Wednesday, January 20, 2010

इण्डेन शर्मा गैस एजेंसी उत्तम नगर ने ग्राहकों को परेशान कर रखा है

नई दिल्ली। इण्डेन शर्मा गैस एजेंसी उत्तम नगर ने नए ग्राहकों को परेशान कर रखा है। यह गैस एजेंसी इण्डेन गैस की घर-घर सप्लाई व नए कनेक्शन बुक करती है। इन्होंने यह नियम बना रखा है कि ग्राहक को नया गैस कनेक्शन तीन बजे बाद ही मिलेगा। मगर यदि कोई ग्राहक यदि सुबह अपने नौकरी पर जाता हो तो उसे कनेक्शन कैसे मिलेगा। बार-बार विनम्रता पूर्वक कहने पर भी यहां का स्टॉफ मदद करने को नही तैयार होता। इसके साथ ये सारे डोकूमेंट होने पर भी नए-नए बहाने लेकर परेशान करते हैं।


ये नए कनेक्शन मांगने वाले को इतना तंग करते हैं कि या तो वो वहां जाना बन्द कर देता है या इनकी धन पूजा करे तभी काम होगा। डब्लूडब्लूडब्लू डॉट आईओसीएल डॉट कॉम पर जाने के बाद पता चलता है कि नया कनेक्शन उसे मिल सकता है जिसके पास इनमें से एक एक निवास पहचान हो- जैसे राशनकार्ड, बिजली बिल, टेलीफोन बिल, पासपोर्ट, इमप्लायर्स सर्टिफिकेट, फ्लैट एलाटमेंट, पजेशन लेटर, हॉउस रजिस्ट्रेशन पेपर, एलआईसी पॉलिसी, ओटर आइडेंटिटी कॉर्ड, रेंट रिसिप्ट, पैन कोर्ड या ड्राइवरी लाइसेंस रखता हो।


मगर उत्तम नगर की इण्डेन शर्मा गैस एजेंसी इण्डियन ऑयल कंपनी से भी उपर हो गई है। यदि कोई व्यक्ति राशन कार्ड रखता हो मगर रेंट पर हो तो उसके लिए एफीडेविट, बिजली बिल, रेंट एग्रीमेंट, ओटर आइडेंटिटी कॉर्ड आदि सब चाहिए। जब इस तरह के इतने डोकूमेंट चाहिए तो कंपनी क्यों नही इन सबको अपनी बेबसाइट में मेंशन किया। होना यह चाहिए कि जिस व्यक्ति के पास राशनकार्ड है और रेंट पर रह रहा है तो वो मकान मालिक से लिखवा के दे दे मगर ये लोग नए गैस कनेक्शन देने के नाम पर किसी व्यक्ति को इतना परेशान जलील करते हैं कि वो व्यक्ति आना ही छोड़ दे। क्या ये लोग इस तरह की हरकत कर जनता की सेवा कर रहे हैं। किसी शिकायत के लिए एसिस्टेंट मैनेजर, एरिया मैनेजर या स्टेट मैनेजर को फोन करो तो कोई फोन ही नही उठाता। ये लोग जनता की सेवा करने के लिए बैठे हैं या जनता को परेशान करने के लिए बैठे हैं।
अभी आगे-आगे देखना है कि ये कितना पापड़ बेलवाते हैं।

इण्डेन गैस शर्मा गैस एजेंसी उत्तम नगर ने ग्राहकों को परेशान कर रखा है
नई दिल्ली। इण्डेन गैस शर्मा एजेंसी उत्तम नगर नए ग्राहकों को परेशान कर रखा है। यह गैस एजेंसी इण्डेन गैस की घर-घर सप्लाई व नए कनेक्शन बुक करती है। इन्होंने यह नियम बना रखा है कि ग्राहक को नया गैस कनेक्शन तीन बजे बाद ही मिलेगा। मगर यदि कोई ग्राहक यदि सुबह अपने नौकरी पर जाता हो तो उसे कनेक्शन कैसे मिलेगा। बार-बार विनम्रता पूर्वक कहने पर भी यहां का स्टॉफ मदद करने को नही तैयार होता। इसके साथ ये सारे डोकूमेंट होने पर भी नए-नए बहाने लेकर परेशान करते हैं।

ये नए कनेक्शन मांगने वाले को इतना तंग करते हैं कि या तो वो वहां जाना बन्द कर देता है या इनकी धन पूजा करे तभी काम होगा। डब्लूडब्लूडब्लू डॉट आईओसीएल डॉट कॉम पर जाने के बाद पता चलता है कि नया कनेक्शन उसे मिल सकता है जिसके पास इनमें से एक एक निवास पहचान हो- जैसे राशनकार्ड, बिजली बिल, टेलीफोन बिल, पासपोर्ट, इमप्लायर्स सर्टिफिकेट, फ्लैट एलाटमेंट, पजेशन लेटर, हॉउस रजिस्ट्रेशन पेपर, एलआईसी पॉलिसी, ओटर आइडेंटिटी कॉर्ड, रेंट रिसिप्ट, पैन कोर्ड या ड्राइवरी लाइसेंस रखता हो।


मगर उत्तम नगर की इण्डेन शर्मा गैस एजेंसी इण्डियन ऑयल कंपनी से भी उपर हो गई है। यदि कोई व्यक्ति राशन कार्ड रखता हो मगर रेंट पर हो तो उसके लिए एफीडेविट, बिजली बिल, रेंट एग्रीमेंट, ओटर आइडेंटिटी कॉर्ड आदि सब चाहिए। जब इस तरह के इतने डोकूमेंट चाहिए तो कंपनी क्यों नही इन सबको अपनी बेबसाइट में मेंशन किया। होना यह चाहिए कि जिस व्यक्ति के पास राशनकार्ड है और रेंट पर रह रहा है तो वो मकान मालिक से लिखवा के दे दे मगर ये लोग नए गैस कनेक्शन देने के नाम पर किसी व्यक्ति को इतना परेशान जलील करते हैं कि वो व्यक्ति आना ही छोड़ दे। क्या ये लोग इस तरह की हरकत कर जनता की सेवा कर रहे हैं। किसी शिकायत के लिए एसिस्टेंट मैनेजर, एरिया मैनेजर या स्टेट मैनेजर को फोन करो तो कोई फोन ही नही उठाता। ये लोग जनता की सेवा करने के लिए बैठे हैं या जनता को परेशान करने के लिए बैठे हैं।
अभी आगे-आगे देखना है कि ये कितना पापड़ बेलवाते हैं।
राजीव कुमार
9911850406
rajeevkumar905@gmail.com

