्माण के एक उपकरण के रूप में देखते हैं।
मेरी पार्टी की विचारधारा का आधार राष्ट्रवाद था, राष्ट्रवाद है और राष्ट्रवाद रहेगा और यही मेरी पार्टी के प्रत्येक कार्यकर्ता का प्रेरणास्रोत भी बना रहेगा। भारतीय राष्ट्रवाद की जड़ें हमारी पुरातन संस्—ति में निहित हैं, जो समावेशी भी है और समिन्वत भी और वही प्रत्येक राष्ट्रभक्त भारतीय की प्ररेणा का स्रोत भी है। भाजपा वास्तविक सर्वधर्मसमभाव के प्रति प्रतिबद्ध है, वोट-बैंक की पंथ निरपेक्षता के जैसी नहीं। इसके अंतर्गत जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र अथवा नस्ल के आधार पर भारत के नागरिकों के बीच भिéता और भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं है। भारत सबका है और सभी भारत के, सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं। साथ ही सभी का भारत को सुदृढ़ और एकी—त बनाने का समान दायित्व भी है।
अत: भाजपा उस हर नीति और उस हर प्रयास का विरोध करती रहेगी, जिससे राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा को खतरा पहुंचने की संभावना हो। हमारा विरोध जम्मू और कश्मीर में पनपता अलगाववाद तथा असम एवं देश के अन्य भागों में अवैध घुसपैठ, जिसे कांग्रेस पार्टी वोट बैंक की राजनीति के तहत प्रोत्साहित किया है के प्रति हमारा विरोध भारत की एकता और सुरक्षा के लिए सदैव है।
आतंकवाद और नक्सलवाद का संपूर्ण विरोध :
भारत की एकता और सुरक्षा के प्रति ऐसी ही चिंता मुझे आज अपनी पार्टी की वही अविचल स्थिति स्पष्ट करने के लिए विवश कर रही है कि भारत को आतंकवाद और नक्सलवाद से लड़ने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। 26/11 को मुंबई पर हुए आतंकी हमलों में लिप्त डेविड कोलमैन हेडली जैसे अंतर्राष्ट्रीय जेहादी षड्यंत्रकारी द्वारा भारत के खुफिया भेद लेने के लिए बार-बार किए गए दौरों के बारे में हाल के खुलासों और प्रधान कमेटी रिपोर्ट में निकाले गए चिंताजनक निष्कषो± से संकेत मिलता है कि हमारी सुरक्षा प्रणाली में ऐसी खामियां मौजूद हैं, जिनका लाभ राष्ट्र के शत्रु कभी भी उठा सकते हैं। आतंकवाद की तरह ही माओवाद की राष्ट्र विरोधी विदेशी विचारधारा से प्रोत्साहित हुआ नक्सलवाद भी अनेक अबोध जिंदगियों को निगल रहा है, जिसमें हमारे सुरक्षाकÆमयों की जिंदगियां भी शामिल हैं। मेरा संप्रग सरकार से अनुरोध है कि वह इस दोहरे संकट के साथ दृढ़ता से निपटे और मैं इस दिशा में उठाए गए हर उचित कदम के प्रति अपनी पार्टी के समर्थन का विश्वास व्यक्त करता हूं।
राजनीति, सामाजिक-आÆथक सुधारों और राष्ट्र निर्माण का साधन :
जहां मैं राष्ट्रवाद के प्रति प्रतिबद्ध हूं, जिसने मुझे राजनीति की तरफ आकÆषत किया है, वहीं भारत की समृद्धि और इसके सभी लोगों के कल्याण मेरे वैचारिक विश्वास के मूल में है। सार्वजनिक जीवन में मेरे बाद के अनुभव और विधायक तथा मंत्री के रूप में मेरे कार्यकाल ने मेरे इस विश्वास को और अधिक दृढ़ कर दिया है कि राजनीति शक्ति हेतु छीना-झपटी का मैदान नहीं बन सकती, बल्कि इसको सामाजिक-आÆथक सुधार और राष्ट्र-निर्माण का साधन बनना चाहिए। मेरा विश्वास है कि वह समय आ पहुंचा है जब भारत को विकास पर पूरा ध्यान केिन्द्रत करना होगा। भाजपा का समतावादी विकास में विश्वास है। इसकी प्राप्ति के लिए हमारी पार्टी आंतरिक निष्पादन परीक्षा-तंत्र विकसित करने का प्रयास करेगी, ताकि जहां-जहां भी भाजपा सत्ता में है वहां-वहां हर स्तर पर सुशासन सुनिश्चित हो सके।
खेद की बात है कि कांग्रेस ने उस पथ का अनुसरण किया है, Þजहां कुछ लोगों का विकास हो तथा शेष वंचितß। यह निश्चय ही असमर्थनीय भी है और खतरनाक रूप से अस्थिरकारी भी। प्रधानमंत्री के आÆथक सलाहकार डॉ. सुरेश तेंदुलकर की अध्यक्षता वाली समिति का हाल का यह खुलासा चेतावनी का संकेत है कि भारत में गरीबों की संख्या में 10 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है। इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि ग्रामीण भारत में गरीबी 42 प्रतिशत है न कि 28 प्रतिशत जैसाकि पूर्व में अनुमान लगाया गया था। गरीब लोगों और मध्यम वर्ग के लोगों की दुर्दशा को आसमान छूती मूल्यवृद्धि ने और अधिक बढ़ा दिया है - उस दुर्दशा को जिस पर काबू पाने में संप्रग पूरी तरह विफल हुआ है।
इस वास्तविकता को बदलना किसी भी राजनीतिक स्थापना का पहला कर्तव्य होता है। अत: मैं अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से कहना चाहता हूं कि वे अपने वंचित भाई-बंधुओं के चेहरों पर मुस्कान लाने की इच्छा से अभिप्रेरित हों, वे उन किसानों का संकट समाप्त करें, जिन्होंने हजारों की संख्या में आत्महत्याएं कर ली हैं, वे उस कुपोषण का उन्मूलन करें, जो हजारों जनजातीय बच्चों को काल का ग्रास बना रहा है, वे हमारे प्रतिभाशाली युवकों के लिए रोजगार के अवसर सृजित करें।
अंत्योदय के प्रति प्रतिबद्धता : श्री अटल बिहारी वाजपेयी के दूरदÆशतापूर्ण प्रधानमंत्रित्व के अंतर्गत भाजपा-नीत राजग सरकार ने जनादेश का विकास की गति बढ़ाने तथा उसे व्यापक करने के लिए उपयोग किया था। आज मैं अपनी पार्टी के विकास दर्शन को निम्नलिखित नारे में संक्षिप्त रूप में व्यक्त करना चाहूंगा : राष्ट्रवाद अब हमारी प्रेरणा है, सुशासन द्वारा विकास हमारा साधन है और अंत्योदय (जिसका अर्थ है पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति अर्थात् अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, पिछड़े तथा अन्य दुर्बल वगो± सहित अत्यधिक वंचित लोगों को अग्रता प्रदान करना)े हमारा उद्देश्य है। इस नारे के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की ठोस अभिव्यक्ति के रूप में भाजपा के प्रत्येक सदस्य से अपेक्षा करूंगा कि वह अपने कार्यक्षेत्र में कम से कम एक विकास और सेवा प्रकल्प से संबद्ध हो।
आगामी तीन वषो± में भाजपा सुदृढ़तर होकर उभरेगी : मैं इस बात को अधोरेखित करना चाहूंगा भाजपा सुशासन, गतिशील तथा सर्वसमावेशक विकास और आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा को प्रतिबद्ध एक स्वाभाविक शासक दल है। कांग्रेस का एकमात्र विकल्प है। भाजपा को गर्व है कि उसने भारत के राजतंत्र को कांग्रेस की प्रधानता वाली एक धु्रवीय प्रणाली से दो धु्रवीय प्रणाली में रूपांतरित कर दिया है। भाजपा को इस बात पर भी गर्व है कि उसने उस राष्ट्रीय जनतांत्रिक का गठबंधन का नेतृत्व किया था, जिसने ऐसा प्लेटफार्म प्रदान किया, जिस पर कांग्रेस और कम्युनिस्ट पाÆटयों से इतर सभी पाÆटयों का स्वागत हुआ था। मेरा उद्देश्य यह देखना है कि आगामी तीन वषो± में भाजपा उन राज्यों में, जहां वह पारंपरिक रूप से सुस्थापित है और जहां उसकी अब तक उपस्थिति हाशिये पर बनी हुई है, और अधिक मजबूत बनकर उभरे। इसी के साथ-साथ भाजपा राजग को और अधिक विस्तार देने तथा मजबूत करने के लिए भी प्रयास करेगी ताकि वह प्रतिपक्ष की एकता हेतु एक मजबूत मंच बन सके।
इस उद्देश्य की पूÆत के लिए पहली अपेक्षा यह है कि सभी स्तर पर भाजपा का पार्टी संगठन मजबूत हो। पार्टी का भौगोलिक विस्तार करना और उसको और अधिक एकत्व तथा मजबूती प्रदान करना मेरी पहली प्राथमिकता होगी।
अंतत: जो लोग मुझे पुष्प या पुष्पहार देना चाहते है उनसे मेरी अपील है कि उतनी धन राशि किसान सहायता कोष में जमा करें, जिसे आत्महत्या करने वाले किसान परिवारों के कल्याण के लिए उपयोग में लाया जाए।

Wednesday, December 23, 2009

कब देश में गौओं पर अत्याचार बंद होगा

गत दिनों प्रात: पूर्वी दिल्ली के सोनिया विहार इलाके में गौकशी की घटना जैसे-जैसे क्षेत्र में फैलती गयी लोगों में सन्नाटा छा गया। दर्जन भर गायों व बछड़ों के छत विक्षत अंग देखकर लोग स्तब्ध रह गये। विहिप, बजरंग दल व अन्य कई हिन्दू संगठनो के कार्यकर्ता देखते ही देखते सोनिया विहार के पास घटना स्थल पर एकत्रित हो गये और पुलिस तथा प्रशासन की नाकामी के खिलाफ नारे बाजी करने लगे।
सोनिया विहार थानान्तर्गत हुई गौकशी की दर्दनाक घटना की जानकारी जैसे ही क्षेत्र में फैली, लोग अपने घरों से निकलकर गउ रक्षार्थ सड़को पर आ गये। विश्व हिन्दू परिशद् करावल नगर जिला के अध्यक्ष श्री मदन सिंह विश्ट, उपाध्यक्ष श्री राजेन्द्र शर्मा, सहमंत्री सतीश कौशिक , बजरंग दल के जिला संयोजक शिव कुमार, जिला सुरक्षा प्रमुख तरूण बसंल, सेवा भारती के जिला मंत्री रूप किशोर, सोनिया विहार की निगम पारसद अन्नपूर्णा शर्मा व करावल नगर की पारसद ऊशा शास्त्री, राश्ट्रवादी शिव सेना के अध्यक्ष जय भगवान गोयल के साथ बड़ी संख्या में गौभक्तों ने घटना से क्षुब्ध होकर नारेबाजी की। सोनिया विहार के एस एच ओ सफदर अली व ए सी पी सागर के इस आश्वासन के बाद कि हम एफ आई आर दर्ज कर अपराधियों को तुरन्त पकडे़गे, मामला शान्त हुआ बाद में पुलिस ने एफआई दर्ज कर कार्यवाही शुरू की।

Monday, December 21, 2009

किन्नरों का आतंक और प्रशासन लाचार

शाहजहांपुर, जागरण कार्यालय। सोमवार की रात में सप्त क्रांति सुपर फास्ट एक्सप्रेस में आधा दर्जन से अधिक किन्नरों ने तीन दर्जन बिहार प्रांत के यात्रियों को पीटकर मोबाइल समेत हजारों रुपये लूट लिए।
2558 डाउन सप्त क्रांति सुपर फास्ट एक्सप्रेस शनिवार की सायं आठ बजे बरेली रेलवे स्टेशन से शाहजहांपुर के लिए चली। इंजन से दूसरी बोगी द्वितीय श्रेणी कोच 04463 में बिहार के यात्री खचाखच भरे थे। बरेली से ट्रेन चलने पर आधा दर्जन से अधिक किन्नर बोगी में घुस गए। बरेली से चलने के बाद किन्नर यात्रा कर रहे यात्रियों की जेब से जबरन रुपये व मोबाइल फोन निकालने लगे। जिस यात्री ने रुपये देने का विरोध किया उसे किन्नरों ने थप्पड़ व घूसों से पीट दिया। पिटाई को लेकर यात्री घबरा गए और शोर मचाना शुरु कर दिया। बिलपुर व कटरा के बीच किन्नरों ने ट्रेन की चेन पुलिंग कर दी और बोगी से उतर गए। चेन पुलिंग के बाद ट्रेन में चल रहा आरपीएफ का स्कॉर्ट, गार्ड व ड्राइवर बोगी के पास आए। यात्रियों ने बताया कि आधा दर्जन से अधिक किन्नर बोगी में थे और यात्रियों की पिटाई करने के बाद मोबाइल फोन व रुपये लूटकर ले गए है। बिहार राज्य के बेतिया जिले के यात्री निराहसन से सौ रुपये व एक मोबाइल, मुजफ्फरनगर के कुदरत से सौ रुपये व मोबाइल, देवरिया जिले के दुर्गेश से डेढ़ सौ रुपये, मोतिहारी जिले के गुड्डन से पांच सौ रुपये, राम खिलावन से दो सौ रुपये, एक मोबाइल, पन्ना लाल से दो सौ रुपये, दरभंगा जिले के निम्मा से सौ रुपये, वीरेश से पचास रुपये, जानकी से सौ रुपये लूटकर ले गए है। जीआरपी थानाध्यक्ष अरविंद सिंह ने बताया कि लुटे यात्रियों को बोगी से नीचे उतारा गया। उनसे किन्नरों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए कहा तो कोई यात्री रिपोर्ट दर्ज कराने को तैयार नहीं हुआ।
किन्नरों के खिलाफ चलेगा अभियान
स्टेशन अधीक्षक ओमशिव अवस्थी ने बताया कि ट्रेन में चलने वाले किन्नरों के खिलाफ आरपीएफ व जीआरपी को लेकर अभियान चलाया जायेगा। यदि कोई किन्नर यात्री से पैसे अवैध रूप से वसूलते पकड़ा गया तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी।
साभार दैनिक जागरण

Saturday, December 12, 2009

पैसे लेकर मर्डर की खबर पी गए?

जिलों में भ्रष्ट मीडिया और करप्ट ब्यूरोक्रेशी का घातक गठजोड़ कहर बरपाने लगा : बिहार के कटिहार जिले के इलेक्ट्रानिक मीडिया के एक पत्रकार ने किया खुलासा : कनीय अभियंता की हत्या के आरोपी अधिकारी को मीडिया का अभयदान : मीडियाकर्मियों के आगे इंसाफ के लिए गुहार लगा रही कनीय अभियंता की पत्नी : किसी ने हत्यारोपी के खिलाफ खबर नहीं दिखाई : जिसने खबर पर काम करने की कोशिश की उसे पत्रकारों ने ही गालियां दीं और धमकाया : हत्यारोपी के प्रभावशाली होने से पुलिस हाथ नहीं डाल रही : मेरा नाम नीरज कुमार झा है। मैं बिहार के कटिहार में लाइव इंडिया के लिए काम करता हूं। मुझे ये कहते हुए काफी शर्म आ रही है की यहां की पत्रकारिता की हालत बहुत ही खराब है। कटिहार में पत्रकारों का मन न्यूज का काम करने से ज्यादा पैसे के लेन-देन में लगता है। यहां 'खबरों की खबर' नाम से एक लोकल न्यूज़ चैनल कटिहार के डीएम की मेहरबानी पर चलता है। इसका काम बस यही है कि पत्रकारिता के नाम पर लोगो को परेशान करना और उनसे पैसे लेना।
इन लोगों का दबदबा बहुत ज्यादा है। यहीं के एक स्थानीय पत्रकार ने राज्य सूचना आयोग में इस चैनल के अवैध प्रसारण को बंद करने की गुहार लगाई थी। आयोग से इसे बंद करने का आदेश भी कटिहार के डीएम को मिला फिर भी आज 4 माह बीत जाने के बाद भी चैनल धड़ल्ले से चल रहा है। इस चैनल के लोगों और कटिहार की मीडिया के ज्यादातर लोगों का मतलब खबर को ईमानदारी से चलाना नहीं बल्कि खबरों को जरिया बनाकर पैसे लेना होता है।
जो पत्रकार इनके साथ इस धंधे में नहीं रहता वो या तो किसी चैनल में काम करने के काबिल नहीं माना जाता या फिर उसके काम में तरह-तरह की अड़चन पैदा की जाती है। एक घटना का जिक्र करना चाहूंगा। कटिहार के जिला शिक्षा अधीक्षक प्रेमचंद्र कुमार एक कनीय अभियंता की हत्या के आरोपी हैं। उन पर बिहार के मुख्यमंत्री के आदेश पर कटिहार के सहायक थाने में मुकदमा दर्ज हुआ। केस नंबर 372/09 है। इसकी खबर कटिहार की मीडिया ने प्रसारित नहीं किया। वजह, जिला शिक्षा अधीक्षक प्रेमचंद्र कुमार से मोटी रकम इन लोगों ने हासिल कर लिया था।
कटिहार की पुलिस में गहरी पैठ रखने वाले जिला शिक्षा अधीक्षक प्रेमचंद्र कुमार की गिरफ़्तारी तक नहीं हुई। दो छोटे-छोटे बच्चे के साथ रोती बिलखती कनीय अभियंता शशि भूषण प्रशाद की पत्नी कुमारी संगीता सिन्हा ने कटिहार के हर मीडिया वाले के सामने इंसाफ की गुहार लगाई पर जिले की मीडिया को किसी भावना या कर्तव्य से कोई लेना-देना नहीं। इनका ईमान सिर्फ पैसा है। पैसे जिला शिक्षा अधीक्षक प्रेमचंद्र कुमार ने दे ही दिया है तो खबर काहे की चलानी है। इन्होंने तो खबर अपने ऊपर वालों को भी नहीं बताया। लेकिन मैंने इसी खबर को अपने उपर बताया और मुझे खबर भेजने को कहा गया। लेकिन जब मैं जिला शिक्षा अधीक्षक प्रेमचंद्र कुमार के पास बाइट लेने गया तो उन्होंने कोई भी बाइट देने से इनकार कर दिया। कटिहार के मेरे मीडिया के भाई लोग मुझे गाली देने लगे और कहा कि तुम्हें जान से हाथ धोना है तो इस खबर को करो।
मैं कटिहार का नहीं हूं इसलिए यहां के स्थानीय पत्रकार मुझे कुछ ज्यादा ही डराते धमकाते हैं। पर मेरी चिंता कनीय अभियंता शशि भूषण प्रसाद की पत्नी और उनके बच्चे हैं जो इंसाफ के लिए भटक रहे हैं पर उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। इस मामले में अगर कोई मदद कर-करा पाए तो हम सब उम्मीद कर सकते हैं कि बहुत सारी खराब स्थितियों-परिस्थितियों के बावजूद पीड़ितों को अंततः न्याय मिल जाता है।
-नीरज कुमार झा
09431664370

