Thursday, October 28, 2010

पुलिस ने गवाह को थाने में बंद कर पीटा

Oct 25, 01:07 am

पश्चिमी दिल्ली, जागरण संवाददाता : पुलिस का विद्रूप चेहरा एक बार फिर सामने आया है। बिंदापुर इलाके में एक युवक को पुलिस वालों ने अपने खिलाफ गवाही देने पर जमकर पीटा। उसके साथ रहे दोस्त को भी नहीं बक्शा गया। इतना ही नहीं बात न मानने पर झूठे मामलों में फंसाने की धमकी भी दी।

करीब एक महीने पहले बिंदापुर इलाके में पुलिस वालों ने डंडा मारकर फल विक्रेता लियाकत अली का हाथ तोड़ दिया था। आरोप है कि पुलिस वाले लियाकत से पैसे मांग रहे थे। इस मामले में उत्ताम नगर निवासी शंकर गवाह है। शंकर का आरोप है कि शनिवार रात को वह किसी काम से बिंदापुर गया था। तभी उसके दोस्त इज्जत ने बताया कि रेहड़ी चालक इरफान को पुलिस ने पकड़ लिया है। इस पर दोनों मामले की जानकारी के लिए थाने पहुंचे। जैसे ही शंकर ने अपना परिचय दिया, हेड कांस्टेबल प्रहलाद सिंह भड़क उठा और शंकर से गाड़ी की चाभी और मोबाइल छीन लिया। इसके बाद पुलिसकर्मियों ने दोनों को थाने में बंद कर जमकर पीटा। इतना ही नहीं शंकर को धमकाते हुए गवाही न देने की बात कही। बात न मानने पर झूठे मामलों में फंसाने की धमकी भी दी। रविवार को पुलिस अधिकारियों को जब मामले की जानकारी मिली तो दोनों को छोड़ने का आदेश दिया गया। पुलिस अधिकारियों की माने तो रेहड़ी-पटरी लगाने वाले हमेशा मनमानी करते है। ऐसे में पुलिस जब सख्ती बरतती है, तो वह पुलिस वालों पर ही आरोप लगाना शुरू कर देते हैं।

अतिरिक्त पुलिस आयुक्त आरएस कृष्णैया का कहना है कि उन्हें मामले की जानकारी नहीं है। मामले की छानबीन कराई जाएगी।

Sabhar Dainik Jagran

Wednesday, September 1, 2010

पुलिस की अधूरी जानकारी के विरूद्ध पत्रकार राजीव कुमार ने सीआईसी की शरण ली

रविन्द्र कुमार द्विवेदी


दिल्ली पुलिस आपके लिए आपके साथ का नारा देने वाली दिल्ली पुलिस को शायद इसका मतलब शायद पता नही है।तभी तो आए दिन दिल्ली पुलिस की कारस्तानी अखबारों में छपती रहती है। दिल्ली पुलिस आम जनता की मदद तो दूर समाज के बुद्धिजीवी वर्ग को भी अपने सामने कुछ नही समझती है। ऐसे ही एक घटना के तहत एक पत्रकार ने दिल्ली पुलिस की वास्तविकता देखी।

तात्काजलिक हिन्दी पत्रिका भारतीय पक्ष के पत्रकार राजीव कुमार पिछले कई साल से उत्तम नगर के संपत्ति संख्या ए-20 सुभाष पार्क में किराये पर अपने परिवार के साथ रह रहे थे। 22/10/2009 को राजीव के मकान मालिक सुरेश ने राजीव से जानबूझकर नशे में धुत्त होकर फसाद किया व उन्हें घर से निकालकर उनकी पत्नी शिल्पी और एक साल के पुत्र आकाश को बंधक बना लिया। राजीव ने अंत में 100 नंबर पर फोन किया। पीसीआर की गाड़ी आई, राजीव की मदद करने को कौन कहे उल्टे उन्हें डांटने-फटकारने लगी। राजीव ने मिन्नतें की कि मेरे बच्चे व पत्नी की जान खतरे में है। इस पर भी पुलिस वालों का दिल नही पसीजा। वे पुलिसिया रौब दिखाना शुरू कर दिया. इन दोनों में प्रधान सिपाही सिब्बनल चन्द्रा जिसका बेल्टज नंबर 134 पी.सी.आर. है ने डांटते-फटकारते हुए कहा कि हम क्याब करें तुम्हा रे पत्नील और बच्चेप की जान खतरे में है अगर यह मकान मालिक हमारा सर फोड़ दे तो तब क्याे होगा और जो दूसरा प्रधान सिपाही भगवान सिंह जिसका बेल्ट नंबर 6309 पी.सी.आर. है वो घटना स्थ ल पर आया ही नही वह वहीं तिराहे पर वैन लगाकर वहां की रौनक देखने में व्य स्तव था. अंत में ये दोनों पुलिसिया रौब झाड़ते हुए चले गये. सनद रहे कि इन दोनों पुलिसवालों का नाम और बेल्टआ नंबर आर.टी.आई. के तहत पता चला है. बाद में थाना बिन्दापुर से एएसआई राजेन्द्र सिंह आया। वह पत्रकार राजीव कुमार को न्याय दिलाने के बजाय उन्हीं पर भड़क उठा।

राजीव ने खुद को पत्रकार बताते हुए, एएसआई को सारा मामला समझाते हुए उससे अनुरोध किया कि वह उनकी पत्नी व पुत्र को मकान मालिक सुरेश के बंधक से छुड़ाए। राजेन्द्र सिंह ने पत्रकार राजीव कुमार से काफी बत्तमीजी से उसका परिचय पत्र मांगा। राजीव कुमार द्वारा परिचयपत्र देने के बाद भी राजेन्द्र सिंह ने उससे काफी अभद्रता से बात की और परिचयपत्र को अपने जेब में रख लिया। राजीव ने कई बार परिचयपत्र वापस मांगने के बाद एएसआई ने राजीव को फर्जी पत्रकार के जुर्म में जेल में बंद करने की धमकी देते हुए परिचयपत्र वापस कर दिया। बिन्दापुर थाने का यह बद्जुबान एएसआई लगातार मकान मालिक सुरेश का पक्ष लिये जा रहा था, आखिरकार आस-पास के लोगों ने जब एएसआई पर दबाव बनाया तब जाकर कहीं उसने कुछ मजबूरन करीब 12 घंटे के बाद राजीव की पत्नी और उनके बच्चे को सुरेश के चंगुल से मुक्त कराया। राजीव ने इस पूरे घटना की एफआईआर दर्ज करवानी चाही लेकिन राजेन्द्र सिंह ने कोई भी शिकायत दर्ज करने से मना कर दिया।

फसाद करने वाले मकान मालिक सुरेश कोई काम-काज नही करता है। उसका बस एक मात्र काम शराब, गांजा पीकर अश्लील हरकत करना, गंदी-गंदी गालियां देना है। झगड़े के समय भी सुरेश के पास गांजे की पुड़िया थी लेकिन एएसआई राजेन्द्र सिंह ने राजीव के कहने पर भी उस ओर कोई ध्यान नही दिया। इसके अलावा मकान मालिक सुरेश अपनी भाभी को जलाकर मारने के आरोप में हरियाणा की जेल में सजा भी काट चुका है। आखिरकार राजीव को उनकी पत्नी और बच्चा सकुशल मिल गया लेकिन घर के कुछ अन्य सामान आज तक नही मिल पाये। सामानों में टीवी, सीलिंग फैन, ट्यूबलाइट व अन्य जरूरी दस्तावेज घर में ही रह गया। राजीव कुमार ने मकान तो बदल लिया किन्तु उनका सामान वापस नही मिला राजीव कुमार ने जब सुरेश से अपना सामान मांगा तो उसने राजीव को धमकी दिया कि यदि उसने अपना सामान वापस मांगा तो वो उसे और उसके परिवार को जान से मरवा देगा। अगर धमकी की शिकायत पुलिस से की तो उसके उपर पचास हजार की चोरी का झूठा आरोप लगवाकर जेल भिजवा देगा। सुरेश की ज्यादती और दिल्ली पुलिस की नाइंसाफी से तंग आकर आखिरकार राजीव ने जनसूचनाधिकार अधिनियम 2005 का उपयोग करते हुए दिल्ली पुलिस से घटना की विस्त्रृत जानकारी मांगी, साथ ही अपनी शिकायत कमिश्नर से कर पुलिस द्वारा उठाए गए कदमों का भी विवरण आरटीआई के तहत मांगा था।

इसके उत्तर में दिल्ली पुलिस कोई सटीक जवाब देने के बजाय गोलमटोल जवाब देकर राजीव को गुमराह करने की पूरी कोशिश की। दिल्ली पुलिस ने सूचना अधिकार के मूल नियमों को ठेंगा दिखाते हुए अधूरा जवाब भेज दिया कि राजीव का कोई भी सामान मकान मालिक के पास नहीं है, उस दिन मकान मालिक से कोई भी झगड़ा नही हुआ था। और मजबूर होकर राजीव ने मामले को केन्द्रीय सूचना आयोग के संज्ञान में लाने हेतु केन्द्रीय सूचना आयुक्त को पत्र भेजा है। उन्हें उम्मीद है कि सूचना आयोग के माध्यम से उन्हें सही जानकारी के साथ न्याय भी मिल सकेगा।

Tuesday, July 27, 2010

पुलिस अपना आचरण सुधारे-द्विवेदी

अखिल भारत हिन्दू महासभा दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष रविन्द्र कुमार द्विवेदी ने पत्रकार राजीव कुमार को जान से मारने की धमकी देने कीशिकायत पर स्थानिय बिन्दापुर पुलिस द्वारा कोई कदम न उठाने की कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा कि इससे साबित होता है कि पुलिस अपराधियों को संरक्षण देकर अपने कर्तव्य से विमुख हो रही है। इससे आम जनता के जान-माल की सुरक्षा की गारण्टी से आम जनता का विष्वास उठता जा रहा है।

जारी बयान के अनुसार 22 अक्टूबर, 2009 को पत्रकार राजीव कुमार की पत्नी और उनके नन्हें बेटे को बंधक बनाकर उसके मकान मालिक सुरेष कुमार ने राजीव कुमार को भगा दिया था। सौ नंबर पर फोन करने के बाद 12 घण्टे के बाद स्थानीय एएसआई राजेन्द्र सिंह ने जनता के भारी दबाव के बाद हस्तक्षेप कर उनके पत्नी व बच्चे को सुरेष के बंधक से मुक्त करवाया, लेकिन उनका घर में रखा सामान बाद में दिलवाने का आष्वासन दिया गया। पत्रकार राजीव कुमार ने उसी वक्त किराये का नया मकान ले लिया था। जब राजीव को अपना सामान वापस नही मिला तो उन्होने आर0टी0आई0 एक्ट 2005 के तहत जानकारी मांगी।

पुलिस विभाग से राजीव को भेजी गई जानकारी में मकान मालिक सुरेष के पास उसका कोई सामान नहीं होने और राजीव की षिकायत पर जाँच रिपोर्ट लंबित होने की भ्रमित करने वाली जानकारी देकर सच्चाई को बड़ी सफाई से छिपा लिया। पुलिस विभााग की भ्रमित करने वाली आधी-अधूरी जानकारी के विरूद्ध राजीव ने केन्द्रीय सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया है।

श्री द्विवेदी ने जारी बयान में कहा कि पुलिस को आम नागरिकों के प्रति अपना आचरण सुधारना होगा, अन्यथा आम जनता का आक्रोष और जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के प्रति बढ़ती जागरूकता के सामने उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

Monday, July 19, 2010

इस्‍लाम शांति का मजहब है?

इस्‍लाम शांति का मजहब है?


देश की महंगाई सुरसा की तरह मुंह बाये है इसके लिए कौन जिम्मेदार है सोनिया गाँधी जवाब दो ?



महंगाई डायन खाय जात है...

लफ्जों से ज्‍यादा ये चित्र इस सरकार की और महंगाई की वास्‍तविकता को बयां करता है। इसको देखकर साफ हो जाता है कि कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ही इस महंगाई को बढाने के लिए जिम्‍मेदार है। और इसकी चेयरपर्सन श्रीमती सोनिया गांधी की चुप्‍पी भी इस महंगाई को बढाने के पक्ष में दिखती है। क्‍यों आजतक उनका एक भी वक्‍तव्‍य महंगाई को काबू में करने के लिए लिए नहीं आया। इसका मतलब की कांग्रेस की अध्‍यक्षा ही इस महंगाई को बढाने के लिए वास्‍तविक जिम्‍मेदार है

Monday, July 12, 2010

नई दिशायें

अंक-1 नई दिशायें


रविन्द्र कुमार द्विवेदी

वातावरण में शाम की कालिमा अपने पंख फैलाने को आतुर थी। पवन का मन्द-मन्द झोंका मौसम को सुहाना बना रहा था। कनाॅट प्लेस के चैराहे पर एक कोने के एकांत में खड़े हमीद और अकबर बातचीत में मशगूल थे। अकस्मात अकबर थोड़ा जोश में आते हुए बोला-

‘अगर तूने ऐसा कर दिखाया तो मैं तुझे मान जाऊंगा, अपना नाम बदल लूंगा।’ हमीद उसकी बात सुनकर खिलखिलाते हुए हँस पड़ता है। हमीद की हँसी अकबर को बहुत चुभती है। वो जोष में होष खोते हुए चीख पड़ता है-

‘चुप, चुप हो जा हमीद।’

हमीद उस पर व्यंग्य कसता है- ‘किस-किस को चुप करायेगा अकबर? तेरी ऐसी बचकानी बात जो भी सुनेगा, तुझ पर बेपनाह हँसेगा।’ हमीद की बात सुनते ही अकबर की आँखें हैरत से फैल जाती हैं। वो अपनी चीख दबाते हुए कहता है-

‘ मैंने ऐसा क्या कह दिया हमीद ’?

हमीद अकबर को गौर से देखते हुए बोला-

‘पहले ये बता, तू अपना कौन-सा नाम बदलने की बात कर रहा है? जल्दी बता।’

‘मेरा एक ही नाम है-अकबर!’

‘लेकिन ये तो पहले से ही बदला हुआ नाम है। फिर इस नाम पर इतना घमण्ड क्यों दिखा रहा है। हुँह........ बदले हुए नाम पर मर्दानगी। अरे, ये मर्दानगी नहीं, नपुंसकता है।’ कहते ही हमीद उसे नफरत से देखता है। अकबर का चेहरा गुस्से से लाल हो जाता है। वो गुस्से में काँपते हुए कहता है-

‘मेरे जमीर पर तोहमत मत लगा हमीद, वरना तेरे हक में अच्छा नहीं होगा।’

‘क्या अच्छा नहीं होगा? क्या पहले तेरा नाम राम आसरे नहीं था।?’ हमीद कटाक्ष करते हुए बोला।

‘था, लेकिन तब मैं सनातनी था। अब सच्चा मुसलमान हूँ। खुदा की इबादत करता हूं।’ अकबर बेबाकी से बोला। हमीद के चेहरे पर कुटिल मुस्कान फैल जाती है। वो फिर व्यंग्य कसता है- ‘यानी नाम के साथ मजहब और चेहरा भी बदल जाता है। मूर्तिपूजक, मूर्तिभंजक बन गया। राम आसरे के नाम से मूंछे ऊंची रखने वाला मूंछे नीची करा बैठा। अरे, जो कौम का न रहा, जिसमें वो पैदा हुआ, तो हमारे मजहब से क्या वफादारी दिखायेगा।’

हमीद की बात सुनकर अकबर के मन में तूफान मच जाता है। यह क्या सुन लिया उसनें। वो सच्चे मन से इस्लाम में दीक्षित हुआ मिशनरी वालों ने भरोसा दिलाया कि उनक मजहब में सबको बराबरी का दर्जा मिला हुआ है। लेकिन यह क्या था? यहाँ तो उसका उपहास उड़ाया जा रहा है। क्या यही है बराबरी का दर्जा?

हमीद ने मानो उसके मन के तूफान को समझ लिया। उसने बड़ी कुटिलता से कहा- हाँ, यही है बराबरी का दर्जा। गैर इस्लामियों को इस्लाम में लाने के बाद सबको तुम्हारी जैसा बराबरी का दर्जा दिया जाता है।’

‘तो फिर वो सब्जबाग, जो मुझे दिखाये गये थे?’ अकबर हकबका कर बोला। हमीद पहले से भी ज्यादा कुटिलता से बोला-

‘सब्जबाग न दिखाये जाते तो तुम हमारा मजहब कबूल नहीं करते। अब समझे।’

‘यानी मेरे साथ धोखा हुआ।’

‘तुम्हारे लिये धोखा, लेकिन हमारे लिए मजहब की खिदमत’ हमीद ने फख्र्र से कहा। अकबर के चेहरे पर आते-जाते भावों का जलजला उमड़ेने लगा। उसने मन में सोचा-

‘इतना बड़ा धोखा। हमारे पुरखे सच ही कहा करते थे। यह सब विधर्मी हैं। इन पर कभी विश्वाश नहीं करना चाहिये, लेकिन मैं पुरखों के ये वचन भूल गया। वरना इन जालिमों के हाथ हपना नाम और धर्म कभी न गँवाता।’ हमीद अकबर के चेहरे को पढ़ते हुए बोला-

‘अब सोचकर क्या फायदा अकबर। सोचना था तो हमारा मजहब कबूल करने से पहले सोचते’ अकबर उसकी बात सुनकर गंभीर स्वर में कहता है-

‘सच कहा हमीद, बिलकुल सच कहा। लेकिन तुमने अपने मजहब की खिदमत की जो बात कही, वो मेरी समझ में नहीं आई।

‘तुम अपने पुरखों की बात भूल सकते हो अकबर, लेकिन हम कभी नहीं भूलते।’ हमीद जोशीले स्वर में बोला-

‘जब हिन्दुस्तान आजाद हुआ था तो हमारे पुरखों ने कहा था-‘लड़कर लिया है पाकिस्तान- हँस कर लेंगे हिन्दुस्तान।’

हमीद की बात सुनकर अकबर चैंका उसके मुँह से अकस्मात निकला- ‘क्या?’

हमीद मुस्कुराया और बोला- ‘इसी लिए तो, हम तुम जैसे गैर इस्लामियों पर डोरे डालते हैं। लोभ-लालच देते हैं और अपने मजहब में शामिल कर लेते हैं। हम चाहते हैं कि हिन्द में हमारे मजहब के लोगों की आबादी सनातनियों से अधिक हो जाये। जानते हो न अकबर, तब क्या होगा?’

अकबर का चेहरा हमीद की बातें सुनकर एकदम निस्तेज हो गया। उसे अपने उपर गुस्सा आने लगा कि वो उनके बहकावे में आया ही क्यों? पर अब क्या हो सकता था। सनातनियों ने उसे विधर्मी घोषित करके हमेषा के लिए उससे नाता तोड़ लिया था। इन विधर्मियों के साथ घुटते दम से वो कब तक जी पायेगा? आह! ये उससे कैसा पाप हो गया? अकबर की आत्मा उसे कचोटती हुई लहूलुहान करने लगी। अन्त में अकबर हिम्मत जुटाते हुए बोला-

‘क्या होगा?’

‘हम हिन्दुस्तान में इस्लामी हुकूमत कायम कर देंगे। फिर दिल्ली से लाहौर तक हमारे मजहब की हुकूमत होगी। हिन्द की धरती पर वो ही रहेगा, जो खुदा की इबादत करेगा।’ कहते-कहते हमीद कहकहा लगाने लगा। उसके कहकहे अकबर के कानों में शीषा बनकर पिघलने लगे। उसे लगा कि एक साथ सैकड़ों हमीद कहकहा लगा रहे हैं। उसे अपने कानों में पिघलता शीषा सहन नहीं हुआ। वो अपने दोनों कानों पर हाथ रखकर चीख उठा-

‘बस करो हमीद, बस करो। वरना मैं इसी समय मैं तुम्हारा कत्ल कर दूंगा।’

अकबर के चीखते ही हमीद के कहकहे रूक गये। एकदम सन्नाटा छा गया और घिर आई शाम के सन्नाटे में विलीन होकर वातावरण को बड़ा भयानक बना दिया। अकबर ने अपने कान से हाथ हटाये और हमीद की ओर देखा। हमीद वहाँ से जा चुका था। अकबर की आँखों में आँसू भर आये। उसे सनातन धर्म से कटने पर आत्मग्लानि होने लगी। शायद वो आँसू पष्चाताप के आँसू थे। वो सनातनी होना चाहता था, पर क्या सनातनी विधर्मी को पुनः अपनायेंगे? अकबर एक विचित्र चैराहे पर खड़ा था। चैराहे के सारे रास्ते अंधकार में डूबे हुये थे। उसे कुछ सुझाई नहीं दे रहा था कि वो किस रास्ते पर आगे बढ़े। तभी एक रास्ते से उम्मीद की एक किरण स्वयं उसके पास चलकर पहुँची। उम्मीद की वो किरण दिल्ली उच्च न्यायालय की एक अधिवक्ता संजया शर्मा थी। वो अकबर के पास पहुंची और बोली- ‘मैंने तुम दोनों की सारी बातें सुनी। मेरा विचार है कि तुम पुनः पुराने घर जाने का मन बना चुके हो।’

अकबर ने उस अप्रतिम देवी स्वरूपा को एकटक देखते हुए ‘हाँ’ में गर्दन हिलायी।

‘मार्ग नहीं सुझाई दे रहा।’ वो फिर बोली-

उसकी वाणी से मंत्रमुग्ध अकबर के मुंह से बड़ी मुष्किल से निकला-हाँ.....।

‘मैं जिस रास्ते से आई हूं, उसी रास्ते से आगे बढ़ जाओ’

‘वो रास्ता तो स्वामी नारायण मन्दिर जाता है।’ अकबर बोला।

‘हाँ, मन्दिर के पास हिन्दू महासभा भवन है। भवन में स्वामी चक्रपाणि देव जी महाराज से मिलना। वही तुम्हारा मार्गदर्षन करेंगे। तुम्हारी हर समस्या, हर शंका समाधान है उनके पास। बड़ा ही दिव्य तेज है उनके मुखमण्डल पर। हमस सब उन्हें श्रद्धा और आदर से ‘स्वामी जी’ कहते हैं। अगर उन्हें प्रसन्न करना है तो जाते ही ‘जय हिन्दू राष्ट्र’ के उद्घोष के साथ श्रद्धा से उनके चरण स्पर्ष कना। निष्चित रूप से वो तुम्हारा कल्यांण करेंगे।’

अकबर मानो सोते से जागा और बोला ‘षायद मैंने आपका चेहरा पहले कहीं देखा है। पर कहाँ? याद नहीं आ रहा।’

अकबर की बात पर मुस्कुराते हुए बोली-‘जरूर किसी कोर्ट कचहरी में देखा होगा। मैं एक वकील हूँ।’

वकील सुनकर अकबर चैंका।

‘त-तुम वकील हो। वही वकील जो फोकस चैनल पर फोकस काउंसिल में टी.वी. पर आती है।

‘ओह, तो तुमने मुझे टी.वी. पर देखा है। हाँ, मैं वही हूँ, एडवोकेट संजया।’ संजया ने अपने पर्स से एक विजिटिंग कार्ड निकालकर देते हुए कहा-

‘ये लो, कभी जरूरत पड़े तो मिल सकते हो। और हाँ, और स्वामी जी को मेरा प्रणाम जरूर कहना।’

‘जी, जरूर कह दूंगा।’ अकबर गर्दन हिलाते हुए बोला। लेकिन उसकी प्रतिक्रिया देखे बिना वो जा चुकी थी। अकबर स्वामी नारायण मन्दिर के रास्ते पर चल पड़ा।

बीस मिनट बाद अकबर स्वामी जी के सामने विराजमान था। स्वामीजी बड़े ही ध्यानपूर्वक अकबर की बात ध्यानपूर्वक सुनी और मुस्कुराते हुए बोले-

‘सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नही कहते बच्चा। तुम जीवन के मार्ग पर राह भटक गये थे। लेकिन तुम अब पुनः सही मार्ग पर आ गये हो। तुम्हारा सनातन समाज में स्वागत है। हम तुम्हारा शुद्धिकरण करेंगे।’

‘सच स्वामी जी मैं फिर से सनातनी होने का गौरव पा सकूंगा।’ अकबर खुष होते हुए बोला।

‘अवष्य, तुम्हारा नाम क्या है बच्चा।’ स्वामी जी की अमृत वाणी बरसने लगी अकबर उसमें भीगने लगा। उसके होंठ बरबस ही फड़फड़ा उठे।

‘अ......कबर’

‘भूल जाओ इस नाम को’ ये तुम्हारा छद्म नाम है। हम तुमसे तुम्हारा सनातनी नाम पूछ रहे हैं।’

राम आसरे बाल्मीकि..........

‘ओह... तो तुम बाल्मीकि समाज के गौरव हो।’

‘ज........जी स्वामी जी... ल...लेकिन मैं मार्ग भटक गया था।’

दोनों के बीच वार्तालाप चलता रहा। वार्तालाप के बाद स्वामी जी ने उससे ग्यारह बार गायत्री मंत्र का जाप करवाया। उस पर गंगा जल छिड़क कर उसे शुद्ध किया। अन्य कई वैदिक क्रियाओं के पष्चात अकबर फिर से सनातनी बन गया। उसकी जिन्दगी में फिर से सवेरा हो गया। उसके जीवन को नई दिशा मिल गई।

गतांक से आगे --------

Tuesday, June 22, 2010

आर0टी0आई0 कार्यकर्ता ने केन्द्रीय सूचना आयोग में अपील दायर की

आर0टी0आई0 कार्यकर्ता ने केन्द्रीय सूचना आयोग में अपील दायर की


श्रीराम अधार फाउण्डेशन के आर0टी0आई0 कार्यकर्ता राजीव कुमार(पत्रकार ) ने पुलिस मुख्यालय के
जन सूचना अधिकारी से मांगी गई जानकारी आधा-अधूरी मिलने और वास्तविक तथ्यों को छिपाने का
का प्रयास करने के विरोध में केन्द्रीय सूचना आयोग के जनसूचना आयुक्त के समक्ष अपील दायर की
है।
आज जारी बयान में राजीव कुमार ने बताया कि बिन्दापुर पुलिस ने उनकी शिकायत पर संज्ञान
लेने की जगह उन्हीं को प्रताड़ित किया, जिस पर अखिल भारत हिन्दू महासभा की ओर से पुलिस
आयुक्त को ज्ञापन सौंपा था। ज्ञापन पर पुलिस मुख्यालय द्वारा की गई कार्रवाई की जानकारी पाने
के लिए राजीव कुमार ने आर0टी0आई0 दायर की थी।

राजीव कुमार ने आरोप लगाया है कि उन्हें पुलिस मुख्यालय की ओर से आधी-अधूरी जानकारी
भेजी गई और वास्तविक तथ्यों को छिपाया गया। पुलिस मुख्यालय के जनसूचना अधिकारी से
निराश होकर राजीव कुमार ने केन्द्रीय सूचना आयोग की शरण ली है।

राजीव ने जारी बयान में उम्मीद जताई है कि केन्द्रीय सूचना आयोग के माध्यम से उन्हें सही
जानकारी हासिल होगी। बयान में उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि सूचना आयोग भी सही जानकारी
दिलवाने में विफल रहा तो वो दिल्ली उच्च न्यायालय की शरण लेने पर बाध्य होंगे।

Saturday, June 19, 2010

हिन्दुओं और मुसलमानों में भेदभाव देश के लिए घातक -द्विवेदी

अखिल भारत हिन्दू महासभा दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष रविन्द्र कुमार
द्विवेदी ने अमरनाथा यात्रा और माता वैष्णों देवी यात्रा पर जाने
वाले हिन्दू श्रद्धालुओं से विशेष टैक्स लेने का निर्णय लेने पर केन्द्र
सरकार से जम्मू-कश्मीर सरकार को बर्खास्त करने की मांग की।
उन्होंने कहा कि हिन्दू श्रद्धालुओं से भारी टैक्स वसूल करके मुस्लिम
समाज पर सब्सीडी के नाम पर लुटाई जा रही धनराशी के भेदभाव
को हिन्दू महासभा किसी कीमत पर सहन नहीं करेगी और अपनी
मांगों के समर्थन में हिन्दू समाज के सहयोग से विराट जन आंदोलन
शुरू करेगी। श्री द्विवेदी ने आज हस्तसाल विधानसभा मण्डल के उत्तम
नगर में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन को मुख्य अतिथि के पद से संबोधित
कर रहे थे।

श्री द्विवेदी ने अपने संबोधन में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और विशेष
राज्य का दर्जा तुरन्त समाप्त करने की मांग करते हुए कहा कि मुस्लिम
तुष्टिकरण के नाम पर हिन्दुओं और मुसलमानों में भेदभाव करना राष्ट्र
की एकता अखण्डता के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। उन्होंने कहा कि
हिन्दुओं से अनाप-शनाप टैक्स वसूलकर मुसलमानों पर लुटाने का
दुस्साहस देश में अघोषित इस्लाम शासन को लागू करने का प्रयास है,
जो हिन्दू समाज के अस्तित्व को समाप्त करने गहरा षणयंत्र प्रतीत
होता है।

श्री द्विवेदी ने कहा कि इस षणयंत्र को हिन्दू स्वराज्य की स्थापना के बिना विफल
नहीं किया जा सकता। उन्होंने भारी संख्या में उपस्थित हिन्दू प्रतिनिधियों को हिन्दू
स्वराज्य की स्थापना का संकल्प दिलाया।

हिन्दू महासभा की प्रदेश कार्यकारी अध्यक्षा एडोवोकेट संजया शर्मा ने अपने संबोधन
में कांग्रेस और भाजपा पर एक साथ निशाना साधते हुए उनकी नीतियों और आचरण
को घोर हिन्दू विरोधी बताया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम
पर हिन्दुत्व पर सामने से प्रहार करती है तो भाजपा हिन्दू समाज की हितैषी
बनकर हिन्दुत्व की पीठ में पीछे से छूरा भोंकती है। एडोवोकेट संजया ने हिन्दू
जनसमुदाय से कांग्रेस और भाजपा के हिन्दू विरोधी षणयंत्रों से सावधान
रहते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि महाराज के नेतृत्व में हिन्दू महासभा की
नीतियों को जन-जन तक पहुंचाने और राष्ट्र को मजबूत बनाने का
आह्वान किया।

सम्मेलन में वरिष्ठ प्रदेश महामंत्री रोहित राघव ने कार्यक्रम संयोजक अजय वर्मा को दिल्ली
प्रदेश का मंत्री मनोनीत करते हुए उन्हें नियुक्ति पत्र सौंपा। उन्होंने कहा कि अजय वर्मा
के दायित्व संभालने से दिल्ली में हिन्दू महासभा का संगठनात्मक ढांचा मजबूत होगा
और नगर निगम चुनाव 2012 की तैयारियों में मदद मिलेगी।

सम्मेलन की अध्यक्षता हस्तसाल विधान सभा मण्डल के अध्यक्ष विष्णु प्रकाश
दूबे ने की।

Thursday, February 25, 2010

वोटिंग मशीन पर प्रश्नचिह्न

चुनाव प्रक्रिया में इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के माध्यम से मतदान पर बहस गरमा गई है। पिछले दिनों कुछ नागरिक संगठनों ने दिल्ली और चैन्नई में कार्यशाला का आयोजन किया। इसमें उन्होंने ऐसे अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों को आमंत्रित किया था, जो यूरोप के कुछ देशों और अमेरिका के अधिकांश प्रांतों में वोटिंग मशीन में हेराफेरी सिद्ध करने वालों में शामिल रह चुके हैं। इन विशेषज्ञों में हालैंड के कंप्यूटर हैकर रोप गोंगरिज्प, यूनिवर्सिटी आफ मिशिगन में कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर और इलेक्ट्रोनिक वोटिंग सुरक्षा के विशेषज्ञ डा. एलेक्स हाल्डरमैन और एटार्नी डा. टिल जैगर शामिल थे। रोप गोंगरिज्प ने एक टेलीविजन पर सीधे प्रसारण में वोटिंग मशीन को हैक कर दिखाया था और अपने देश में ईवीएम को प्रतिबंधित करवाने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। डा. टिल जैगर ने जर्मन फेडेरल कंस्टीट्यूशनल कोर्ट में ईवीएम के खिलाफ जिरह की थी जिसके परिणामस्वरूप अदालत ने जर्मनी में इन मशीनों से मतदान पर रोक लगा दी थी।

भारत की ओर से हैदराबाद के जाने-माने हैक्टिविस्ट ने ईवीएम की भेद्यता पर अपने विचार रखे। भारत में सबसे पहले इन्होंने ही ईवीएम आधारित चुनाव प्रक्रिया की ईमानदारी के खिलाफ लाल झंडा उठाया था। गोंगरिज्प और डा. हाल्डरमैन के अनुसार इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों की निर्माण प्रक्रिया के समय, मतदान के दौरान और मतदान के पश्चात जालसाजी की जा सकती है। इसके अलावा वोटिंग के दौरान पोलिंग बूथ पर भी इनके माध्यम से धांधली संभव है। वे आश्वस्त हैं कि भारतीय ईवीएम भी जर्मनी, हालैंड या आयरलैंड में प्रयुक्त की गई मशीनों से अलग नहीं हैं, जहां इन्हें नकार दिया गया है। चुनाव में धांधली ईवीएम की नियंत्रण इकाई में ट्रोजन चिप लगाकर भी की जा सकती है। यह चिप ईवीएम स्क्रीन पर मनचाहा परिणाम दिखाएगी।

दूसरे शब्दों में, मतदाताओं की पसंद जो भी हो, नियंत्रण इकाई हैकर्स की याजना के अनुसार ही संख्या दर्शाएगी। गोंगरिज्प चुनाव में पारदर्शिता, निष्पक्षता और पुष्टिकरण के मुख्य पक्षकार हैं। उनकी तकनीकी राय के आधार पर ही जर्मनी में इलेक्ट्रोनिक मशीनों को चुनाव प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया। उनका कहना है, 'जब मशीन के भीतर वोटों की गिनती होती है तो परिणाम की पुनर्जांच का कोई रास्ता नहीं बचता और चुनाव में पारदर्शिता खत्म हो जाती है।' पारदर्शिता के अभाव में इलेक्ट्रोनिक वोटिंग जालसाजी का माध्यम बन गई हैं। कोई नहीं जानता की मशीन के अंदर क्या चल रहा है। यह ऐसा मुद्दा है जिस पर जर्मन कंस्टीट्यूशन कोर्ट ने ईवीएम मशीनों को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। इसका कहना है कि संविधान चुनाव की सार्वजनिक प्रकृति पर जोर देता है और इसकी जांच के लिए तमाम जरूरी कदम उठाने की आवश्यकता को रेखांकित

करता है।

इन विशेषज्ञों के इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों को एकदम खारिज करने के बावजूद ईवीएम में भारत की जनता को बेहद भरोसा है और इसकी जबरदस्त साख है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इन मशीनों की अविश्वसनीयता के बारे में जनता को जागरूक करने के लिए अभियान नहीं छेड़ा गया है। हालांकि, विभिन्न दलों के नेता इन मशीनों के बारे में चौकन्ने हैं और विपक्षी दल मशीनों के माध्यम से चुनाव में धांधली का आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन ये मशीनों की गड़बड़ी साबित करने के लिए पुख्ता साक्ष्यों का सहारा नहीं ले पाए थे। हालांकि हरी प्रसाद जैसे लोग चुनाव आयोग से यह मांग कर रहे हैं कि वह उन्हें ईवीएम में गड़बड़ी की संभाव्यता साबित करने का एक मौका दें। शुरुआत में तो आयोग ने इस दिशा में आगे बढ़ने के संकेत दिए किंतु अचानक उसने पैर पीछे खींच लिए और पिछले सितंबर को हरी प्रसाद व उनके साथियों के ईवीएम मशीनों को चुनौती देने वाले प्रदर्शन पर रोक लगा दी। आयोग पीछे क्यों हटा?

दो अन्य भारतीय, ईवीएम के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले डा. सुब्रहमण्यम स्वामी और विख्यात चुनाव विश्लेषक व 'डेमोक्रेसी एट रिस्क : कैन वी ट्रस्ट आवर इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशींस' पुस्तक के रचियता जीवीएल नरसिंहा राव भी इस अभियान में कूद पड़े। इस पुस्तक में भारत, अमेरिका और यूरोप में ईवीएम मशीनों का इतिहास बताया है। राव के अनुसार, जिन राजनेताओं ने ईवीएम के प्रति शंका जताई है, उनमें भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी, उड़ीसा चुनाव में कांग्रेस की हार का दोष ईवीएम पर मढ़ने वाले केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव प्रकाश करात, जनता दल के अध्यक्ष शरद यादव, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी, तेलुगू देशम नेता चंद्रबाबू नायडु, आल इंडिया अन्ना द्रविड मुनेत्र कड़गम नेता जयललिता और पीएमके के नेता शामिल हैं।

इस सूची को देखने से एहसास होता है कि तीनों ज्ञात राष्ट्रीय गठबंधनों और विभिन्न क्षेत्रों में हर किसी के मन में ईवीएम मशीनों को लेकर शंका है। इनमें से करात चुनाव आयोग को अधिकारिक रूप से लिखित शिकायत कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि ईवीएम की विश्वसनीयता को लेकर अनेक सवाल खड़े हो चुके हैं। इनमें शामिल हैं : निर्माण स्तर पर मशीन में ट्रोजन चिप लगाने की संभावना, उत्पादन स्तर पर चिप में फेरबदल करना, तकनीकी प्रक्रिया पर चुनाव आयोग का नियंत्रण न होना और तीसरे पक्ष द्वारा जांच-पड़तान करना संभव न होना। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को ईवीएम निर्माण का नियंत्रण अपने हाथ में ले लेना चाहिए, तीसरे पक्ष द्वारा औचक निरीक्षण करने की अनुमति प्रदान करनी चाहिए और ईवीएम मशीनों का विभिन्न राज्यों में औचक स्थानांतरण करना चाहिए।

विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर राव ने निष्कर्ष निकाला है कि ईवीएम मशीनों के माध्यम से चुनाव में आठ तरह से धांधली की जा सकती है। चुनाव आयोग ने इस आधार पर इन दलीलों को गलत ठहराना चाहता है कि भारतीय ईवीएम किसी तंत्र (इंटरनेट) से जुड़ी न होकर स्वतंत्र मशीनें हैं। इसलिए ईवीएम के आपरेटिंग सिस्टम पर कोई भी जताना गलत है। जर्मनी में कंस्टीट्यूशन कोर्ट में याचिका दायर करने वाले सोफ्टवेयर इंजीनियर डा. उलरिच वीजनर इस प्रकार की दलीलों की धज्जिायां उड़ा चुके हैं। शपथपत्र में डा. स्वामी ने डा. वीजनर को उद्धृत करते हुए कहा है कि हालैंड, जर्मनी और आयरलैंड में भी ईवीएम इंटरनेट से जुड़ी न होकर स्वतंत्र मशीनें थीं। सीधी सी बात है कि जो भी इन मशीनों को खोलने और सोफ्टवेयर बदलने की पहुंच रखता है वह इनमें किसी भी प्रकार की कार्यात्मकता ला सकता है।

अगर चुनाव आयोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों का विश्वास कायम रखना चाहता है तो उसे इन विशेषज्ञों द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देना होगा। आयोग के जड़ व गैर-पारदर्शी रवैये से लगता है कि या तो उसके पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं है या फिर वह कुछ छिपा रहा है।

[ए सूर्यप्रकाश: लेखक विधि मामलों के जानकार हैं]
sabhar dainik jagran

Tuesday, February 16, 2010

दिग्विजय की वोट यात्रा

26/11 के बाद विगत शनिवार को पुणे के जर्मन बेकरी रेस्त्रा में हुए आतंकी हमले में 9 लोगों की जान चली गई और 45 घायल हो गए। मृतकों में चार विदेशी महिलाएं हैं। सन 2001 के 9/11 के आतंकी हमले के बाद अमेरिका में एक भी आतंकवादी घटना नहीं हुई। इसके विपरीत भारत में यह सिलसिला थम नहीं रहा। क्यों?

क्या हम इस तथ्य से इनकार कर सकते हैं कि पुणे की यह दुखद घटना काग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की आजमगढ़ की 'तीर्थयात्रा' के कुछ दिनों बाद घटित हुई है? इस बीच समाचारपत्रों में यह चर्चा भी थी कि युवराज राहुल गाधी भी आजमगढ़ दर्शन का कार्यक्रम बना रहे हैं।

दिल्ली के जामिया नगर स्थित बटला हाउस में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ के बाद उत्तर प्रदेश का आजमगढ़ देश की विभिन्न जाच एजेंसियों के निशाने पर है और खोजबीन से इस बात की पुष्टि भी हो चुकी है कि देश में आतंकवाद के तार आजमगढ़ से गहरे जुड़े हैं। पिछले कुछ वषरें में उत्तर प्रदेश, खासकर आजमगढ़ और पूर्वी उत्तर प्रदेश के आसपास का क्षेत्र जिहादियों का गढ़ बनता जा रहा है, जो दाऊद के गुगरें से लेकर कई आतंकवादियों के सुरक्षित ठिकाने के रूप में सामने आ रहा है। किंतु बटला हाउस मुठभेड़ के बाद से ही मुस्लिम समाज के कट्टरपंथी इसे फर्जी मुठभेड़ बताकर देश की सुरक्षा एजेंसियों पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। मुस्लिम वोट बैंक पर गिद्ध दृष्टि रखने वाले राजनीतिक दल भी उनके साथ हैं। इस कथित मुठभेड़ के खिलाफ आजमगढ़ के कट्टरपंथियों की फौज एक पूरी ट्रेन को ही 'उलेमा एक्सप्रेस' बनाकर दिल्ली आ धमकी थी।

बटला हाउस मुठभेड़ में मारे गए आतंकवादी आजमगढ़ के संजरपुर के निवासी थे। बाद में इस गाव से कई अन्य संदिग्धों की गिरफ्तारी भी हुई। इससे पूर्व अहमदाबाद बम धमाकों के सिलसिले में आजमगढ़ के ही एक मौलाना, अबू बशर को गिरफ्तार किया गया था। बशर की गिरफ्तारी के बाद उसके घर मातमपुर्सी के लिए सपा-बसपा और काग्रेस में होड़ लग गई थी। यह होड़ बटला हाउस मुठभेड़ के बाद और तेज हुई है। इसी सिलसिले में पिछले दिनों काग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह आजमगढ़ पहुंचे थे। वे कथित फर्जी मुठभेड़ में मारे गए युवकों के परिजनों से मिले और उसके बाद लखनऊ में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में यहा तक कहा कि 'न्याय में देरी, न्याय न देने के समान है।' जब सत्ताधारी दल राष्ट्रहितों की कीमत पर वोटबैंक की राजनीति करेगा तो स्वाभाविक है कि इससे सुरक्षा एजेंसियों का मनोबल गिरेगा और राष्ट्रविरोधी शक्तियों को ताकत मिलेगी।

प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और गृहमंत्री पी चिदंबरम आतंकवाद के खात्मे को सरकार की बड़ी प्राथमिकता बताते हैं, दूसरी ओर काग्रेस का वरिष्ठ नेता आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ पर ऐसे समय में सवाल खड़ा करता है, जब न केवल साक्ष्य, बल्कि उसी मुठभेड़ का हिस्सा रहा एक आतंकवादी पुलिस की गिरफ्त में हो और पूछताछ में मारे जाने वालों के आतंकी गतिविधियों में शामिल होने की पुष्टि कर रहा हो। क्या इस दोमुंहेपन की नीति से आतंकवाद का सामना किया जा सकता है?

लखनऊ के संवाददाता सम्मेलन में दिग्विजय सिंह ने जो कहा, उससे पलटते हुए दिल्ली में यह कहा कि वह मुठभेड़ को फर्जी बताने की स्थिति में नहीं हैं। इसके बाद भोपाल में उन्होंने अपने आजमगढ़ दौरे का स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि आजमगढ़ के कई मुस्लिम युवाओं पर चार राज्यों में पचास से अधिक मामले लादे गए हैं और इसीलिए उन्हें लगता है कि इनके निपटारे के लिए विशेष न्यायालय व सीबीआई की मदद लेनी चाहिए और उन्हें जबरन फंसाने के लिए झूठे प्रकरण नहीं लादने चाहिए। यह कैसी मानसिकता है?

पिछले दिनों पुलिस के हत्थे चढ़े शाहजाद अहमद पर दिल्ली के सीरियल बम ब्लास्ट के साथ बटला मुठभेड़ में शामिल होने का आरोप है। पूछताछ में उसने मारे गए युवाओं को अपना साथी बताया है। फिर इसके एक दिन बाद दिग्विजय उन मृतकों के परिजनों से मिलने क्यों गए? जाच एजेंसियों पर सवाल खड़ा करने वाले कठमुल्लों से मिलकर देश की कानून-व्यवस्था को लाछित क्यों किया? आजमगढ़ के कट्टरपंथी मुसलमानों को 'राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग' और उच्च न्यायालय द्वारा की गई जाच पर भरोसा नहीं है तो अब मुठभेड़ की जाच किससे कराई जाए?

वस्तुत: आतंकवाद को लेकर काग्रेस का दोहरापन छिपा नहीं है। बटला हाउस मुठभेड़ में दो पुलिस कर्मियों की भी मौत हुई थी। अपने जवानों की शहादत को अपमानित करते हुए काग्रेस के कुछ नेता मुठभेड़ के फौरन बाद बटला हाउस पहुंचे थे, जहा मुस्लिम वोट बैंक की खातिरदारी में मुलायम सिंह यादव सरीखे नेता पहले से ही विराजमान थे। सत्तासीन काग्रेस ने अपने नेताओं को आतंकवादियों का साथ देने वाले कट्टरपंथी तत्वों से दूरी बनाने का निर्देश देने की बजाए सुरक्षाकर्मियों पर सवाल खड़ा किया, जिन्होंने सभ्य समाज को लहूलुहान करने वाले दहशतगदरें को गिरफ्तार करने के लिए अपनी जान दाव पर लगा दी थी। सुरक्षाकर्मियों द्वारा मुस्लिम समाज के उत्पीड़न का आरोप समझ से परे है। न तो पुलिस और न ही सरकार ने आतंकवाद को लेकर मुस्लिम समुदाय को कठघरे में खड़ा किया है। आजमगढ़ के मुसलमानों के लिए यदि यह देश सर्वोपरि है तो उन्हें अपने समुदाय में छिपे उन भेड़ियों की तलाश करनी चाहिए, जो दहशतगदरें को पनाह देते हैं। मुंबई पर इतना बड़ा आतंकी हमला हुआ, क्या वह सीमा पार कर अचानक घुस आए जिहादियों के द्वारा संभव था? मुस्लिम समुदाय के कट्टरपंथियों द्वारा ऐसे मददगारों को संरक्षण क्यों मिलता है? और ऐसे कट्टरपंथियों के समर्थन में पूरा समाज किस जुनून में आ खड़ा होता है? आतंकवाद के सिलसिले में जिन युवकों की गिरफ्तारी हुई है, उन पर इस देश के संविधान के अनुरूप कानूनी कार्रवाई चल रही है। हाल में कोलकाता स्थित अमेरिकी दूतावास पर हमला करने वालों को लंबी सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने दंडित किया है। वषरें की सुनवाई के बाद सन 1993 में मुंबई में बम विस्फोट करने वालों में से कुछ को अब सजा सुनाई गई है, कई रिहा कर दिए गए। इस देश की कानून-व्यवस्था की निष्पक्षता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा कि मुंबई हमलों में जिंदा पकड़ा गया अजमल कसाब सरकारी मेहमान बना हुआ है। उसके खिलाफ वीडियो फुटेज हैं, चश्मदीद गवाह हैं, किंतु सुनवाई चल रही है। ऐसे में मुस्लिम प्रताड़ना का आरोप समझ से परे है।

मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ काग्रेस का याराना नया नहीं है। शाहबानो प्रकरण इसका ज्वलंत प्रमाण है। सच्चर और रंगनाथ आयोग के बहाने मुसलमानों की दयनीय दशा के एकमात्र उद्धारक होने का ढोंग करने वाली काग्रेस ही वस्तुत: उनके पिछड़ेपन का कसूरवार भी है। करीब साठ सालों तक देश पर काग्रेस का शासन रहा है। यह समुदाय पिछड़ा ही बना रहा। वही काग्रेस अब उनके उत्थान के लिए अलग से आरक्षण देने का झासा दे रही है। काग्रेस के लिए मुस्लिम समुदाय एक वोट बैंक से अधिक नहीं है और यह बात जागरूक मुसलमानों की समझ में आने लगी है।
[बलबीर पुंज: लेखक भाजपा के राज्यसभा सासद हैं]
साभार दैनिक जागरण

Wednesday, January 20, 2010

इण्डेन शर्मा गैस एजेंसी उत्तम नगर ने ग्राहकों को परेशान कर रखा है

नई दिल्ली। इण्डेन शर्मा गैस एजेंसी उत्तम नगर ने नए ग्राहकों को परेशान कर रखा है। यह गैस एजेंसी इण्डेन गैस की घर-घर सप्लाई व नए कनेक्शन बुक करती है। इन्होंने यह नियम बना रखा है कि ग्राहक को नया गैस कनेक्शन तीन बजे बाद ही मिलेगा। मगर यदि कोई ग्राहक यदि सुबह अपने नौकरी पर जाता हो तो उसे कनेक्शन कैसे मिलेगा। बार-बार विनम्रता पूर्वक कहने पर भी यहां का स्टॉफ मदद करने को नही तैयार होता। इसके साथ ये सारे डोकूमेंट होने पर भी नए-नए बहाने लेकर परेशान करते हैं।


ये नए कनेक्शन मांगने वाले को इतना तंग करते हैं कि या तो वो वहां जाना बन्द कर देता है या इनकी धन पूजा करे तभी काम होगा। डब्लूडब्लूडब्लू डॉट आईओसीएल डॉट कॉम पर जाने के बाद पता चलता है कि नया कनेक्शन उसे मिल सकता है जिसके पास इनमें से एक एक निवास पहचान हो- जैसे राशनकार्ड, बिजली बिल, टेलीफोन बिल, पासपोर्ट, इमप्लायर्स सर्टिफिकेट, फ्लैट एलाटमेंट, पजेशन लेटर, हॉउस रजिस्ट्रेशन पेपर, एलआईसी पॉलिसी, ओटर आइडेंटिटी कॉर्ड, रेंट रिसिप्ट, पैन कोर्ड या ड्राइवरी लाइसेंस रखता हो।


मगर उत्तम नगर की इण्डेन शर्मा गैस एजेंसी इण्डियन ऑयल कंपनी से भी उपर हो गई है। यदि कोई व्यक्ति राशन कार्ड रखता हो मगर रेंट पर हो तो उसके लिए एफीडेविट, बिजली बिल, रेंट एग्रीमेंट, ओटर आइडेंटिटी कॉर्ड आदि सब चाहिए। जब इस तरह के इतने डोकूमेंट चाहिए तो कंपनी क्यों नही इन सबको अपनी बेबसाइट में मेंशन किया। होना यह चाहिए कि जिस व्यक्ति के पास राशनकार्ड है और रेंट पर रह रहा है तो वो मकान मालिक से लिखवा के दे दे मगर ये लोग नए गैस कनेक्शन देने के नाम पर किसी व्यक्ति को इतना परेशान जलील करते हैं कि वो व्यक्ति आना ही छोड़ दे। क्या ये लोग इस तरह की हरकत कर जनता की सेवा कर रहे हैं। किसी शिकायत के लिए एसिस्टेंट मैनेजर, एरिया मैनेजर या स्टेट मैनेजर को फोन करो तो कोई फोन ही नही उठाता। ये लोग जनता की सेवा करने के लिए बैठे हैं या जनता को परेशान करने के लिए बैठे हैं।
अभी आगे-आगे देखना है कि ये कितना पापड़ बेलवाते हैं।

इण्डेन गैस शर्मा गैस एजेंसी उत्तम नगर ने ग्राहकों को परेशान कर रखा है
नई दिल्ली। इण्डेन गैस शर्मा एजेंसी उत्तम नगर नए ग्राहकों को परेशान कर रखा है। यह गैस एजेंसी इण्डेन गैस की घर-घर सप्लाई व नए कनेक्शन बुक करती है। इन्होंने यह नियम बना रखा है कि ग्राहक को नया गैस कनेक्शन तीन बजे बाद ही मिलेगा। मगर यदि कोई ग्राहक यदि सुबह अपने नौकरी पर जाता हो तो उसे कनेक्शन कैसे मिलेगा। बार-बार विनम्रता पूर्वक कहने पर भी यहां का स्टॉफ मदद करने को नही तैयार होता। इसके साथ ये सारे डोकूमेंट होने पर भी नए-नए बहाने लेकर परेशान करते हैं।

ये नए कनेक्शन मांगने वाले को इतना तंग करते हैं कि या तो वो वहां जाना बन्द कर देता है या इनकी धन पूजा करे तभी काम होगा। डब्लूडब्लूडब्लू डॉट आईओसीएल डॉट कॉम पर जाने के बाद पता चलता है कि नया कनेक्शन उसे मिल सकता है जिसके पास इनमें से एक एक निवास पहचान हो- जैसे राशनकार्ड, बिजली बिल, टेलीफोन बिल, पासपोर्ट, इमप्लायर्स सर्टिफिकेट, फ्लैट एलाटमेंट, पजेशन लेटर, हॉउस रजिस्ट्रेशन पेपर, एलआईसी पॉलिसी, ओटर आइडेंटिटी कॉर्ड, रेंट रिसिप्ट, पैन कोर्ड या ड्राइवरी लाइसेंस रखता हो।


मगर उत्तम नगर की इण्डेन शर्मा गैस एजेंसी इण्डियन ऑयल कंपनी से भी उपर हो गई है। यदि कोई व्यक्ति राशन कार्ड रखता हो मगर रेंट पर हो तो उसके लिए एफीडेविट, बिजली बिल, रेंट एग्रीमेंट, ओटर आइडेंटिटी कॉर्ड आदि सब चाहिए। जब इस तरह के इतने डोकूमेंट चाहिए तो कंपनी क्यों नही इन सबको अपनी बेबसाइट में मेंशन किया। होना यह चाहिए कि जिस व्यक्ति के पास राशनकार्ड है और रेंट पर रह रहा है तो वो मकान मालिक से लिखवा के दे दे मगर ये लोग नए गैस कनेक्शन देने के नाम पर किसी व्यक्ति को इतना परेशान जलील करते हैं कि वो व्यक्ति आना ही छोड़ दे। क्या ये लोग इस तरह की हरकत कर जनता की सेवा कर रहे हैं। किसी शिकायत के लिए एसिस्टेंट मैनेजर, एरिया मैनेजर या स्टेट मैनेजर को फोन करो तो कोई फोन ही नही उठाता। ये लोग जनता की सेवा करने के लिए बैठे हैं या जनता को परेशान करने के लिए बैठे हैं।
अभी आगे-आगे देखना है कि ये कितना पापड़ बेलवाते हैं।
राजीव कुमार
9911850406
rajeevkumar905@gmail.com

Wednesday, January 6, 2010

मकर संक्राति – पतंगो का रंगबिरंगी त्यौहारगुजरात में आंतराष्ट्रीय पतंग महोत्सव की धूम

मकर संक्राति – पतंगो का रंगबिरंगी त्यौहारगुजरात में आंतराष्ट्रीय पतंग महोत्सव की धूम
32 देशो से 87 पतंगबाज इस महोत्सव में भाग लेंगेमहोत्सव के दौरान अहमदाबाद का आसमान रंगीन हो जाता है300 करोड का बिजनस गुजरात को मिलता हैः गुजराती जानते है कि त्यौहारो से भी कैसे मुनाफा कमाया जा सकता है।
- निलेष शुक्ला
विश्वभर में भारत ही एक ऐसा देश है जहां सबसे अधिक त्यौहार मनाये जाते है। भारत वर्ष की परंपरा रही है कि वह त्यौहारों को उत्सव के रुप में मनाकर खुशी हांसिल करता है। इसमें भी गुजराती उत्सव को मनाने में सबसे आगे रहते है और मजे की बात यह है कि वे उत्सव मनाने के साथ-साथ उससे भी अपना मुनाफा कमाना नहीं छोडते। शायद इसीलिए कहा जाता है कि गुजरातीयों की नस-नस में बिजनस बसा हुआ है। मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जबसे गुजरात में उत्सवो को मनाने का सिलसिला शुरु किया है तबसे गुजरात का होटल बिजनस तिगुना बढ गया है। मोदी जी कहते है कि हमने हमारी पहचान केवल 12 रुपये की किंमत से बनाई है फिर वो पतंग हो या डांडिया, जबकि अन्य लोग इसी पहचान के लिए लाखो रुपये खर्च करते है।
गुजरात में वर्ष के अंत में नवरात्रि और कच्छ उत्सव का सफलता पूर्वक आयोजन करने के बाद नववर्ष की शुरुआत अंतराष्ट्रीय पतंग महोत्सव से की जाती है। यह त्यौहार 10 से 14 जनवरी 2010 तक अहमदाबाद में मनाया जायेगा। इस उत्सव में केवल घरेलु पतंगबाज ही नहीं अपितु आंतराष्ट्रीय स्तर के पतंगबाज हिस्सा लेते है। इस वर्ष 32 देशो से 87 पतंगबाज इसमें भाग लेने के लिए आनेवाले है। जिसमें विदेशो से बल्गारीया, फ्रांस, कोलंबिया, मलेशिया, युनाईटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, न्युजिलेन्ड, स्वीट्जरलेन्ड, सिंगापुर, स्वीडन वगेरे देश भाग लेंगे। श्री पी.के गेरा, निवासी आयुक्त, दिल्ली, गुजरात सरकार ने जानकारी दी कि गुजरात सरकार ने इन सभी देशो के एम्बेसेडर व डिप्लोमेट्स को आमंत्रित किया गया है एवं अपने देश में से राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश के पतंगबाज इसमें भाग लेंगे। पतंग महोत्सव को आंतराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाने का श्रेय गुजरात के मुख्यमंत्री को जाता है। इससे गुजरात को 300 करोड रुपयो का व्यापार मिलता है। गुजराती अच्छी तरह से जानते है कि त्यौहारो से भी कैसे मुनाफा कमाया जा सकता है। इससे गृह उद्योग को भी बहुत लाभ होता हैं। घर में ही औरते और बच्चे पतंग बनाने का काम करते हैं कमाई करते हैं। यहां तरह-तरह की पतंगे जैसे गोल, चील, चांदपर, आखियो, पावलो, पोणीया या फिर रोकेट और रात के समय उडाने के लिए लालटेनवाली पतंग खास बिकती है। पूरा आकाश रंग-बिरंगी पतंगो से घिरा रहता हैं।
प्राचीन काल के बहुत से चित्र ऐसे हैं जिसमें भगवान कृष्ण को पतंग उडाते देख सकते हैं। उस समय की पुस्तको में भी पतंग का उल्लेख मिलता है। भारत में मुगल समय में पतंगबाजी का शौक लोकप्रियता के शिखर पर था। अनेक मुगल बेगमो और शहजादो को पतंग उडाने का शौक था। उस समय पतंग का उपयोग प्रेमी को संदेश पहुंचाने के लिए किया जाता था। मध्य काल में संपूर्ण भारत पतंगो से प्रसिद्ध हो गया था। लखनउ व दिल्ली में पतंगो की प्रतियोगिताएं योजी जाती थी। अंतिम बादशाह बहादूरशाह जफर भी पतंग उडाने का शौक रखते थे। उनके समय में यमुना के दोनों किनारो पर पतंग उडाने की प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। दिल्ली व उत्तर भारत के अन्य शहरों में सावन-भादों में पतंग उडाने का रिवाज है। 15 अगस्त के दिन तो आसमान तिरंगी पतंगो से घिर जाता है।
पतंग उडाने का आनंद केवल भारतीय ही लेते हैं ऐसा नहीं हैं। विदेशो में भी पतंग बहुत ही आनंद के साथ उडाई जाती हैं। अमरिका में तो पतंग उडाने के इतिहास को जानने के लिए एक म्युजियम बनाया गया हैं। जिसमें पतंग बनानेवाले कारीगरों के बारे में और जग प्रसिद्ध अलग-अलग तरह की पतंगो के बारे में रोचक जानकारी दी गई हैं। इस म्युजियम का उदघाटन 21 अगस्त 1990 को हुआ था।
थाईलेन्ड में पतंगः यहां 13वीं सदी में पतंग बौद्ध धर्म के लोग भगवान का आशीर्वाद पाने के लिए उडाते थे। और जब वे पतंग उडाते थे तब वे एक अनोखा "हमींग" जैसी आवाज भी करते थे जिससे भगवान तक उनकी आवाज पहुंच सके। आजकल वे वर्षा ऋतु के प्रारंभ में पतंग उडाते हैं जिसमें वे एक बडी सी पतंग जिसे "चुला" कहा जाता है और उसके साथ अन्य छोटी-छोटी पतंगे जिसे "पाकापाओस" कहा जाता हैं उसे उडाते हैं। दो अलग प्रकार की पतंगों को एक-दूसरे को अपनी ओर खिंचने का प्रयास किया जाता है और इस खेल को देखने के लिए मैदान में हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे होते हैं।
मलेशिया में पतंगः मलेशिया की पतंगे थाईलेन्ड की पतंगो से जरा अलग होती हैं। यहां पर मोटे तौर पर चकोर पतंग बनाई जाती हैं लेकिन उसकी खासियत यह है कि उसमे कलाकारी की हुई लंबी पूंछ लगाई जाती हैं क्योंकि वहां हवा बहुत तेज चलती हैं। इन्डोनेशिया में पतंगः यहां भी पतंग बहुत समय पहले से ही उपयोग में ली जाती हैं। यहां जो सबसे पहले पतंग बनाई गई थी वह पेड के पत्तो से बनाई गई थी, जिसका उपयोग सागर में दूर मछली पकडने के लिए किया जाता था। इन्डोनेशिया के चारों और आईलेन्ड हैं इसलिए वहां तेज हवाएं चलती हैं इसलिए य़हां पर बडी-बडी पतंगे वनाई जाती हैं जो पक्षी या पशु के आकार की होती हैं। इन पतंगो को बनाने के लिए बांस की लकडी, सूती कपडा या नायलोन का उपयोग किया जाता हैं।
चीन में पतंगः ऐसा कहा जाता है कि चीन में सबसे पहले पतंग का उपयोग दूरी मापने के लिए किया था। वहां भी पतंग उडाने का आनंद एक उत्सव की तरह ही मनाया जाता है। चीन में नौंवे महीने का नवां दिन पतंग उडाने का दिन माना जाता है। कहा जाता है कि 3000 वर्ष पहले चीन के सेनापति ह्युन त्स्यांग ने पतंग को बांस के टुकडे के साथ बांधकर उसे शत्रु के देश में भेजते थे, और जब पतंग में से हवा पास होने से उसमें से सीटी जैसा आवाज निकलता जिसे सुनकर दुश्मन भाग जाते थे। अपने लश्कर के जवानो को संदेश पहुंचाने के लिए भी पतंग का उपयोग किया जाता था। चीन में 300 तरह की अलग-अलग प्रकार की पतंगे बनाई जाती है। चीन की राजधानी बीजिंग में सबसे बडा पतंग का संग्रहालय बनाया गया है।
पतंग का उपयोग लश्कर के अलावा वैज्ञानिक शोध के लिए भी किया जाता था। 1749 में स्कोटलेन्ड के एलेकजेन्डर विल्सन ने पतंग की मदद से विविध उंचाइयों पर उष्णतामान का माप निकाला था। राइट बंधुओने ओस्ट्रिया के लोरेन्स हाग्रेवना 1884 में सिडनी में बक्से के आकार का पतंग बनाकर उसमें वजन डालकर उसे उडाने में सफलता हांसिल की थी।
इस पर्व में जहां लोग पतंग उडाने का आनंद उठाते हैं वहीं मासुम पक्षी भी इसका शिकार हो जाते हैं। क्योंकि अचानक से उनके स्वच्छंद आकाश में पतंग रुपी अनेक डोर की बाधाएं आ जाती हैं जो उन्हें उडने में बाधा डालती हैं और ये निर्दोष या तो घायल होते हैं या मारे जाते हैं। एक अंदाज अनुसार एक ही दिन में करीब 10,000 पक्षी घायल होते हैं या मर जाते हैं। इसलिए पतंग रसिको को चाहिये की वे पतंग उडाते समय इस बात का भी ध्यान रखे की कोई निर्दोष पक्षी घायल न हो।
तो चलिए हम भी पतंग उडाने की तैयारी करते हैं लेकिन जरा संभलकर इससे किसी को कोई नुकसान न हो.... चली रे चली रे पतंग मेरी चली रे..... ये काटा..... वो काटा.....

फिर हुआ एक पत्रकार पर जानलेवा हमला

कटिहार, बिहार ।बिहार मैं अपराधिओं के हौसले फिर से बुलंद नजर आने लगे हैं . तजा घटनाक्रम मैं अधिकारीयों और दलालों के गठजोर से पनपे गुंडों ने एक टी वी पत्रकार को अपना निशाना बनाया है . इ टीवी बिहार से जुड़े पत्रकार प्रवीण ठाकुर पर बीते बुधवार की रात को कटिहार के सदर अस्पताल मैं कुछ गुंडों ने उस समय हमला बोल दिया जब वे समाचार संकलन कर रहे थे , इस हमले मैं मैं वे बुरी तरह घायल हो गएँ हैं और अस्पताल मैंभर्ती हैं.

बताया जाता है की बिहार खासकर कटिहार के सरकारी अस्पतालों मैं स्वास्थ विभाग के अधिकारीयों और डाक्टरों की मिलीभगत से एक मजबूत माफियातंत्र काम करता है जो न केवल अस्पतालों मैं घटिया दवाईओं अवं अन्य जीवन रक्षक चीजों की आपूर्ति करता है वरन मरीजों को डाक्टरों द्वारा लिखे घटिया दवाओं को खास दुकानों से खरीदने को मजबूर भी करता है , और यही कारण है की यह तत्वा नहीं चाहते की अस्पताल परिसर मैं पत्रकारों की आवाजाही हो और इसका सबसे बड़ा सबूत है पत्रकार प्रवीण ठाकुर पर हमला ....क्योंकि श्री ठाकुर की माने तो वे एक फोलोउप न्यूज़ करने गए थे जिसमे की अस्पताल प्रशासन के पहल पर एक मानसिक मरीज को इलाज के लिए सरकारी खर्च पर बहार भेजा जाना था ..जो की अस्पताल प्रशासन के मनविये चहरे को ही दिखता.

हालाँकि इस परिसर मैं ये कोई नई घटना नहीं है अन्य पत्रकारों की मने तो यहाँ औए दिन पत्रकारों के साथ दुर्वेव्हार होते रहते है.

इस पुरे घटनाक्रम मैं प्रशाशन की भूमिका वैसी ही है जैसा आमतोर पर होता है . पत्रकारों के लाख निवेदन के बाबजूद प्रशासन इस माफिया तंत्र के खिलाफ कोई ठोस जाँच करवा कार्रवाई करने के पक्ष मैं नजर नहीं आता.

रमेश मिश्र , कटिहार

Monday, January 4, 2010

हिन्दू संस्कृति से ही मानवता की रक्षा संभव - डॉ. मोहनराव भागवत




प्रयाग, 03 जनवरी (विश्व संवाद केन्द्र)। राश्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन राव भागवत ने माघ मेला स्थित परेड ग्राउण्ड में आयोजित संघ समागम में हजारों गणवेशधारी स्वयंसेवकों व नागरिकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि भोगवादी, प्रकृतिविरोधी, पिश्चमी जीवन शैली को छोड़कर और हिन्दू संस्कृति को अपनाकर ही पर्यावरण एवं मानवता की रक्षा की जा सकती है।

उन्होंने कहा कि यदि दुनिया के सभी देश पर्यावरण को लेकर समय रहते अगर नहीं चेता तो कुछ ही दिनों में दुनिया से मानव जीवन ही समाप्त हो जायेगा। इसका एकमात्र उपाय त्यागपूर्ण भारतीय संस्कृति से संभव है। इसलिए हम सबको प्रकृति के एक अंग होने के नाते प्रकृति से उतना ही लें जितना मूझे चाहिए। श्री भागवत ने बहती उर्जा का इस्तेमाल करने पर बल दिया और कहा कि बहती रुपी उर्जा जैसे सूर्य, नदी, जंगल, व खनिज सम्पदा का इस्तेमाल शोशण के बजाय दोहन के रुप में करें, तो सब कुछ नियंत्रित हो सकता है।

संघ प्रमुख ने कहा कि स्वयंसेवकों द्वारा एक लाख से अधिक सेवा के कार्य बिना सरकार के सहयोग से चलायें जा रहें है। इस प्रकार के कार्यो में समान जनता के सहयोग की अपेक्षा की। उन्होंने कहा कि संघ का कार्य शाखा के माध्यम से व्यक्ति निर्माण करना है। यदि संघ को जानना हो तो बड़ी संख्या में स्वयंसेवक बनकर जान सकते है। उन्होंने अधिक से अधिक स्वयंसेवक बनने का आह्वान किया। श्री भागवत ने कहा कि संघ का कार्य न किसी के विरोध में और नहीं ही किसी के प्रतिक्रिया में है, इसे समझने के लिए संघ की शाखा में आना जरुरी है। उन्होंने शाखा में आने का आह्वान करते हुए कहा कि आइए संघ के दरवाजे खुले हैं। जब तक इसकी कार्य प्रणाली को नहीं समझेगें, तब तक आत्मा नहीं समझ पायेंगे। संघ का काम अनुभव का है। अनुभव करके ही इसकी कार्य प्रणाली को समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि संघ की नीतियां सनातन हिन्दू संस्कृति की रही हैं। जो त्याग, सहिश्णु व सर्वधर्म समभाव पर टिकी हैं। इसका कट्टरता से कोई वास्ता नहीं है। भारतीय संस्कृति कभी यह नहीं सिखाती `केवल हम सही हैं। बाकी सब गलत।´ विश्व बन्धुत्व का इससे बड़ा उदाहरण अन्य किसी संस्कृति में नहीं है।

उन्होंने कहा कि जहां हिन्दू जनसंख्या प्रभावी नहीं है वहां ‘सडयन्त्रकारी शक्तियों द्वारा देश विरोधी गतिविधियों बढ़ रही है। इन सारे समस्याओं को समाधान हिन्दुत्व में है। उन्होंने कहा कि विदेशी ताकतों द्वारा यह विभ्रम फैलाया जा रहा है कि हिन्दू भी आतंकवादी होता है जबकि संघ का मानना है कि हिन्दू आतंकवादी हो ही नहीं सकता है यदि कोई हो गया भी तो हिन्दू समाज उसके साथ कभी खड़ा नही हो सकता। जबतक हिन्दुत्व की विचारधारा के आधार पर देश के सभी वर्गो, समुदायों एवं जातियों को एकसूत्र में बांधा नहीं जायेगा तब तक वैभवशाली राश्ट्र का निर्माण नहीं हो सकता।


उन्होंने कहा कि तथाकथित राजनेता अपनी निजि स्वार्थो के कारण जाति, पन्थ, भाशा, सम्प्रदाय व क्षेत्रवाद को बढ़ावा दे रहे है। इन नेताओं का देश की सुरक्षा व समस्या से कोई लेना देना नहीं है इनको सिर्फ कुर्सी चाहिए। तेलंगाना राज्य के मुद्दे पर कहा कि ये तुच्छ राजनीति करने वाले राजनेताओं की देन है। आज उनका कुछ नहीं बिगड़ रहा है उनके इस करतुत के कारण देश की सम्पति जल रही है। उन्होंने सन् 1952 के श्री गुरुजी के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा उनका मानना था कि भाशावाद के नाम पर राज्य का बंटवारा नहीं होेना चाहिए। आज इस प्रकार की समस्या हम सबके सामने दिख रही है।

उन्होंने कहा कि भारत की सीमाऐं चारो तरफ से असुरक्षित है। चीन अपने सामंतवादी नीति के तहत हमको चारों तरफ से घेर रहा है। उन्होंने पाकिस्तान का नाम लेकर कहा कि वह भारत से दुश्मनी छोड़ नहीं सकता है क्योंकि उसका जन्म ही दुश्मनी से हुयी। बांग्लादेश हमारे सैनिकों को मारता है और हमारे सीमाओं के अन्दर घुसपैठ करके अपना दावा ठोकता है। धीरे-धीरे बाग्लादेश आतंकवादियों का गढ़ बनता जा रहा है समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं हुआ तो आने वाले समय में हमारे सामने खतरा बढ़ेगा। इसलिए जोर देकर उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद भी सरकार बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर भेंजने में असफल है। राजनीतिक स्वार्थो के चलते घुसपैठियों को राशन कार्ड, मतदाता सूची में नाम अंकित कर उनसे सहानुभूति जतायी जा रही है। उन्होंने इन सभी समस्याओं के पिछे सरकार की ढुलमुल नीति को जिम्मेदार ठहराया।

श्री भागवत देश की आन्तरिक समस्याओं पर बोलते हुए कहा कि नक्सलवाद, उग्रवाद सहित अन्य प्रकार की समस्या जो हमारे सामने आ रही है उसके मूल में विदेशी ताकतें है। रंगनाथ कमेटी का बिना नाम लिये बगैर कहा कि संविधान के खिलाफ दिये जा रहे आरक्षण देश को बॉटने का काम करेगा न कि जोड़ने का इसलिए इस प्रकार के आरक्षण से सरकार को बचना चाहिए।। उन्होंने कहा कि भारत में तथाकथित अल्पसंख्यकों को इतनी अधिक सुविधाऐं दी जा रही है कि देश में बहुसंख्यक होना अपराध सा हो गया है।
उद्बोधन के प्रारम्भ में स्वयंसेवक घोश की थाप पर पथसंचलन करते हुए संघ समागम स्थल पर पहुंचे। सभा में सरसंघचालक जी के आने पर स्वयंसेवकों ने सरसंघचालक प्रणाम किया। तत्पश्चात ध्वजारोहण हुआ। श्री भागवत के उद्बोधन के पूर्व स्वयंसेवकों ने सूर्य नमस्कार, दण्ड, नियुद्ध आदि का प्रदर्सन किया।
इस संघ समागम में प्रमुख रुप से विहिप के अन्तर्राश्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंघल, पूर्व मानवसंसाधन विकास मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी, पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशरी नाथ त्रिपाठी, पूर्व मंत्री डॉ नरेन्द्र सिंह गौर, लखनउ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं संघ के सह क्षेत्र संघचालक प्रो. देवेन्द्र प्रताप सिंह, पूर्व लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष प्रान्त संघचालक प्रो. कृश्ण बिहारी पाण्डेय, क्षेत्र प्रचारक अशोक बेरी, क्षेत्र कार्यवाह राम कुमार वर्मा, विद्याभारती के क्षेत्र संगठन मंत्री िशवकुमार, एंव प्रान्त प्रचारक िशवनाराण सहित अन्य स्वयंसेवक व कार्यकर्ता उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन प्रान्त शारीरिक िशक्षण प्रमुख रत्नाकार एवं अतिथियों का परिचय प्रान्त कार्यवाह डॉ विश्वनाथ लाल निगम ने किया।

इस टीके पर टीका टिपण्णी क्यों

सुभाष गाताडे
सर्वाइकल कैंसर से मुक्ति का शर्तिया इलाज के नाम से एक मल्टीनेशनल कंपनी द्वारा तैयार किए गए एचपीवी वैक्सिन के विज्ञापन को प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर तमाम लोगों ने देखा होगा। इस कैंसर से होने वाली मौतों को रोकने के लिए कंपनी आपको सलाह देती है कि आप अपनी बेटी को यह टीका अवश्य लगवाएं और सुरक्षित व निश्चिंत हो जाएं। यह अलग बात है कि इस टीके का प्रभाव सिर्फ चार साल तक ही रहता है और इसके चलते जिन किशोरियों-बच्चियों को यह टीका लगाया भी जा रहा हो, उन्हें अगर यौन संसर्ग की अवस्था में सक्रिय होने वाले इस वायरस से बचना है तो फिर इसे लगाना पड़ सकता है। पिछले दिनों चंद महिला संगठनों ने दिल्ली के इंडियन वुमेंस प्रेस का‌र्प्स में एक आमसभा करके इस मसले पर अपने सरोकार का इजहार किया और बताया कि किस तरह देसी-विदेशी बड़ी कंपनियां अपने मुनाफे के लिए स्ति्रयों के शरीरों का दोहन कर रही हैं। गौरतलब है कि इस मसले पर उनकी सक्ति्रयता जुलाई 2009 में शुरू हुई थी, जब उन्हें पता चला कि आंध्र प्रदेश और गुजरात के ग्रामीण इलाकों की लगभग तीस हजार आदिवासी किशोरियों को (जिनकी उम्र 10 से 14 साल के बीच थी) गार्डासिल नामक एक टीका लगाया जा रहा है और यह दावा किया जा रहा है कि इससे सर्वाइकल कैंसर को रोका जा सकेगा। इन महिला संगठनों ने जब चिकित्सा विशेषज्ञों की सहायता से अधिक जानकारी हासिल करने की कोशिश की तो उन्हें इस संबंध में कई अन्य विस्फोटक तथ्य उजागर हुए। उन्हें यह पता चला कि विकसित मुल्कों में पहले से प्रचलित इस टीके को लगाने के तमाम खतरनाक परिणाम सामने आ चुके हैं। इन टीकों से कई स्वस्थ किशोरियों की मौत मौत होने की खबरें भी आई हैं, जिससे कई कंपनियों को इस टीके की खेपों को बाजार से हटाना भी पड़ा है। इस बात को मद्देनजर रखते हुए कि प्रस्तुत परीक्षणों की तरफ भारत सरकार आंखें मूंदे हुए है, उन्होंने इस संबंध में एक ज्ञापन भी स्वास्थ्य मंत्रालय को भेजा। यह अलग बात है कि अब भी मंत्रालय इस मसले पर मौन है और एक तरह से मल्टीनेशनल कंपनियों और एनजीओ के साथ परीक्षणों में साझेदारी में संलिप्त है। निश्चित ही एचपीवी वैक्सिन के प्रसार से उजागर हुई प्रक्ति्रया में नया कुछ नहीं है। गौरतलब है कि आउटसोर्सिग के बढ़ते प्रचलन के दौर में बड़ी-बड़ी बहुदेशीय दवा कंपनियों द्वारा अपनी नई दवाओं के परीक्षण का बोझ तीसरी दुनिया के मुल्कों की जनता पर छोड़ने के मामले में कुछ भी अनोखा नहीं है। पिछले दिनों मुंबई में आयोजित पहले इंडिया फार्मा सम्मिट में इससे जुड़ी तमाम बातें सामने आई थीं। यह बात स्पष्ट हुई कि स्वास्थ प्रणाली की खामियों के चलते ऐसे प्रयोगों में वालंटियर बने लोगों की सुरक्षा का मसला अक्सर उपेक्षित ही रह जाता है। यहां तक कि मरीजों से हासिल की गई सहमति भी विवादास्पद दिखती है। यह अकारण नहीं कि ऐसे लोगों की सहज उपलब्धता के चलते जो गैर-जानकारी में या अपनी गरीबी के चलते ऐसी नई दवाओं का अपने शरीर पर प्रयोग करने के लिए तैयार रहते हैं और इन देशों की लचर स्वास्थ्य प्रणाली और उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते आउटसोर्स किए गए चिकित्सकीय परीक्षणों का बाजार आज 12,000 हजार करोड़ रुपये से आगे निकल चुका है। मुंबई में आयोजित सम्मेलन में उद्योगपतियों के संगठन फेडरेशन ऑफ इंडियन चेंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज यानी फिक्की की तरफ से एक रिपोर्ट भी पेश की गई, जिसमें यह जोर भी दिया गया कि राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने के लिए उपयोगी प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है। न्यूयॉर्क के फोर्डहैम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फाल्गुनी सेन द्वारा तैयार की गई प्रस्तुत रिपोर्ट में राष्ट्रीय हितों को भी अलग ढंग से परिभाषित किया गया था। इसके मुताबिक चिकित्सकीय परीक्षणों के लिए राष्ट्रीय हित का मतलब है ऐसी दवाएं, जो भारतीय आबादी के हिसाब से अधिक प्रासंगिक हों और अन्य मुल्कों में इसी किस्म की वरीयता नहीं हो। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि परीक्षणों के लिए भारत की परिस्थिति के मुताबिक, ऐसे पैमाने भी तय किए जा सकते हैं कि कौन-सी जांच यहां संभव नहीं होगी। इस फेहरिस्त में अन्य मुल्कों में पाबंदी लगाई गई दवाएं भी शामिल की जा सकती हैं। मालूम हो कि पिछले दिनों ड्यूक यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के मेडिकल रिसचर्स इस बात को लेकर चकित थे कि वर्ष 2007 में जिन नए ड्रग्स पर परीक्षण चले थे, उसके संबंध में एक तिहाई से अधिक परीक्षण अमेरिका के बाहर हुए थे। प्रस्तुत अध्ययन में अमेरिका की बीस बड़ी फार्मास्युटिकल्स कंपनियों ने 500 से अधिक चिकित्सकीय परीक्षणों का विश्लेषण किया था। अधिक महत्वपूर्ण बात यह थी कि जिन बाहर के मुल्कों में इन परीक्षणों को अंजाम दिया गया, उसके बारे में कंपनियों के लिए पहले से स्पष्ट था कि उनकी इन दवाओं के लिए कोई खास बाजार मिलने वाला नहीं है। सभी जानते हैं कि तीसरी दुनिया के मुल्कों की बीमारियों और पहली दुनिया की बीमारियों में कुछ समानताएं मिल सकती हैं, लेकिन काफी फर्क भी है। ऐसी तमाम बीमारियां, जो यहां कभी-कभी महामारी का रूप धारण करती दिखती हैं, उनसे वहां लगभग काबू पा लिया गया है। टीबी जैसी बीमारी हो या दूषित जल से पैदा होने वाली डायरिया जैसी बीमारियां हों, वे कभी वहां उस किस्म का कहर नहीं बरपाया करतीं, जैसे कि वे तीसरी दुनिया के हिंदुस्तान जैसे मुल्कों में करती हैं। यह अकारण नहीं कि इन अध्ययनकर्ताओं को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि टीबी जैसी बीमारी के लिए तीसरी दुनिया के इन लोगों पर कोई चिकित्सकीय परीक्षण नहीं चले, भले ही यह बीमारी विकासशील देशों में आज भी बड़े पैमाने पर विद्यमान हो। गौरतलब है कि आम हिंदुस्तानी का बड़ी-बड़ी कंपनियों की दवाओं के लिए गिनीपिग बनने का सिलसिला कोई नया नहीं है। वर्ष 1997 में देश के प्रमुख कैंसर संस्थान इंस्टीटयूट फॉर साइटॉलॉजी एंड प्रिवेंटिव एनकोलॉजी के तहत चला एक अध्ययन काफी विवाद का विषय बना था, जब पता चला था कि 1100 ऐसी स्ति्रयां, जो सर्वाइकल डिसप्लेसिया (गर्भाशय के मुख पर कोशिकाओं के विकास) से पीडि़त थीं, का इलाज केवल इसलिए नहीं किया गया ताकि बीमारी किस तरह बढ़ती है, उसका अध्ययन किया जाए। इसके बाद भी जब अस्वाभाविक बढ़त देखी गई और सर्वाइकल कैंसर की आशंका महसूस की गई, तब भी न तो उन स्ति्रयों को इसके बारे में चेतावनी दी गई और न ही उनका इलाज किया गया, बल्कि चूहों की तरह उन पर परीक्षण जारी रहा। ज्यादा विचलित करने वाली बात यह थी कि यह समूचा अध्ययन देश के एक अग्रणी चिकित्सकीय खोज संस्थान के बैनर तले संचालित हो रहा था, जिस पर चिकित्सकीय शोध की नैतिक मार्गदर्शिका बनाने की प्रमुख जिम्मेदारी थी। इसमें कोई दोराय नहीं कि जब तक चिकित्सकीय नैतिकता के केंद्र में जानकारी के साथ सहमति का मसला नहीं रहेगा, तब तक ऐसे प्रयोगों का बार-बार दोहराव हम देखते रहेंगे। इसके लिए तैयार की जा रही मार्गदर्शिकाओं में न केवल नई तकनीकों व शोधों से उत्पन्न चुनौतियों का जिक्र होना चाहिए, बल्कि बदली सामाजिक परिस्थितियां जैसे भारत जैसे समाज में व्याप्त लिंग व वर्ग असमानता को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
साभार दैनिक जागरण

केंद्र सरकार की मज़बूरी

नक्सलियों से निपटने की रणनीति में बदलाव समय की मांग हो सकती है, लेकिन यह शुभ संकेत नहीं कि पश्चिम बंगाल और झारखंड की नई सरकार का रवैया केंद्र से मेल नहीं खा रहा। नक्सलियों से चाहे जैसे निपटा जाए, लेकिन केंद्र और नक्सलवाद प्रभावित राज्यों में तालमेल होना प्राथमिक आवश्यकता है। यह निराशाजनक है कि नक्सलवाद का मुकाबला करने के तमाम वायदों और तैयारियों के बावजूद केंद्र और राज्य सरकारों के बीच आवश्यक तालमेल कायम होता नजर नहीं आ रहा। नि:संदेह इसका लाभ नक्सली संगठन उठा रहे हैं। उन्होंने न केवल आपस में बेहतर संपर्क स्थापित कर लिए हैं, बल्कि खुद को आधुनिक हथियारों से भी लैस कर लिया है। यही कारण है कि वे पुलिस और सुरक्षा बलों पर हमले करने और जनजीवन को बाधित करने में सक्षम हो गए हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में तो वे जब चाहते हैं तब आसानी से बंद आयोजित करने में सफल हो जाते हैं। यह समझ पाना कठिन है कि जब केंद्र सरकार को उनके खिलाफ कोई सीधी कार्रवाई नहीं करनी थी तो फिर ऐसा माहौल क्यों बनाया गया कि उनसे दो-दो हाथ किए जाएंगे? यह विस्मृत नहीं किया जा सकता कि नक्सलियों के खिलाफ सैन्य बलों और यहां तक कि वायुसेना के इस्तेमाल को लेकर भी व्यापक चर्चा छिड़ी। अब यह कहा जा रहा है कि नक्सलियों को निशाना बनाने के बजाय उनकी घेरेबंदी की जाएगी और उन तक हथियारों एवं अन्य सामग्री की आपूर्ति को रोका जाएगा। यह जानना कठिन है कि इसके पहले इस पर विचार क्यों नहीं किया गया कि नक्सलियों को हथियारों की आपूर्ति रोकने की जरूरत है? पिछले कुछ वर्षो में नक्सलियों ने जैसे आधुनिक हथियार एवं विस्फोटक पदार्थ जुटा लिए हैं उससे यही प्रतीत होता है कि इसके पहले उनकी सप्लाई लाइन को बाधित करने पर विचार ही नहीं किया गया। देखना यह है कि अब ऐसा करने में सफलता मिलती है या नहीं? निश्चित रूप से केवल इतने से ही नक्सलियों के मनोबल को तोड़ना कठिन है, क्योंकि अब वे इतने अधिक दुस्साहसी हो गए हैं कि हथियारों के लिए पुलिस थानों पर भी हमला करने में संकोच नहीं कर रहे हैं। पुलिस थानों और सुरक्षा बलों के ठिकानों पर नक्सलियों के हमले यह भी बताते हैं कि किस तरह पुलिस को आवश्यक संसाधनों से लैस करने में अनावश्यक देरी की गई। यह निराशाजनक है कि इस मोर्चे पर राज्य सरकारें अभी भी तत्पर नजर नहीं आतीं। यह एक तथ्य है कि पुलिस सुधारों के मामले में राज्य सरकारों का रवैया ढुलमुल ही अधिक है। यह विचित्र है कि राज्य सरकारें पुलिस सुधारों के मामले में न तो उच्चतम न्यायालय के निर्देशों पर अमल करने के लिए आगे बढ़ रही हैं और न ही सुरक्षा विशेषज्ञों के सुझावों पर। आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में रेखांकित किए जा रहे नक्सलवाद का मुकाबला करने के मामले में सबसे अधिक निराशाजनक यह है कि केंद्र और राज्यों के बीच इस पर कोई आम सहमति कायम नहीं हो पा रही है कि नक्सलियों को सही रास्ते पर कैसे लाया जा सकता है?
साभार दैनिक जागरण
मात्र नौ वर्ष का एक छोटा सा बालक सन् 1675 में पिता के साथ आसाम से पंजाब आया। पिता (गुरू तेगबहादुर) का दिन-रात देश और समाज का चिन्तन तथा धर्म रक्षा का संकल्प बालक के मन को अन्दर तक छू रहा था। एक दिन गुरू तेगबहादुर कश्मीरी पंडितों पर हुए मुगलों के अमानवीय अत्याचारों की कथा सुनते-सुनते कहने लगे - इस समय धर्म रक्षा का एक ही उपाय है कि कोई बड़ा धर्मात्मा पुरूष बलिदान दे। यह बात बालक गोविन्द बड़े ध्यान से सुन रहा था। सभी लोग विषय की गम्भीरता को देख मौन थे। अचानक बालक गोविन्द बोल पड़ा - पिताजी, आज के समय में आप से बढ़कर दूसरा महात्मा व धर्मात्मा पुरूष और कौन हो सकता है। नौ वर्षीय बालक के इस उत्तर पर गुरू तेगबहादुर बहुत प्रसन्न हुए।

मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी सन् 1675 को पिता के बलिदान के पश्चात् बालक गोविन्द नौ वर्ष तक आनन्द पुर में रहे जहाँ उन्होंने अपनी भावी जीवन की योजना बनाई। अपने बलिदान से पूर्व गुरू तेग बहादुर ने यहीं पर उन्हें गुरूता गद्दी प्रदान करते हुए देश, धर्म व दुखी जनता का उद्धार करने का आशीर्वाद दिया। बालक गोविन्द से गुरू गोविन्द बने गुरू गोविन्द सिंह जी ने सिख समुदाय को हुक्मनामे भेज-भेज कर अस्त्र, शस्त्र और धन एकत्रित किया तथा सामाजिक धारा को क्रांतिकारी रूप देने के लिए एक छोटी सेना भी बनाई।

भारत में मुगल शासकों के निरन्तर बढ़ते आक्रमणों से देश और धर्म को बचाने के लिए सन् 1699 में बैसाखी के दिन गुरू गोविन्द सिंह जी ने अपने अनुयाईयों की एक विशाल सभा बुलाई जिसे सम्बोधित करते हुए उन्होंने हाथ में नंगी तलवार लेकर प्रश्न किया कि है कोई, जो धर्म के लिए अपने प्राण दे सकेर्षोर्षो उनकी इस प्रेरणादायक ललकार को सुनकर बारी-बारी से दयाराम खत्री, धर्म दास जाट, मोहकम चंद धोबी, हिम्मत सिंह रसोइया तथा साहब चंद नाई अग्रसर हुए जिनके पश्चात् सारा निश्तेज समाज जोश में भर, उठ खड़ा हुआ। उन्होंने यहीं पर जात-पात के भेदभाव में बिखरे हिन्दू समाज को समिन्वत कर खालसा के रूप में खड़ा किया और इस प्रकार खालसा पंथ की स्थापना हुई।

गुरू गोविन्द सिंह एक बड़े समाज सुधारक थे। सती प्रथा, कन्या वध, अस्पृश्यता (छूआ-छूत) इत्यादि सामाजिक बुराईयों से दूर समानता पर आधारित सामाजिक संरचना के वे पक्षधर थे। वीरता व पराक्रम में उनका मुकाबला नहीं था। चिड़ियों के समान डरपोक भारतीय युवकों को वे कहा करते थे कि
Þसवा लाख से एक खड़ाऊ,
चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊं,
तबै गोविन्द सिंह नाम कहाऊँÞ।

औरंगजेब समर्थक, पंजाब के पर्वतीय नरेशों को, भंगाणी के युद्ध में पराजित किया और 1703 में उन्होंने चमकौर के युद्ध में केवल 40 सिखों की सहायता से मुगलों की विशाल सेना के छक्के छुड़ा दिये थे। इसमें गुरू गोविन्द सिंह के दो बड़े पुत्रों अजीत सिंह व जुझार सिंह के साथ पांच प्यारों में से तीन प्यारे शहीद हो गये।
सन् 1703 में सरहिन्द के नवाब वजीर खाँ ने उनके दो छोटे पुत्रों जोरावर सिंह और फतेह सिंह को, इस्लाम स्वीकार न करने के कारण दीवार में जीवित चिनवा दिया। चारों पुत्रों और पत्नी की क्रुर हत्या होने के बावजूद भी गुरूजी एक महान योगी की तरह बिल्कुल भी विचलित नहीं हुए 1706 में उन्होंने खिदराना का युद्ध लड़ा।

वे महान योद्धा तो थे ही, संगीत, साहित्य व कला के क्षेत्र में उनकी गहरी रूचि थी। वे रचनाकार कवि भी थे। उनके द्वारा रचित दशम ग्रन्थ हैं जिसमें - जापु साहेब, अकाल स्तुति, विचित्र नाटक, चण्डी चरित्र, चण्डी दीवार, जफरनामा, चौबीस अवतार, ज्ञान प्रबोध आदि प्रमुख हैं। उनके दरबार में 52 कवि थे। इनमें दया सिंह, नंदलाल, सेनापति चन्दन, खानखाना आदि प्रमुख थे। उनकी रचनाओं में वीर रस की प्रधानता थी। उन्होंने अपने बाद श्री गुरू ग्रन्थ साहेब को गुरू मानने का आदेश देकर गुरूता गद्दी पर आसीन किया। संवत् 1765 अर्थात् ईसवी सन् 1708 में नांदेड़ में गोदावरी के तट पर गुरूजी ने देह त्याग कर स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया। उनके द्वारा जलाई गई स्वतन्त्रता ज्योति तथा अन्याय के विरूद्ध लड़ने की भावना आज भी भारतीयों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है।
गऊ रक्षा के लिए उनका मत था
`यही दे हु आज्ञा तुरकन गहि खपाऊं,
गऊ घात का दोख जगसों मिटाऊं।
-उग्रदन्ती
अर्थात् हे मां भवानी, मुझे आशीर्वाद और आदेश दे कि धर्म विरोधी अत्याचारी तुर्कों को चुन-चुनकर समाप्त कर दूं आर इस जगत से गौ हत्या का कलंक मिटा दूं। वे देवी दुगाZ भवानी के अनन्य उपासक थे। `खालसा´ सृजन से पहले उन्होंने शक्ति यज्ञ का अनुष्ठान किया था। उनकी इच्छा थी कि
सकल जगत मो खालसा पंथ गाजै,
जगै धरम हिन्दुक तुरक दुंंद भाजै।
-उग्रदन्ती
अर्थात्, सारे जगत में खालसा पंथ की गूंज हो, हिन्दू धर्म का उत्थान हो तथा तुर्कों द्वारा पैदा की गयी विपत्तियां समाप्त हों।
खालसा के लक्षण पूछने पर दशमेश गुरू ने एक बार कहा कि खालसा वह है जिसने काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार पर काबू पा लिया हो तथा अभिमान, परस्त्री गमन, पर-निन्दा तथा मिथ्या विश्वासों के भ्रमजाल से सदा दूर रहता हो। जो दीन दुखियों की सेवा व दुर्जन-दुष्टों का विनाश कर निरन्तर श्रद्धापूर्वक प्रभु नाम के जप में लीन रहता हो। खालसा को चरित्रवान व पराक्रमी बनाये रखने के लिए उन्होनें पांच ककार धारण करने के लिए कहा। ये हैं - 1. कृपाण 2. केश 3. कंघा, 4. कच्छा व 5. कड़ा।
विनोद बंसल