Wednesday, January 6, 2010

मकर संक्राति – पतंगो का रंगबिरंगी त्यौहारगुजरात में आंतराष्ट्रीय पतंग महोत्सव की धूम

मकर संक्राति – पतंगो का रंगबिरंगी त्यौहारगुजरात में आंतराष्ट्रीय पतंग महोत्सव की धूम
32 देशो से 87 पतंगबाज इस महोत्सव में भाग लेंगेमहोत्सव के दौरान अहमदाबाद का आसमान रंगीन हो जाता है300 करोड का बिजनस गुजरात को मिलता हैः गुजराती जानते है कि त्यौहारो से भी कैसे मुनाफा कमाया जा सकता है।
- निलेष शुक्ला
विश्वभर में भारत ही एक ऐसा देश है जहां सबसे अधिक त्यौहार मनाये जाते है। भारत वर्ष की परंपरा रही है कि वह त्यौहारों को उत्सव के रुप में मनाकर खुशी हांसिल करता है। इसमें भी गुजराती उत्सव को मनाने में सबसे आगे रहते है और मजे की बात यह है कि वे उत्सव मनाने के साथ-साथ उससे भी अपना मुनाफा कमाना नहीं छोडते। शायद इसीलिए कहा जाता है कि गुजरातीयों की नस-नस में बिजनस बसा हुआ है। मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जबसे गुजरात में उत्सवो को मनाने का सिलसिला शुरु किया है तबसे गुजरात का होटल बिजनस तिगुना बढ गया है। मोदी जी कहते है कि हमने हमारी पहचान केवल 12 रुपये की किंमत से बनाई है फिर वो पतंग हो या डांडिया, जबकि अन्य लोग इसी पहचान के लिए लाखो रुपये खर्च करते है।
गुजरात में वर्ष के अंत में नवरात्रि और कच्छ उत्सव का सफलता पूर्वक आयोजन करने के बाद नववर्ष की शुरुआत अंतराष्ट्रीय पतंग महोत्सव से की जाती है। यह त्यौहार 10 से 14 जनवरी 2010 तक अहमदाबाद में मनाया जायेगा। इस उत्सव में केवल घरेलु पतंगबाज ही नहीं अपितु आंतराष्ट्रीय स्तर के पतंगबाज हिस्सा लेते है। इस वर्ष 32 देशो से 87 पतंगबाज इसमें भाग लेने के लिए आनेवाले है। जिसमें विदेशो से बल्गारीया, फ्रांस, कोलंबिया, मलेशिया, युनाईटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, न्युजिलेन्ड, स्वीट्जरलेन्ड, सिंगापुर, स्वीडन वगेरे देश भाग लेंगे। श्री पी.के गेरा, निवासी आयुक्त, दिल्ली, गुजरात सरकार ने जानकारी दी कि गुजरात सरकार ने इन सभी देशो के एम्बेसेडर व डिप्लोमेट्स को आमंत्रित किया गया है एवं अपने देश में से राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश के पतंगबाज इसमें भाग लेंगे। पतंग महोत्सव को आंतराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाने का श्रेय गुजरात के मुख्यमंत्री को जाता है। इससे गुजरात को 300 करोड रुपयो का व्यापार मिलता है। गुजराती अच्छी तरह से जानते है कि त्यौहारो से भी कैसे मुनाफा कमाया जा सकता है। इससे गृह उद्योग को भी बहुत लाभ होता हैं। घर में ही औरते और बच्चे पतंग बनाने का काम करते हैं कमाई करते हैं। यहां तरह-तरह की पतंगे जैसे गोल, चील, चांदपर, आखियो, पावलो, पोणीया या फिर रोकेट और रात के समय उडाने के लिए लालटेनवाली पतंग खास बिकती है। पूरा आकाश रंग-बिरंगी पतंगो से घिरा रहता हैं।
प्राचीन काल के बहुत से चित्र ऐसे हैं जिसमें भगवान कृष्ण को पतंग उडाते देख सकते हैं। उस समय की पुस्तको में भी पतंग का उल्लेख मिलता है। भारत में मुगल समय में पतंगबाजी का शौक लोकप्रियता के शिखर पर था। अनेक मुगल बेगमो और शहजादो को पतंग उडाने का शौक था। उस समय पतंग का उपयोग प्रेमी को संदेश पहुंचाने के लिए किया जाता था। मध्य काल में संपूर्ण भारत पतंगो से प्रसिद्ध हो गया था। लखनउ व दिल्ली में पतंगो की प्रतियोगिताएं योजी जाती थी। अंतिम बादशाह बहादूरशाह जफर भी पतंग उडाने का शौक रखते थे। उनके समय में यमुना के दोनों किनारो पर पतंग उडाने की प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। दिल्ली व उत्तर भारत के अन्य शहरों में सावन-भादों में पतंग उडाने का रिवाज है। 15 अगस्त के दिन तो आसमान तिरंगी पतंगो से घिर जाता है।
पतंग उडाने का आनंद केवल भारतीय ही लेते हैं ऐसा नहीं हैं। विदेशो में भी पतंग बहुत ही आनंद के साथ उडाई जाती हैं। अमरिका में तो पतंग उडाने के इतिहास को जानने के लिए एक म्युजियम बनाया गया हैं। जिसमें पतंग बनानेवाले कारीगरों के बारे में और जग प्रसिद्ध अलग-अलग तरह की पतंगो के बारे में रोचक जानकारी दी गई हैं। इस म्युजियम का उदघाटन 21 अगस्त 1990 को हुआ था।
थाईलेन्ड में पतंगः यहां 13वीं सदी में पतंग बौद्ध धर्म के लोग भगवान का आशीर्वाद पाने के लिए उडाते थे। और जब वे पतंग उडाते थे तब वे एक अनोखा "हमींग" जैसी आवाज भी करते थे जिससे भगवान तक उनकी आवाज पहुंच सके। आजकल वे वर्षा ऋतु के प्रारंभ में पतंग उडाते हैं जिसमें वे एक बडी सी पतंग जिसे "चुला" कहा जाता है और उसके साथ अन्य छोटी-छोटी पतंगे जिसे "पाकापाओस" कहा जाता हैं उसे उडाते हैं। दो अलग प्रकार की पतंगों को एक-दूसरे को अपनी ओर खिंचने का प्रयास किया जाता है और इस खेल को देखने के लिए मैदान में हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे होते हैं।
मलेशिया में पतंगः मलेशिया की पतंगे थाईलेन्ड की पतंगो से जरा अलग होती हैं। यहां पर मोटे तौर पर चकोर पतंग बनाई जाती हैं लेकिन उसकी खासियत यह है कि उसमे कलाकारी की हुई लंबी पूंछ लगाई जाती हैं क्योंकि वहां हवा बहुत तेज चलती हैं। इन्डोनेशिया में पतंगः यहां भी पतंग बहुत समय पहले से ही उपयोग में ली जाती हैं। यहां जो सबसे पहले पतंग बनाई गई थी वह पेड के पत्तो से बनाई गई थी, जिसका उपयोग सागर में दूर मछली पकडने के लिए किया जाता था। इन्डोनेशिया के चारों और आईलेन्ड हैं इसलिए वहां तेज हवाएं चलती हैं इसलिए य़हां पर बडी-बडी पतंगे वनाई जाती हैं जो पक्षी या पशु के आकार की होती हैं। इन पतंगो को बनाने के लिए बांस की लकडी, सूती कपडा या नायलोन का उपयोग किया जाता हैं।
चीन में पतंगः ऐसा कहा जाता है कि चीन में सबसे पहले पतंग का उपयोग दूरी मापने के लिए किया था। वहां भी पतंग उडाने का आनंद एक उत्सव की तरह ही मनाया जाता है। चीन में नौंवे महीने का नवां दिन पतंग उडाने का दिन माना जाता है। कहा जाता है कि 3000 वर्ष पहले चीन के सेनापति ह्युन त्स्यांग ने पतंग को बांस के टुकडे के साथ बांधकर उसे शत्रु के देश में भेजते थे, और जब पतंग में से हवा पास होने से उसमें से सीटी जैसा आवाज निकलता जिसे सुनकर दुश्मन भाग जाते थे। अपने लश्कर के जवानो को संदेश पहुंचाने के लिए भी पतंग का उपयोग किया जाता था। चीन में 300 तरह की अलग-अलग प्रकार की पतंगे बनाई जाती है। चीन की राजधानी बीजिंग में सबसे बडा पतंग का संग्रहालय बनाया गया है।
पतंग का उपयोग लश्कर के अलावा वैज्ञानिक शोध के लिए भी किया जाता था। 1749 में स्कोटलेन्ड के एलेकजेन्डर विल्सन ने पतंग की मदद से विविध उंचाइयों पर उष्णतामान का माप निकाला था। राइट बंधुओने ओस्ट्रिया के लोरेन्स हाग्रेवना 1884 में सिडनी में बक्से के आकार का पतंग बनाकर उसमें वजन डालकर उसे उडाने में सफलता हांसिल की थी।
इस पर्व में जहां लोग पतंग उडाने का आनंद उठाते हैं वहीं मासुम पक्षी भी इसका शिकार हो जाते हैं। क्योंकि अचानक से उनके स्वच्छंद आकाश में पतंग रुपी अनेक डोर की बाधाएं आ जाती हैं जो उन्हें उडने में बाधा डालती हैं और ये निर्दोष या तो घायल होते हैं या मारे जाते हैं। एक अंदाज अनुसार एक ही दिन में करीब 10,000 पक्षी घायल होते हैं या मर जाते हैं। इसलिए पतंग रसिको को चाहिये की वे पतंग उडाते समय इस बात का भी ध्यान रखे की कोई निर्दोष पक्षी घायल न हो।
तो चलिए हम भी पतंग उडाने की तैयारी करते हैं लेकिन जरा संभलकर इससे किसी को कोई नुकसान न हो.... चली रे चली रे पतंग मेरी चली रे..... ये काटा..... वो काटा.....

