Thursday, May 31, 2007

भारत में दो दलीय व्यवस्था होनी चाहिए या बहुदलीय

भारत में दो दलीय व्यवस्था होनी चाहिए या बहुदलीय। इस पर काफी विवाद है। पिछले दिनों भारतीय पक्ष पत्रिका में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के डी. राजा, कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर से राजीव कुमार की विस्तृत बातचीत प्रकाशित हुई, जिसके संक्षिप्त अंश इस प्रकार है :

हमारा संविधान जो कहता है उसमें पूरी आस्था है,

चाहे वह व्यवस्था दो दलीय हो या बहुदलीय

अभिषेक मनु सिंघवी


कांग्रेस पार्टी भारत के लोकतंत्र व गणतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास करती है। क्योंकि इस देश में जनता का शासन है। जनता ही पांच साल बाद अपने मताधिकारों का प्रयोग कर अपनी पसंद के दल का चुनाव करती है। हमारे पार्टी का विश्वास भारत के संविधान में है, भारत के लोकतंत्र में है। संविधान निर्माताओं ने जो व्यवस्था बनाई है हमारी पार्टी उसमें पूरी आस्था रखती है। अब वह चाहे वह दो दलीय हो या बहुदलीय व्यवस्था हो।
भारत एक ऐसे आधारभूत ढांचे पर टिका है जहां द्विदलीय पध्दति यहां की जनता को कभी पसंद नहीं आएगी। यानी यहां की जनता बहुदलीय पार्टी में ही विश्वास रखती है। क्योंकि जनता दो दल में बंधना नही चाहती है। क्योंकि वह समय आने पर अपने विकल्पों का खुलकर प्रयोग करना चाहती है। भारत के राजनीति में हम बहुदलीय का मतलब 50 या 55 पार्टी समझते हैं। बेशक बहुदलीय प्रणाली हमारे गणतंत्रात्मक शासन के लिए एक बेहतर प्रणाली है। पर इसका यह मायने नही कि कुकुरमुत्ते की तरह देश में असंख्य पार्टियां हो जाएं। इसलिए इन पार्टियों की एक सीमा रहनी चाहिए।
यह सत्य है कि इस देश की जनता बहुदलीय पध्दति में विश्वास करती है लेकिन बहुदलीय होने के एक नियम कायदे होने चाहिए। क्योंकि कम से कम पार्टी जनतंत्र के हित में है। यहां 55 के आंकड़े को कम करने का मतलब दो दल हरगिज नही है। दो दलीय राजनीति उन समाज या उन देशों में चलती है जहां समानता व एकरूपकता हो। भारत तो विविधता वाला देश है इसलिए भारत की विविधता को देखते हुए दो दलीय राजनीति उपयुक्त नही है। जिन देशों में द्विदलीय पध्दति है वहां समानता, एकरूपता है। दो दल के आ जाने से तानाशाही का विशेष तौर पर खतरा हो सकता है। जनता के पास विकल्प की कमी हो सकती है। क्योंकि उन्हें उन्ही दो दलों में से एक को चुनना अनिवार्य होता है। ऐसी स्थिति में लोग किसी तीसरे दल की उम्मीद करने लगते हैं। द्विदलीय स्थिति में जनता के अधिकारों का हनन हो सकता है। जब सत्ता के मद में दो दल तानाशाही की ओर बढ़ते हैं तब सूक्ष्म शक्तियां अपना प्रभाव दिखानी शुरू करती हैं तब छोटे दलों का प्रार्दुभाव होता है। वैसे हमारे देश में जनता का शासन है और यहां संविधान सर्वोपरि है। लेकिन बहुत से दल का मतलब सैकड़ों पार्टियों से न लिया जाए। परन्तु पचास से कम पार्टियां देश के हित में होगा। बहुदलीय व्यवस्था में ही यहां की जनता संतुष्ट हो सकती है। इसलिए हमारे संविधान के मर्मज्ञ भी यहां बहुदलीय व्यवस्था को ज्यादा तवज्जो दिये हैं। भारत में अनेंक धर्म, अनेंक जाति, अनेंक भाषा, अनेक प्रांत, अनेक बोलियां हैं। इसलिए इसकी विविधता को देखते हुए द्विदलीय व्यवस्था ठीक नही रहेगा।

No comments: