Thursday, May 31, 2007

केन्द्र में दो दलीय व्यवस्था ही होनी चाहिए
किसी देश में द्विदलीय या बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था काफी हद तक उस देश की सामाजिक स्थिति पर निर्भर करती है। जैसेकि अमेरिका और इंग्लैंड में ऐसी व्यवस्था देखने को मिलती है। इन दोनों देशों में द्विदलीय व्यवस्था ही है और विश्व मंच में अपनी एक अलग स्थान बनाए हुए हैं। वैसे तो कई देशों में द्विदलीय व्यवस्था है लेकिन वे बहुत सफल नहीं हैं। जहां तक भारत की बात है तो यहां की सामाजिक संरचना इस तरह की है कि यहां द्विदलीय व्यवस्था का होना काफी मुश्किल है। जातीय आधार पर बने राज्यों में क्षेत्रीय दलों उभरने से यह स्थिति बहुदलीय व्यवस्था की ओर ही इशारा करती है। हालांकि दोनों व्यवस्थाओं की अपनी-अपनी खूबियां और खामियां हैं, लेकिन एक सर्वमांय मत की बात करें तो देश के प्रमुख राजनीतिक दलों के विचारों से भी एक राय उभर कर सामने नही आती है। भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता अलग-अलग राय व्यक्त करते हैं। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर का इस बारे में कहना है कि:
भारत विश्व का सबसे बड़ा गणतांत्रिक देश है। आजादी के बाद यहां भाषा के आधार पर अलग-अलग प्रांतो का भी निर्माण हुआ। यहां बहुदलीय प्रणाली की आवश्यकता है, फिर भी यहां दो प्रमुख दल जरूरी है। प्रांतो में भले बहुदलीय व्यवस्था हो लेकिन केन्द्र में द्विदलीय व्यवस्था होनी चाहिए। क्योंकि इससे न केवल शासकीय निर्णय लेने में सुविधा होती है बल्कि गठबंधन दलों के दबाब में आकर महत्वपूर्ण फैसलों को रोकना नही पड़ता। कभी-कभी कई महत्वपूर्ण विधेयक गठबंधन दलों के दबाव के कारण अधर में लटके रह जाते हैं। लेकिन जहां द्विदलीय पध्दति है वहां इस तरह की समस्या से देश को रूबरू नहीं होना पड़ता। द्विदलीय व्यवस्था में दोनों दल एक दूसरे की भूमिका क्या होनी चाहिए इस पर स्थिति एकदम स्पष्ट रहती है। द्विदलीय पध्दति में देशहित में कोई भी निर्णय लेने में देर नही होती। द्विदलीय व्यवस्था में दोनों दलों की भूमिका एकदम स्पष्ट रहती है और जनता यह तय कर सकती है कि व किसे चुने।
अगर हम भारत के अतीत के इतिहास में जाकर देखें तो कांग्रेस आजादी के आंदोलन से जुड़ी थी। और जब देश आजाद हुआ तब यहां कांग्रेस की सरकार बनी। फिर 1957 के करीब भाषाई राज्यों की मांग उठी और उसका परिणाम 1957 के नतीजों खासकर गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल आदि में इसके परिणाम देखने को मिले। धीरे-धीरे राज्यों में भाषा के आधार पर समितियां बनने लगी जिसका उदाहरण केरल व महाराष्ट्र में देखने को मिला। मिशाल के तौर पर महाराष्ट्र में इसका नामकरण संयुक्त महाराष्ट्रसमिति आदि से हुआ। धीरे-धीरे देश में कुछ ऐसे परिवर्तन हुए जो ठीक नहीं थे। कांग्रेस बहुमत में तो आई लेकिन वह जनता की अपेक्षाओं पर खरी नही उतरी और लोगों के विश्वास को खो दिया, जिसके फलस्वरूप यहां की जनता बेहद आक्रोशित हो गई, जिसके परिणामस्वरूप 1967 में पहली दफा कांग्रेस 8 राज्यों में चुनाव हारी। 1975 में जब कांग्रेस ने आपात्काल लगाया, जनता के उपर भारी जुल्म ढाए जिसके चल्ते 1977 में कांग्रेस को भारी पराजय का सामना करना पड़ा।
लेकिन तब एक स्वतंत्र दल था जो पूंजीवाद की बात करता था, तत्पश्चात एक संगठित सरकार केंद्र में बनी। धीरे-धीरे देश में कुछ ऐसे परिवर्तन हुए जो ठीक नहीं थे। कांग्रेस के कारण क्षेत्रवाद तो बढ़ा ही साथ में दिल्ली के हाईकमान का पावर काफी बढ़ गया। कांग्रेस के नेता राजीव गांधी हवाई जहाज से उतर रहे थे तो बेंगल राव राजीव गांधी के पैर से जूते निकाल रहे थे। आंध्र प्रदेश के लोगों को लगा कि हम दिल्ली के गुलाम हो गए हैं। धीरे-धीरे प्रदेश, भाषा, जाति का महत्व बढ़ने लगा। लोगों को लगा कि राजनीति में हमारे जाति का एक नेता होनाा चाहिए। इससे जातिवाद व क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिला और क्षेत्रीय दलों की भरमार होने लगी। एक प्रकार से भारत के राजनीति का विभाजन हो गया।
और यहां दलों की संख्या बढ़कर तीस हो गई। फिर लोगों ने दलों के बारे में यह नहीं देखा कि किस दल का कार्यक्रम क्या है, उसके विचार और मत क्या है व राष्ट्र के बारे में उस दल की सोच क्या है? बल्कि लोग यह देखने लगे कि कौन सा दल अपनी बिरादरी का है। इस तरह की जातिवादी सोच लोगों के दिलों मे घर कर गई। देश में पूरी तरह से जातिवाद हावी हो गया। कार्यक्रम में भूमिका का महत्व हो गया।
बाद में एनडीए की गठबंधन सरकार आई जो पूरी तरह सफल रही और कांग्रेस का विकल्प बनी। और रही छोट-छोटे दलों की तो पहले एक तिहाई बहुमत से कोई दल को मान्यता मिल जाती थी। लेकिन एनडीए सरकार ने ऐसे दलों की मांयता दो तिहाई बहुमत से कर दिया। अगर कोई दल टूटेगा उसे तभी मांयता मिलेगी जब वह दो तिहाई बहुमत से अपना बहुमत साबित करेगा। यह पध्दति पार्टियों की संख्या को कम करेगा। लेकिन धीरे-धीरे दो दलीय पध्दति विकसित होनी चाहिए। अमेरिका में दो दलीय पध्दति है जिससे वहां का शासन सुचारू रूप से चलता है। इसलिए भारत के शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए द्विदलीय पध्दति का विकास होना चाहिए।

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

अच्छे विचार रखे है। इन बातो पर विचार होना चहिए।

Sajeev said...

आपने बिल्कुल मेरे मन की बात कही है..बिल्कुल ऐसा ही होना चाहिऐ... दोस्त मगर कोई उपाय नही नज़र आता जिससे ऎसी संभावनाएं बने