फिर हुआ एक पत्रकार पर जानलेवा हमला

कटिहार, बिहार ।बिहार मैं अपराधिओं के हौसले फिर से बुलंद नजर आने लगे हैं . तजा घटनाक्रम मैं अधिकारीयों और दलालों के गठजोर से पनपे गुंडों ने एक टी वी पत्रकार को अपना निशाना बनाया है . इ टीवी बिहार से जुड़े पत्रकार प्रवीण ठाकुर पर बीते बुधवार की रात को कटिहार के सदर अस्पताल मैं कुछ गुंडों ने उस समय हमला बोल दिया जब वे समाचार संकलन कर रहे थे , इस हमले मैं मैं वे बुरी तरह घायल हो गएँ हैं और अस्पताल मैंभर्ती हैं.

बताया जाता है की बिहार खासकर कटिहार के सरकारी अस्पतालों मैं स्वास्थ विभाग के अधिकारीयों और डाक्टरों की मिलीभगत से एक मजबूत माफियातंत्र काम करता है जो न केवल अस्पतालों मैं घटिया दवाईओं अवं अन्य जीवन रक्षक चीजों की आपूर्ति करता है वरन मरीजों को डाक्टरों द्वारा लिखे घटिया दवाओं को खास दुकानों से खरीदने को मजबूर भी करता है , और यही कारण है की यह तत्वा नहीं चाहते की अस्पताल परिसर मैं पत्रकारों की आवाजाही हो और इसका सबसे बड़ा सबूत है पत्रकार प्रवीण ठाकुर पर हमला ....क्योंकि श्री ठाकुर की माने तो वे एक फोलोउप न्यूज़ करने गए थे जिसमे की अस्पताल प्रशासन के पहल पर एक मानसिक मरीज को इलाज के लिए सरकारी खर्च पर बहार भेजा जाना था ..जो की अस्पताल प्रशासन के मनविये चहरे को ही दिखता.

हालाँकि इस परिसर मैं ये कोई नई घटना नहीं है अन्य पत्रकारों की मने तो यहाँ औए दिन पत्रकारों के साथ दुर्वेव्हार होते रहते है.

इस पुरे घटनाक्रम मैं प्रशाशन की भूमिका वैसी ही है जैसा आमतोर पर होता है . पत्रकारों के लाख निवेदन के बाबजूद प्रशासन इस माफिया तंत्र के खिलाफ कोई ठोस जाँच करवा कार्रवाई करने के पक्ष मैं नजर नहीं आता.

रमेश मिश्र , कटिहार

Monday, January 4, 2010

हिन्दू संस्कृति से ही मानवता की रक्षा संभव - डॉ. मोहनराव भागवत




प्रयाग, 03 जनवरी (विश्व संवाद केन्द्र)। राश्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन राव भागवत ने माघ मेला स्थित परेड ग्राउण्ड में आयोजित संघ समागम में हजारों गणवेशधारी स्वयंसेवकों व नागरिकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि भोगवादी, प्रकृतिविरोधी, पिश्चमी जीवन शैली को छोड़कर और हिन्दू संस्कृति को अपनाकर ही पर्यावरण एवं मानवता की रक्षा की जा सकती है।

उन्होंने कहा कि यदि दुनिया के सभी देश पर्यावरण को लेकर समय रहते अगर नहीं चेता तो कुछ ही दिनों में दुनिया से मानव जीवन ही समाप्त हो जायेगा। इसका एकमात्र उपाय त्यागपूर्ण भारतीय संस्कृति से संभव है। इसलिए हम सबको प्रकृति के एक अंग होने के नाते प्रकृति से उतना ही लें जितना मूझे चाहिए। श्री भागवत ने बहती उर्जा का इस्तेमाल करने पर बल दिया और कहा कि बहती रुपी उर्जा जैसे सूर्य, नदी, जंगल, व खनिज सम्पदा का इस्तेमाल शोशण के बजाय दोहन के रुप में करें, तो सब कुछ नियंत्रित हो सकता है।

संघ प्रमुख ने कहा कि स्वयंसेवकों द्वारा एक लाख से अधिक सेवा के कार्य बिना सरकार के सहयोग से चलायें जा रहें है। इस प्रकार के कार्यो में समान जनता के सहयोग की अपेक्षा की। उन्होंने कहा कि संघ का कार्य शाखा के माध्यम से व्यक्ति निर्माण करना है। यदि संघ को जानना हो तो बड़ी संख्या में स्वयंसेवक बनकर जान सकते है। उन्होंने अधिक से अधिक स्वयंसेवक बनने का आह्वान किया। श्री भागवत ने कहा कि संघ का कार्य न किसी के विरोध में और नहीं ही किसी के प्रतिक्रिया में है, इसे समझने के लिए संघ की शाखा में आना जरुरी है। उन्होंने शाखा में आने का आह्वान करते हुए कहा कि आइए संघ के दरवाजे खुले हैं। जब तक इसकी कार्य प्रणाली को नहीं समझेगें, तब तक आत्मा नहीं समझ पायेंगे। संघ का काम अनुभव का है। अनुभव करके ही इसकी कार्य प्रणाली को समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि संघ की नीतियां सनातन हिन्दू संस्कृति की रही हैं। जो त्याग, सहिश्णु व सर्वधर्म समभाव पर टिकी हैं। इसका कट्टरता से कोई वास्ता नहीं है। भारतीय संस्कृति कभी यह नहीं सिखाती `केवल हम सही हैं। बाकी सब गलत।´ विश्व बन्धुत्व का इससे बड़ा उदाहरण अन्य किसी संस्कृति में नहीं है।

उन्होंने कहा कि जहां हिन्दू जनसंख्या प्रभावी नहीं है वहां ‘सडयन्त्रकारी शक्तियों द्वारा देश विरोधी गतिविधियों बढ़ रही है। इन सारे समस्याओं को समाधान हिन्दुत्व में है। उन्होंने कहा कि विदेशी ताकतों द्वारा यह विभ्रम फैलाया जा रहा है कि हिन्दू भी आतंकवादी होता है जबकि संघ का मानना है कि हिन्दू आतंकवादी हो ही नहीं सकता है यदि कोई हो गया भी तो हिन्दू समाज उसके साथ कभी खड़ा नही हो सकता। जबतक हिन्दुत्व की विचारधारा के आधार पर देश के सभी वर्गो, समुदायों एवं जातियों को एकसूत्र में बांधा नहीं जायेगा तब तक वैभवशाली राश्ट्र का निर्माण नहीं हो सकता।


उन्होंने कहा कि तथाकथित राजनेता अपनी निजि स्वार्थो के कारण जाति, पन्थ, भाशा, सम्प्रदाय व क्षेत्रवाद को बढ़ावा दे रहे है। इन नेताओं का देश की सुरक्षा व समस्या से कोई लेना देना नहीं है इनको सिर्फ कुर्सी चाहिए। तेलंगाना राज्य के मुद्दे पर कहा कि ये तुच्छ राजनीति करने वाले राजनेताओं की देन है। आज उनका कुछ नहीं बिगड़ रहा है उनके इस करतुत के कारण देश की सम्पति जल रही है। उन्होंने सन् 1952 के श्री गुरुजी के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा उनका मानना था कि भाशावाद के नाम पर राज्य का बंटवारा नहीं होेना चाहिए। आज इस प्रकार की समस्या हम सबके सामने दिख रही है।

उन्होंने कहा कि भारत की सीमाऐं चारो तरफ से असुरक्षित है। चीन अपने सामंतवादी नीति के तहत हमको चारों तरफ से घेर रहा है। उन्होंने पाकिस्तान का नाम लेकर कहा कि वह भारत से दुश्मनी छोड़ नहीं सकता है क्योंकि उसका जन्म ही दुश्मनी से हुयी। बांग्लादेश हमारे सैनिकों को मारता है और हमारे सीमाओं के अन्दर घुसपैठ करके अपना दावा ठोकता है। धीरे-धीरे बाग्लादेश आतंकवादियों का गढ़ बनता जा रहा है समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं हुआ तो आने वाले समय में हमारे सामने खतरा बढ़ेगा। इसलिए जोर देकर उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद भी सरकार बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर भेंजने में असफल है। राजनीतिक स्वार्थो के चलते घुसपैठियों को राशन कार्ड, मतदाता सूची में नाम अंकित कर उनसे सहानुभूति जतायी जा रही है। उन्होंने इन सभी समस्याओं के पिछे सरकार की ढुलमुल नीति को जिम्मेदार ठहराया।

श्री भागवत देश की आन्तरिक समस्याओं पर बोलते हुए कहा कि नक्सलवाद, उग्रवाद सहित अन्य प्रकार की समस्या जो हमारे सामने आ रही है उसके मूल में विदेशी ताकतें है। रंगनाथ कमेटी का बिना नाम लिये बगैर कहा कि संविधान के खिलाफ दिये जा रहे आरक्षण देश को बॉटने का काम करेगा न कि जोड़ने का इसलिए इस प्रकार के आरक्षण से सरकार को बचना चाहिए।। उन्होंने कहा कि भारत में तथाकथित अल्पसंख्यकों को इतनी अधिक सुविधाऐं दी जा रही है कि देश में बहुसंख्यक होना अपराध सा हो गया है।
उद्बोधन के प्रारम्भ में स्वयंसेवक घोश की थाप पर पथसंचलन करते हुए संघ समागम स्थल पर पहुंचे। सभा में सरसंघचालक जी के आने पर स्वयंसेवकों ने सरसंघचालक प्रणाम किया। तत्पश्चात ध्वजारोहण हुआ। श्री भागवत के उद्बोधन के पूर्व स्वयंसेवकों ने सूर्य नमस्कार, दण्ड, नियुद्ध आदि का प्रदर्सन किया।
इस संघ समागम में प्रमुख रुप से विहिप के अन्तर्राश्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंघल, पूर्व मानवसंसाधन विकास मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी, पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशरी नाथ त्रिपाठी, पूर्व मंत्री डॉ नरेन्द्र सिंह गौर, लखनउ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं संघ के सह क्षेत्र संघचालक प्रो. देवेन्द्र प्रताप सिंह, पूर्व लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष प्रान्त संघचालक प्रो. कृश्ण बिहारी पाण्डेय, क्षेत्र प्रचारक अशोक बेरी, क्षेत्र कार्यवाह राम कुमार वर्मा, विद्याभारती के क्षेत्र संगठन मंत्री िशवकुमार, एंव प्रान्त प्रचारक िशवनाराण सहित अन्य स्वयंसेवक व कार्यकर्ता उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन प्रान्त शारीरिक िशक्षण प्रमुख रत्नाकार एवं अतिथियों का परिचय प्रान्त कार्यवाह डॉ विश्वनाथ लाल निगम ने किया।

इस टीके पर टीका टिपण्णी क्यों

सुभाष गाताडे
सर्वाइकल कैंसर से मुक्ति का शर्तिया इलाज के नाम से एक मल्टीनेशनल कंपनी द्वारा तैयार किए गए एचपीवी वैक्सिन के विज्ञापन को प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर तमाम लोगों ने देखा होगा। इस कैंसर से होने वाली मौतों को रोकने के लिए कंपनी आपको सलाह देती है कि आप अपनी बेटी को यह टीका अवश्य लगवाएं और सुरक्षित व निश्चिंत हो जाएं। यह अलग बात है कि इस टीके का प्रभाव सिर्फ चार साल तक ही रहता है और इसके चलते जिन किशोरियों-बच्चियों को यह टीका लगाया भी जा रहा हो, उन्हें अगर यौन संसर्ग की अवस्था में सक्रिय होने वाले इस वायरस से बचना है तो फिर इसे लगाना पड़ सकता है। पिछले दिनों चंद महिला संगठनों ने दिल्ली के इंडियन वुमेंस प्रेस का‌र्प्स में एक आमसभा करके इस मसले पर अपने सरोकार का इजहार किया और बताया कि किस तरह देसी-विदेशी बड़ी कंपनियां अपने मुनाफे के लिए स्ति्रयों के शरीरों का दोहन कर रही हैं। गौरतलब है कि इस मसले पर उनकी सक्ति्रयता जुलाई 2009 में शुरू हुई थी, जब उन्हें पता चला कि आंध्र प्रदेश और गुजरात के ग्रामीण इलाकों की लगभग तीस हजार आदिवासी किशोरियों को (जिनकी उम्र 10 से 14 साल के बीच थी) गार्डासिल नामक एक टीका लगाया जा रहा है और यह दावा किया जा रहा है कि इससे सर्वाइकल कैंसर को रोका जा सकेगा। इन महिला संगठनों ने जब चिकित्सा विशेषज्ञों की सहायता से अधिक जानकारी हासिल करने की कोशिश की तो उन्हें इस संबंध में कई अन्य विस्फोटक तथ्य उजागर हुए। उन्हें यह पता चला कि विकसित मुल्कों में पहले से प्रचलित इस टीके को लगाने के तमाम खतरनाक परिणाम सामने आ चुके हैं। इन टीकों से कई स्वस्थ किशोरियों की मौत मौत होने की खबरें भी आई हैं, जिससे कई कंपनियों को इस टीके की खेपों को बाजार से हटाना भी पड़ा है। इस बात को मद्देनजर रखते हुए कि प्रस्तुत परीक्षणों की तरफ भारत सरकार आंखें मूंदे हुए है, उन्होंने इस संबंध में एक ज्ञापन भी स्वास्थ्य मंत्रालय को भेजा। यह अलग बात है कि अब भी मंत्रालय इस मसले पर मौन है और एक तरह से मल्टीनेशनल कंपनियों और एनजीओ के साथ परीक्षणों में साझेदारी में संलिप्त है। निश्चित ही एचपीवी वैक्सिन के प्रसार से उजागर हुई प्रक्ति्रया में नया कुछ नहीं है। गौरतलब है कि आउटसोर्सिग के बढ़ते प्रचलन के दौर में बड़ी-बड़ी बहुदेशीय दवा कंपनियों द्वारा अपनी नई दवाओं के परीक्षण का बोझ तीसरी दुनिया के मुल्कों की जनता पर छोड़ने के मामले में कुछ भी अनोखा नहीं है। पिछले दिनों मुंबई में आयोजित पहले इंडिया फार्मा सम्मिट में इससे जुड़ी तमाम बातें सामने आई थीं। यह बात स्पष्ट हुई कि स्वास्थ प्रणाली की खामियों के चलते ऐसे प्रयोगों में वालंटियर बने लोगों की सुरक्षा का मसला अक्सर उपेक्षित ही रह जाता है। यहां तक कि मरीजों से हासिल की गई सहमति भी विवादास्पद दिखती है। यह अकारण नहीं कि ऐसे लोगों की सहज उपलब्धता के चलते जो गैर-जानकारी में या अपनी गरीबी के चलते ऐसी नई दवाओं का अपने शरीर पर प्रयोग करने के लिए तैयार रहते हैं और इन देशों की लचर स्वास्थ्य प्रणाली और उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते आउटसोर्स किए गए चिकित्सकीय परीक्षणों का बाजार आज 12,000 हजार करोड़ रुपये से आगे निकल चुका है। मुंबई में आयोजित सम्मेलन में उद्योगपतियों के संगठन फेडरेशन ऑफ इंडियन चेंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज यानी फिक्की की तरफ से एक रिपोर्ट भी पेश की गई, जिसमें यह जोर भी दिया गया कि राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने के लिए उपयोगी प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है। न्यूयॉर्क के फोर्डहैम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फाल्गुनी सेन द्वारा तैयार की गई प्रस्तुत रिपोर्ट में राष्ट्रीय हितों को भी अलग ढंग से परिभाषित किया गया था। इसके मुताबिक चिकित्सकीय परीक्षणों के लिए राष्ट्रीय हित का मतलब है ऐसी दवाएं, जो भारतीय आबादी के हिसाब से अधिक प्रासंगिक हों और अन्य मुल्कों में इसी किस्म की वरीयता नहीं हो। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि परीक्षणों के लिए भारत की परिस्थिति के मुताबिक, ऐसे पैमाने भी तय किए जा सकते हैं कि कौन-सी जांच यहां संभव नहीं होगी। इस फेहरिस्त में अन्य मुल्कों में पाबंदी लगाई गई दवाएं भी शामिल की जा सकती हैं। मालूम हो कि पिछले दिनों ड्यूक यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के मेडिकल रिसचर्स इस बात को लेकर चकित थे कि वर्ष 2007 में जिन नए ड्रग्स पर परीक्षण चले थे, उसके संबंध में एक तिहाई से अधिक परीक्षण अमेरिका के बाहर हुए थे। प्रस्तुत अध्ययन में अमेरिका की बीस बड़ी फार्मास्युटिकल्स कंपनियों ने 500 से अधिक चिकित्सकीय परीक्षणों का विश्लेषण किया था। अधिक महत्वपूर्ण बात यह थी कि जिन बाहर के मुल्कों में इन परीक्षणों को अंजाम दिया गया, उसके बारे में कंपनियों के लिए पहले से स्पष्ट था कि उनकी इन दवाओं के लिए कोई खास बाजार मिलने वाला नहीं है। सभी जानते हैं कि तीसरी दुनिया के मुल्कों की बीमारियों और पहली दुनिया की बीमारियों में कुछ समानताएं मिल सकती हैं, लेकिन काफी फर्क भी है। ऐसी तमाम बीमारियां, जो यहां कभी-कभी महामारी का रूप धारण करती दिखती हैं, उनसे वहां लगभग काबू पा लिया गया है। टीबी जैसी बीमारी हो या दूषित जल से पैदा होने वाली डायरिया जैसी बीमारियां हों, वे कभी वहां उस किस्म का कहर नहीं बरपाया करतीं, जैसे कि वे तीसरी दुनिया के हिंदुस्तान जैसे मुल्कों में करती हैं। यह अकारण नहीं कि इन अध्ययनकर्ताओं को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि टीबी जैसी बीमारी के लिए तीसरी दुनिया के इन लोगों पर कोई चिकित्सकीय परीक्षण नहीं चले, भले ही यह बीमारी विकासशील देशों में आज भी बड़े पैमाने पर विद्यमान हो। गौरतलब है कि आम हिंदुस्तानी का बड़ी-बड़ी कंपनियों की दवाओं के लिए गिनीपिग बनने का सिलसिला कोई नया नहीं है। वर्ष 1997 में देश के प्रमुख कैंसर संस्थान इंस्टीटयूट फॉर साइटॉलॉजी एंड प्रिवेंटिव एनकोलॉजी के तहत चला एक अध्ययन काफी विवाद का विषय बना था, जब पता चला था कि 1100 ऐसी स्ति्रयां, जो सर्वाइकल डिसप्लेसिया (गर्भाशय के मुख पर कोशिकाओं के विकास) से पीडि़त थीं, का इलाज केवल इसलिए नहीं किया गया ताकि बीमारी किस तरह बढ़ती है, उसका अध्ययन किया जाए। इसके बाद भी जब अस्वाभाविक बढ़त देखी गई और सर्वाइकल कैंसर की आशंका महसूस की गई, तब भी न तो उन स्ति्रयों को इसके बारे में चेतावनी दी गई और न ही उनका इलाज किया गया, बल्कि चूहों की तरह उन पर परीक्षण जारी रहा। ज्यादा विचलित करने वाली बात यह थी कि यह समूचा अध्ययन देश के एक अग्रणी चिकित्सकीय खोज संस्थान के बैनर तले संचालित हो रहा था, जिस पर चिकित्सकीय शोध की नैतिक मार्गदर्शिका बनाने की प्रमुख जिम्मेदारी थी। इसमें कोई दोराय नहीं कि जब तक चिकित्सकीय नैतिकता के केंद्र में जानकारी के साथ सहमति का मसला नहीं रहेगा, तब तक ऐसे प्रयोगों का बार-बार दोहराव हम देखते रहेंगे। इसके लिए तैयार की जा रही मार्गदर्शिकाओं में न केवल नई तकनीकों व शोधों से उत्पन्न चुनौतियों का जिक्र होना चाहिए, बल्कि बदली सामाजिक परिस्थितियां जैसे भारत जैसे समाज में व्याप्त लिंग व वर्ग असमानता को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
साभार दैनिक जागरण

केंद्र सरकार की मज़बूरी

नक्सलियों से निपटने की रणनीति में बदलाव समय की मांग हो सकती है, लेकिन यह शुभ संकेत नहीं कि पश्चिम बंगाल और झारखंड की नई सरकार का रवैया केंद्र से मेल नहीं खा रहा। नक्सलियों से चाहे जैसे निपटा जाए, लेकिन केंद्र और नक्सलवाद प्रभावित राज्यों में तालमेल होना प्राथमिक आवश्यकता है। यह निराशाजनक है कि नक्सलवाद का मुकाबला करने के तमाम वायदों और तैयारियों के बावजूद केंद्र और राज्य सरकारों के बीच आवश्यक तालमेल कायम होता नजर नहीं आ रहा। नि:संदेह इसका लाभ नक्सली संगठन उठा रहे हैं। उन्होंने न केवल आपस में बेहतर संपर्क स्थापित कर लिए हैं, बल्कि खुद को आधुनिक हथियारों से भी लैस कर लिया है। यही कारण है कि वे पुलिस और सुरक्षा बलों पर हमले करने और जनजीवन को बाधित करने में सक्षम हो गए हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में तो वे जब चाहते हैं तब आसानी से बंद आयोजित करने में सफल हो जाते हैं। यह समझ पाना कठिन है कि जब केंद्र सरकार को उनके खिलाफ कोई सीधी कार्रवाई नहीं करनी थी तो फिर ऐसा माहौल क्यों बनाया गया कि उनसे दो-दो हाथ किए जाएंगे? यह विस्मृत नहीं किया जा सकता कि नक्सलियों के खिलाफ सैन्य बलों और यहां तक कि वायुसेना के इस्तेमाल को लेकर भी व्यापक चर्चा छिड़ी। अब यह कहा जा रहा है कि नक्सलियों को निशाना बनाने के बजाय उनकी घेरेबंदी की जाएगी और उन तक हथियारों एवं अन्य सामग्री की आपूर्ति को रोका जाएगा। यह जानना कठिन है कि इसके पहले इस पर विचार क्यों नहीं किया गया कि नक्सलियों को हथियारों की आपूर्ति रोकने की जरूरत है? पिछले कुछ वर्षो में नक्सलियों ने जैसे आधुनिक हथियार एवं विस्फोटक पदार्थ जुटा लिए हैं उससे यही प्रतीत होता है कि इसके पहले उनकी सप्लाई लाइन को बाधित करने पर विचार ही नहीं किया गया। देखना यह है कि अब ऐसा करने में सफलता मिलती है या नहीं? निश्चित रूप से केवल इतने से ही नक्सलियों के मनोबल को तोड़ना कठिन है, क्योंकि अब वे इतने अधिक दुस्साहसी हो गए हैं कि हथियारों के लिए पुलिस थानों पर भी हमला करने में संकोच नहीं कर रहे हैं। पुलिस थानों और सुरक्षा बलों के ठिकानों पर नक्सलियों के हमले यह भी बताते हैं कि किस तरह पुलिस को आवश्यक संसाधनों से लैस करने में अनावश्यक देरी की गई। यह निराशाजनक है कि इस मोर्चे पर राज्य सरकारें अभी भी तत्पर नजर नहीं आतीं। यह एक तथ्य है कि पुलिस सुधारों के मामले में राज्य सरकारों का रवैया ढुलमुल ही अधिक है। यह विचित्र है कि राज्य सरकारें पुलिस सुधारों के मामले में न तो उच्चतम न्यायालय के निर्देशों पर अमल करने के लिए आगे बढ़ रही हैं और न ही सुरक्षा विशेषज्ञों के सुझावों पर। आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में रेखांकित किए जा रहे नक्सलवाद का मुकाबला करने के मामले में सबसे अधिक निराशाजनक यह है कि केंद्र और राज्यों के बीच इस पर कोई आम सहमति कायम नहीं हो पा रही है कि नक्सलियों को सही रास्ते पर कैसे लाया जा सकता है?
साभार दैनिक जागरण
मात्र नौ वर्ष का एक छोटा सा बालक सन् 1675 में पिता के साथ आसाम से पंजाब आया। पिता (गुरू तेगबहादुर) का दिन-रात देश और समाज का चिन्तन तथा धर्म रक्षा का संकल्प बालक के मन को अन्दर तक छू रहा था। एक दिन गुरू तेगबहादुर कश्मीरी पंडितों पर हुए मुगलों के अमानवीय अत्याचारों की कथा सुनते-सुनते कहने लगे - इस समय धर्म रक्षा का एक ही उपाय है कि कोई बड़ा धर्मात्मा पुरूष बलिदान दे। यह बात बालक गोविन्द बड़े ध्यान से सुन रहा था। सभी लोग विषय की गम्भीरता को देख मौन थे। अचानक बालक गोविन्द बोल पड़ा - पिताजी, आज के समय में आप से बढ़कर दूसरा महात्मा व धर्मात्मा पुरूष और कौन हो सकता है। नौ वर्षीय बालक के इस उत्तर पर गुरू तेगबहादुर बहुत प्रसन्न हुए।

मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी सन् 1675 को पिता के बलिदान के पश्चात् बालक गोविन्द नौ वर्ष तक आनन्द पुर में रहे जहाँ उन्होंने अपनी भावी जीवन की योजना बनाई। अपने बलिदान से पूर्व गुरू तेग बहादुर ने यहीं पर उन्हें गुरूता गद्दी प्रदान करते हुए देश, धर्म व दुखी जनता का उद्धार करने का आशीर्वाद दिया। बालक गोविन्द से गुरू गोविन्द बने गुरू गोविन्द सिंह जी ने सिख समुदाय को हुक्मनामे भेज-भेज कर अस्त्र, शस्त्र और धन एकत्रित किया तथा सामाजिक धारा को क्रांतिकारी रूप देने के लिए एक छोटी सेना भी बनाई।

भारत में मुगल शासकों के निरन्तर बढ़ते आक्रमणों से देश और धर्म को बचाने के लिए सन् 1699 में बैसाखी के दिन गुरू गोविन्द सिंह जी ने अपने अनुयाईयों की एक विशाल सभा बुलाई जिसे सम्बोधित करते हुए उन्होंने हाथ में नंगी तलवार लेकर प्रश्न किया कि है कोई, जो धर्म के लिए अपने प्राण दे सकेर्षोर्षो उनकी इस प्रेरणादायक ललकार को सुनकर बारी-बारी से दयाराम खत्री, धर्म दास जाट, मोहकम चंद धोबी, हिम्मत सिंह रसोइया तथा साहब चंद नाई अग्रसर हुए जिनके पश्चात् सारा निश्तेज समाज जोश में भर, उठ खड़ा हुआ। उन्होंने यहीं पर जात-पात के भेदभाव में बिखरे हिन्दू समाज को समिन्वत कर खालसा के रूप में खड़ा किया और इस प्रकार खालसा पंथ की स्थापना हुई।

गुरू गोविन्द सिंह एक बड़े समाज सुधारक थे। सती प्रथा, कन्या वध, अस्पृश्यता (छूआ-छूत) इत्यादि सामाजिक बुराईयों से दूर समानता पर आधारित सामाजिक संरचना के वे पक्षधर थे। वीरता व पराक्रम में उनका मुकाबला नहीं था। चिड़ियों के समान डरपोक भारतीय युवकों को वे कहा करते थे कि
Þसवा लाख से एक खड़ाऊ,
चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊं,
तबै गोविन्द सिंह नाम कहाऊँÞ।

औरंगजेब समर्थक, पंजाब के पर्वतीय नरेशों को, भंगाणी के युद्ध में पराजित किया और 1703 में उन्होंने चमकौर के युद्ध में केवल 40 सिखों की सहायता से मुगलों की विशाल सेना के छक्के छुड़ा दिये थे। इसमें गुरू गोविन्द सिंह के दो बड़े पुत्रों अजीत सिंह व जुझार सिंह के साथ पांच प्यारों में से तीन प्यारे शहीद हो गये।
सन् 1703 में सरहिन्द के नवाब वजीर खाँ ने उनके दो छोटे पुत्रों जोरावर सिंह और फतेह सिंह को, इस्लाम स्वीकार न करने के कारण दीवार में जीवित चिनवा दिया। चारों पुत्रों और पत्नी की क्रुर हत्या होने के बावजूद भी गुरूजी एक महान योगी की तरह बिल्कुल भी विचलित नहीं हुए 1706 में उन्होंने खिदराना का युद्ध लड़ा।

वे महान योद्धा तो थे ही, संगीत, साहित्य व कला के क्षेत्र में उनकी गहरी रूचि थी। वे रचनाकार कवि भी थे। उनके द्वारा रचित दशम ग्रन्थ हैं जिसमें - जापु साहेब, अकाल स्तुति, विचित्र नाटक, चण्डी चरित्र, चण्डी दीवार, जफरनामा, चौबीस अवतार, ज्ञान प्रबोध आदि प्रमुख हैं। उनके दरबार में 52 कवि थे। इनमें दया सिंह, नंदलाल, सेनापति चन्दन, खानखाना आदि प्रमुख थे। उनकी रचनाओं में वीर रस की प्रधानता थी। उन्होंने अपने बाद श्री गुरू ग्रन्थ साहेब को गुरू मानने का आदेश देकर गुरूता गद्दी पर आसीन किया। संवत् 1765 अर्थात् ईसवी सन् 1708 में नांदेड़ में गोदावरी के तट पर गुरूजी ने देह त्याग कर स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया। उनके द्वारा जलाई गई स्वतन्त्रता ज्योति तथा अन्याय के विरूद्ध लड़ने की भावना आज भी भारतीयों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है।
गऊ रक्षा के लिए उनका मत था
`यही दे हु आज्ञा तुरकन गहि खपाऊं,
गऊ घात का दोख जगसों मिटाऊं।
-उग्रदन्ती
अर्थात् हे मां भवानी, मुझे आशीर्वाद और आदेश दे कि धर्म विरोधी अत्याचारी तुर्कों को चुन-चुनकर समाप्त कर दूं आर इस जगत से गौ हत्या का कलंक मिटा दूं। वे देवी दुगाZ भवानी के अनन्य उपासक थे। `खालसा´ सृजन से पहले उन्होंने शक्ति यज्ञ का अनुष्ठान किया था। उनकी इच्छा थी कि
सकल जगत मो खालसा पंथ गाजै,
जगै धरम हिन्दुक तुरक दुंंद भाजै।
-उग्रदन्ती
अर्थात्, सारे जगत में खालसा पंथ की गूंज हो, हिन्दू धर्म का उत्थान हो तथा तुर्कों द्वारा पैदा की गयी विपत्तियां समाप्त हों।
खालसा के लक्षण पूछने पर दशमेश गुरू ने एक बार कहा कि खालसा वह है जिसने काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार पर काबू पा लिया हो तथा अभिमान, परस्त्री गमन, पर-निन्दा तथा मिथ्या विश्वासों के भ्रमजाल से सदा दूर रहता हो। जो दीन दुखियों की सेवा व दुर्जन-दुष्टों का विनाश कर निरन्तर श्रद्धापूर्वक प्रभु नाम के जप में लीन रहता हो। खालसा को चरित्रवान व पराक्रमी बनाये रखने के लिए उन्होनें पांच ककार धारण करने के लिए कहा। ये हैं - 1. कृपाण 2. केश 3. कंघा, 4. कच्छा व 5. कड़ा।
विनोद बंसल