Thursday, December 10, 2009

संसदीय परंपरा पर सवाल



राष्ट्र प्रश्नाकुल है। राष्ट्रजीवन में प्रश्नकाल है। ढेर सारे प्रश्न हैं, लेकिन संसद में शून्यकाल है। संसद देशकाल का दर्पण है। करोड़ों लोगों के हर्ष, विषाद, आस्था, अपेक्षा का सर्वोच्च प्रतिनिधि सदन है। सासद अपने क्षेत्र की जनता के प्रवक्ता और आशादीप हैं। वे इसीलिए मान्यवर हैं और सरकार की प्रत्येक गतिविधि पर सवाल करने, जवाब पाने के अधिकारी हैं, लेकिन बीते 30 नवंबर को सवाल पूछने वाले अधिकाश 34 मान्यवर अनुपस्थित थे। प्रश्नकाल थोड़ी ही देर चला। आहत लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने कहा कि यह गंभीर मसला है। कार्यवाही का यह एक घटा ही लोकतंत्र का सार है। पिछले डेढ़-दो दशक से यह प्रवृत्ति बढ़ी है। 1989 में दो बार, 1988 में तीन और 1985 में पांच बार ऐसी ही स्थितिया आई हैं। हर दफा गंभीर वक्तव्य आते हैं, लेकिन अनुपस्थिति की मूल वजहों पर गंभीर चिंतन नहीं होता। कानून निर्माण के समय भी कोरम का अभाव रहता है। बजट चर्चा के समय भी सदस्य संख्या घट जाती है। महंगाई जैसे अखिल भारतीय आर्थिक प्रश्न पर भी उपस्थिति संतोषजनक नहीं थी। मूलभूत प्रश्न यह है कि मान्यवरों की सर्वोच्च प्राथमिकता क्या है? क्या उनके अपने उद्योग-व्यापार ही उनकी प्रथम वरीयता हैं? क्या राजनीति संसदीय कामकाज से ज्यादा सर्वोपरि है? क्या निमंत्रण, भोज या उद्घाटन संसदीय कार्यवाही और बहुमूल्य प्रश्नकाल की तुलना में ज्यादा औचित्यपूर्ण हैं?
प्रश्नोत्तर संसदीय परंपरा का प्राणतत्व है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने काफी संघर्ष के बाद अंग्रेजी सत्ता से प्रश्नकाल की बहाली करवाई थी। अंग्रेज अपने यहा पार्लियामेंट चलाते थे, लेकिन उपनिवेशों में तानाशाही थी। भारत, अमेरिका आदि उपनिवेश जवाबदेह संसदीय परंपरा की माग कर रहे थे। 1857 के स्वाधीनता संग्राम में ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी। 1861 के भारतीय परिषद अधिनियम में भारत की विधान परिषद को कानूनी कामकाज तक ही सीमित किया गया था। भारतवासी प्राचीन प्रश्नकाल परंपरा की बहाली चाहते थे। संघर्ष के चलते 1892 के अधिनियम में प्रश्न करने का अधिकार स्वीकार हुआ। अनुपूरक प्रश्नों की छूट नहीं थी। अंग्रेजों ने 1909 के भारतीय परिषद अधिनियम से यह छूट भी दी, लेकिन प्रश्न पूछने और उत्तर पाने की वास्तविक स्थिति 1919 के मोंटेगो चेम्सफोर्ड सुधारों से मिली। ब्रिटिश संसद स्वयं में संप्रभु थी, लेकिन भारतीय विधान परिषद पर गवर्नर जनरल का वीटो था। इसी पद्धति के विकास से भारत ने ब्रिटिश संसदीय परंपरा अपनाई।
कायदे से ब्रिटिश संसद के 1935 के अधिनियम को शून्य करके अपनी संसदीय प्रणाली बनानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। केंद्रीय सत्ता संसद के प्रति जवाबदेह है। प्रश्नकाल संसद का दिव्य मुहूर्त है। प्रश्नाकुल राष्ट्र के जनप्रतिनिधि प्रश्नाकुल होने चाहिए, लेकिन खामिया भी हैं। पहली लोकसभा में स्वीकार 43,725 प्रश्नों में से केवल 61 प्रतिशत प्रश्नों के ही उत्तर मिले। दूसरी लोकसभा में 24,631 प्रश्न स्वीकृत हुए, लेकिन 47 प्रतिशत का ही जवाब मिल पाया। तीसरी में 56,355, चौथी में 93,538, पाचवीं में 98,606, छठवीं में 50,144 और सातवीं में 1,02,959 प्रश्न स्वीकृत हुए। उत्तर का प्रतिशत 35 से 39 के बीच ही रहा। नौवीं से लेकर बारहवीं लोकसभा में उत्तर प्रदेश 20 से 25 प्रतिशत के आसपास रहा। संसदीय प्रश्नों की गुणवत्ता घटी है। सरकार की जवाबदेही गैर-जिम्मेदाराना हुई है। प्रश्नों के उत्तर की तैयारी में लाखों रुपये खर्च होते हैं। एक घटे के प्रश्नकाल पर 15-20 लाख रुपये का खर्च होता है। प्रश्नों से सरकार को मदद मिलती है। सरकारी कामकाज और प्रशासन में चुस्ती आती है। राष्ट्र के समक्ष हजारों प्रश्न हैं। गरीबी, भुखमरी, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजी-रोजगार और सरकार प्रायोजित पुलिस अत्याचार के चीखते प्रश्न हैं। नक्सलपंथ, जिहादी आतंक, अलगाववाद और क्षेत्रीयताओं के प्रश्न नींद हराम कर चुके हैं। भाषाई हिंसा, बाग्लादेशी घुसपैठ और बाजारवादी अर्थव्यवस्था से कमजोर होती राष्ट्र-राज्य की शक्ति के प्रश्न अनुत्तरित हैं। यहा प्रश्न ही प्रश्न हैं। प्रश्नों का देशकाल है। बावजूद इसके प्रश्न पूछने वाले ही गायब हो रहे हैं।
