Thursday, December 31, 2009

तार-तार हो गया उल्फा का आधार


तार-तार हो गया उल्फा का आधार
गुवाहाटी : असम को भारत से अलग करने के ख्वाब के साथ 1979 में बनाया गया यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आफ असम (उल्फा) इन दिनों उथल-पुथल भरे दौर से गुजर रहा है। अपने आधार की वजह से उल्फा ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के संरक्षण में बांग्लादेश में अपने पांव जमा लिए थे, लेकिन उसे अब वहां बने रहने में दिक्कत हो रही है। पिछले साल शेख हसीना की सरकार की स्थापना, धार्मिक कट्टरवाद और उग्रवाद के विरोध में उठाए गए कदमों और शायद इस एहसास की बदौलत कि अब भारत को और नाराज नहीं किया जा सकता, उस देश में सक्रिय उल्फा तथा दूसरे उग्रवादी संगठन हताशा में सुरक्षित पनाहगाहों की तलाश में हैं। इसलिए उल्फा प्रमुख, परेश बरुआ के चीन पहंुच जाने और बांग्लादेश में मौजूद इस संगठन के सदस्यों के म्यांमार से संरक्षण मिलने की खबरों से हैरानी नहीं होनी चाहिए। लेकिन म्यांमार में भी उन्हें हालात की प्रतिकूलता का अंदाजा होने लगा है। खबर थी कि नवंबर के पहले सप्ताह में म्यांमार आर्मी ने उल्फा के एक कैंप को घेर लिया था और वहां करीब 100 उग्रवादियों पर हमला बोल दिया था। इस पृष्ठभूमि में संगठन के दो शीर्ष नेताओं विदेश सचिव शशधर चौधरी और वित्त सचिव चित्रबन हजारिका की गिरफ्तारी महत्वूपर्ण हो जाती है। बीएसएफ के अनुसार इन दोनों ने त्रिपुरा में आत्मसमर्पण किया था। इससे महज 48 घंटे पहले उल्फा ने दावा किया था कि इन दोनों को 1 नवंबर को ढाका में उनके घरों से गिरफ्तार किया गया था। 7 नवंबर को चीफ जूडिशियल मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने के बाद जब इन दोनों को गुवाहाटी लाया गया, तो उन्होंने मीडिया को बताया कि उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया था बल्कि सादी वर्दी में कुछ लोगों ने उन्हें ढाका में उनके घरों से उठाया था और फिर उन्हें भारत को सौंप दिया था। खैर हकीकत यह है कि दोनों जेल में हैं। यही नहीं इसके कुछ दिन बाद ही उल्फा का चेयरमैन अरबिंद राजखोवा और डिप्टी कमांडर इन चीफ राजू बरुआ की गिरफ्तारी ने तो उल्फा की कमर ही तोड़ दी। उल्फा के लिए यह गठन के 30 साल में सबसे बड़ा झटका था। सवाल उठता है कि अब उल्फा क्या रुख अपनाएगा? जून 2008 से इकतरफा संघर्ष विराम करने वाले वार्ता-समर्थक धड़े के चोटी के एक उल्फा लीडर, मृणाल हजारिका के हवाले से एक अखबार ने लिखा है कि अगर राज्य को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान करने की हमारी मांग पर वे सहमत हो जाते हैं, तो शांति वार्ता शुरू करने का हम आधार तैयार कर सकते हैं। हम समझ चुके हैं कि असम के लिए पूर्ण प्रभुसत्ता की मांग करना व्यावहारिक नहीं है। इसलिए हम, लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए शांति वार्ता के पक्ष में हैं। ऐसे में या तो शशधर-चित्रबन की जोड़ी, शांति वार्ता की बजाए अपने क्रांतिकारी रुख पर कायम रहते हुए जेल जाना पसंद करेंगे, या वे मृणाल हजारिका गुट में शामिल हो जाएंगे और शांति प्रक्रिया को सार्थक बनाएंगे, या फिर वे अपने कानूनी और तथाकथित मानवाधिकार सलाहकारों की मदद से एक नई साजिश के लिए कोई चतुराई भरा कदम उठाएंगे। साथ ही, हो सकता है कि वार्ता-विरोधी धड़ा इन दो लोगों के पकड़े जाने का बदला लेने के लिए अपने परिचित तौर-तरीकों से मासूम स्त्री-पुरुषों और बच्चों को आतंकित करे। ऐसे किसी हमले को रोकने के लिए खुफिया विभाग को कुशलता और सतर्कता का परिचय देना होगा। परेश बरुआ के नेतृत्व वाला गुट यह साबित करने की पुरजोर कोशिश करेगा कि अभी उसमें दम है। अपने शुरूआती सालों में समाज सुधार के अपने स्वरूप से उल्फा ने एक लंबा रास्ता तय करके संगठन के खिलाफ भारतीय सेना के आपरेशन बजरंग और आपरेशन राइनो के बाद 1990 के सालों में असम छोड़कर बांग्लादेश चले जाने के बाद आईएसआई के समर्थन से उसने आतंकवादी नकाब ओढ़ लिया है। इसी प्रकार से असम के लोगों ने भी एक लंबा सफर तय किया है। अब वे उल्फा द्वारा दिखाए गए सपने से दूर होकर उसके आतंकवादी स्वरूप को पहचान चुके हैं, जो आज विदेशी ताकतों के इशारों पर खेल रहा है। (अडनी)
sabhar dainik jagran

1 comment:

संगीता पुरी said...

अच्‍छी जानकारी दी आपने .. आपके और आपके परिवार के लिए नववर्ष मंगलमय हो !!