सवाल पूछने वाले भी उत्तर देने को बाध्य किए जाने चाहिए। पहले ऐसी परंपरा थी। पहली लोकसभा की अनुपस्थिति संबंधी समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि लोकसभा को अधिकार है कि वह अनुपस्थित सदस्य से कारण पूछे। सभा के प्रति सदस्यों का कर्तव्य सर्वोपरि है। वे सभा से तभी अनुपस्थित हों जब अनुपस्थित होने के लिए विवश किए जाएं। नियम समिति ने छुट्टी लेने के नियम 1950 में बनाए। अनुपस्थिति संबंधी समिति ने जुलाई 1957 में कहा कि अनुपस्थिति का कारण बीमारी बताए जाने पर डाक्टरी प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं होगी, लेकिन गैरहाजिरी से चिंतित सदन ने एक सदस्य से डाक्टरी प्रमाण पत्र भी मागा। अध्यक्ष मावलंकर ने तमाम आदर्श अपनाए। उन्होंने 1951 में मा की बीमारी व 1953 में स्वयं की बीमारी की छुट्टी मागी। सदन में उनके संदेश पढ़े गए। 1953 में सिंचाई मंत्री गुलजारी लाल नंदा ने भी लिखित छुट्टी मागी। 1952 में वित्त मंत्री देशमुख ने राष्ट्रमंडल की बैठक में जाने के लिए और कृषि मंत्री एसके पाटिल ने 1960 में अमेरिका यात्रा के लिए लिखित छुट्टी ली। लोकसभा में सदस्यों की अनुपस्थिति संबंधी समिति छुट्टी वाले आवेदनो पर विचार करती है। समिति को उपस्थिति के संबंध में अनेक अनुषंगी अधिकार हैं। संसद या विधानमंडल की सदस्यता विशेषाधिकार देती है। मोटा भत्ता, वेतन, ढेर सारी सुविधाएं, हनक और ठसक देती हैं। सदस्यता अपराधी और माफिया को भी माननीय बनाती है, लेकिन सदस्य उन्मुक्त नहीं हैं। वे सदन की सेवा के लिए ही वेतन पाते हैं। उनकी अनुपस्थिति प्रत्येक दृष्टि से अक्षम्य है। लोकसभा के अध्यक्ष सदस्यों की अनुपस्थिति संबंधी समिति को गैरहाजिरी की बढ़ती प्रवृत्ति पर रिपोर्ट देने के निर्देश दें। एक दिन की भी गैरहाजिरी पर कारण बताओ नोटिस जारी होना चाहिए। दलों के सचेतक और नेता केवल वोट वाले दिन ही उपस्थिति सुनिश्चित कराते हैं। शेष समय अपने सदस्यों को छुट्टा रखते हैं। सदन की कार्यवाहिया निराश करती हैं। राष्ट्रीय समस्याओं पर भी गंभीर चर्चा नहीं होती। संसद और विधानमंडलों को गरिमामय बनाना राष्ट्रीय आवश्यकता है।
संसद की सेवा ही हमारे सासदों की सर्वोच्च प्राथमिकता क्यों नहीं है? भारत में प्राचीनकाल से ही प्रश्नोत्तर परंपरा है। ऋग्वेद में सैकड़ों प्रश्न हैं। उत्तर वैदिक काल का समूचा दर्शन प्रश्नोत्तर है। वाल्मीकि रामायण में राम ने भरत से खेती-किसानी और राज्य व्यवस्था से जुड़े तमाम प्रश्न पूछे थे। यक्ष-युधिष्ठिर सवाल-जवाब विश्वविख्यात हैं। महाभारत का सभापर्व संसदीय परंपरा की शान है। सभा में जानबूझकर न जाना और जाकर चुप रहना पाप है। सभा में घटित दोष का आधा पाप अध्यक्ष पर, एक चौथाई मौन सदस्यों पर और बाकी एक चौथाई गलती करने वालों पर पड़ता है। प्राचीन भारत के राजकाज में प्रश्न थे, उनके उत्तर थे, लेकिन इस्लामी, अंग्रेजी राज ने राजा की जवाबदेही घटाई। स्वाधीनता संग्राम सेनानियों ने इसकी पुनस्र्थापना की। स्वतंत्र भारत की राजनीति ने इसका कबाड़ा कर दिया है। संसदीय परंपरा को संवारना, संव‌िर्द्धत करना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है। जनता सर्वोच्च न्यासी है। जनगणमन देखे, जाचे कि उसके प्रतिनिधि क्या कर रहे हैं?
[हृदयनारायण दीक्षित: लेखक उप्र सरकार के पूर्व मंत्री हैं]

साभार दैनिक जागरण